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________________ । ९६६ - ७०. जीव-चउवीसदंडएस अंतकिरिया भावाभाव परूवर्ण प. जीवेणं भंते !अंतकिरियं करेज्जा? उ. गोयमा !अत्येगइए करेज्जा, अत्थेगइए नोकरेज्जा।' द.१-२४.एवं नेरइए जाव वेमाणिए। प. द.१.नेरइएणं भंते ! नेरइएस अंतकिरियं करेज्जा? उ. गोयमा ! नो इणठे समठे। प. द. २. नेरइए णं भंते ! असुरकुमारेसु अंतकिरियं करेज्जा ? उ. गोयमा ! नो इणठे समठे। दं.३-२४.एवं जाव वेमाणिएसु, णवरं प. नेरइएणं भंते ! मणूसेसु अंतकिरियं करेज्जा? उ. गोयमा !अत्थेगइए करेज्जा,अत्थेगइए नो करेज्जा। एवं असुरकुमारे जाव वेमाणिए। एवमेव चउवीसं-चउवीसं दंडगा भवंति। -पण्ण.प.२०, सु.१४०७-१४०९ द्रव्यानुयोग-(२)] ७०. जीव-चौवीस दण्डकों में अन्तक्रिया के भावाभाव का प्ररूपणप्र. भंते ! क्या जीव अन्तक्रिया करता है? उ. हां, गौतम ! कोई जीव अन्तक्रिया करता है और कोई जीव नहीं करता है। दं १-२४. इसी प्रकार नैरयिक से वैमानिक पर्यन्त की अन्तक्रिया के लिए जानना चाहिए। प्र. दं.१. भंते ! क्या नारक नारकों में रहता हुआ अन्तक्रिया करता है? उ. गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। प्र. दं. २. भंते ! क्या नारक असुरकुमारों में अन्तक्रिया करता है? उ. गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। दं. ३-२४. इसी प्रकार वैमानिकों पर्यन्त अन्तक्रिया की असमर्थता जाननी चाहिए, विशेषप्र. भंते ! क्या नारक मनुष्यों में आकर अन्तक्रिया करता है? उ. गौतम ! कोई (अन्तक्रिया) करता है और कोई नहीं करता है। इसी प्रकार असुरकुमार से वैमानिक पर्यन्त कहना चाहिए। इसी तरह चौबीस दण्डकों की चौबीस दण्डकों में अन्तक्रिया कहना चाहिए। (ये सब मिलाकर २४४२४-५७६ प्रश्नोत्तर होते हैं।) ७१. चौवीसदंडकों में अनन्तरागतादि की अन्तक्रिया का प्ररूपणप्र. दं.१.भंते ! क्या अनन्तरागत नैरयिक अन्तक्रिया करते हैं या परम्परागत अन्तक्रिया करते हैं ? उ. गौतम ! अनन्तरागत भी अन्तक्रिया करते हैं और परम्परागत भी अन्तक्रिया करते हैं। इसी प्रकार रत्नप्रभा पृथ्वी के नैरयिकों से पंकप्रभा पृथ्वी के नैरयिक पर्यन्त अन्तक्रिया के लिए जानना चाहिए। प्र. भंते ! धूमप्रभापृथ्वी के अनन्तरागत नैरयिक अन्तक्रिया करते हैं या परम्परागत अन्तक्रिया करते हैं ? उ. गौतम ! अनन्तरागत अन्तक्रिया नहीं करते, किन्तु परम्परागत अन्तक्रिया करते हैं। इसी प्रकार अधःसप्तमपृथ्वी पर्यन्त के नैरयिकों की अन्तक्रिया कहनी चाहिए। दं. २-१३, १६. असुरकुमार से स्तनितकुमार पर्यन्त भवनपति देव तथा पृथ्वीकायिक, अप्कायिक और वनस्पतिकायिक अनन्तरागत जीव भी अन्तक्रिया करते हैं और परम्परागत भी अन्तक्रिया करते हैं। दं.१४,१५,१७,१९. तेजस्कायिक, वायुकायिक, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय अनन्तरागत जीव अन्तक्रिया नहीं करते, किन्तु परम्परागत अन्तक्रिया करते हैं। दं. २०-२४. शेष सभी अनन्तरागत अन्तक्रिया भी करते हैं और परम्परागत अन्तक्रिया भी करते हैं। ७१.अणंतरागयाईणं चउवीसदंडएस अंतकिरिया परवणंप. द. १. नेरइया णं भंते ! किं अणंतरागया अंतकिरियं करेंति,परंपरागया अंतकिरियं करेंति? उ. गोयमा ! अणंतरागया वि, अंतकिरियं करेंति, परंपरागया वि अंतकिरियं करेंति। एवं रयणप्पभापुढवी नेरइया वि जाव पंकप्पभापुढवी नेरइया। प. धूमप्पभापुढवीनेरइया णं भंते ! किं अणंतरागया अंतकिरियं करेंति,परंपरागया अंतकिरियं करेंति? उ. गोयमा ! णो अणंतरागया अंतकिरियं करेंति, परंपरागया अंतकिरियं करेंति एवं जाव अहेसत्तमापुढवीनेरइया। दं. २-१३, १६. असुरकुमारा जाव थणियकुमारा पुढवी-आउ-वणस्सइकाइया य अणंतरागया वि अंतकिरियं करेंति,परंपरागया वि अंतकिरियं करेंति। द.१४-१५-१७-१९. तेउ-वाउ-बेइंदिय-तेइंदियचउरिदिया णो अणंतरागया अंतकिरियं करेंति, परंपरागया अंतकिरियं करेंति। दं. २०-२४. सेसा अणंतरागया वि अंतकिरियं करेंति, परंपरागया वि अंतकिरियं करेंति। -पण्ण.प.२०,सु.१४१०-१४१३ १. विया.स.१,उ.२,सु. १८
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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