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________________ ( ९५६ - उज्जुया णियागपडिवन्ना अमायं कुव्वमाणा पाणिं पसारेह, इइ वुच्चा से पुरिसे तेसिं पावाउयाणं तं सागणियाणं इंगालाणं पाइं बहुपडिपुण्णं अओमय संडासएणं गहाय पाणिंसु णिसिरइ, तए णं ते पावाउया आइगरा धम्माणं नाणापन्ना जाव नाणाज्झवसाणसंजुत्ता पाणिं पडिसाहरेंति, तए णं से पुरिसे ते सव्वे पावाउए आइगरे धम्माणं नाणापन्ने जाव नाणाज्झवसाणसंजुत्ते एवं वयासी'हं भो पावाउया ! आइगरा धम्माणं नाणापन्ना जाव नाणाज्झवसाणसंजुता ! कम्हाणं तुब्भे पाणिं पडिसाहरह? पाणी नो डज्झेज्जा? दड्ढे किं भविस्सइ? दुक्खं, दुक्खं ति मण्णमाणा पडिसाहरह। एस तुला, एस पमाणे,एस समोसरणे पत्तेयं तुला, पत्तेयं पमाणे, पत्तेयं समोसरणे। तत्थं णं जे ते समणा माहणा एवमाइक्खंति जाव एवं परूवेंतिसव्वे पाणा जाव सव्वे सत्ता हंतव्वा, अज्जावेयव्वा, परिघेत्तव्वा, परितावेयव्वा, किलामेयव्वा, उद्दवेयव्वा। द्रव्यानुयोग-(२) सीधे पंक्ति में बैठ, शपथपूर्वक माया का प्रयोग न करते हुए हाथ को पसारो, यह कह कर वह पुरुष उन दार्शनिकों के सामने जलते अंगारे से भरे हुए पात्र को लोहे की संडासी से पकड़ कर उनके हाथों की ओर आगे बढ़ाता है। तब वे धर्म के आदिकर्ता, नानाप्रज्ञावाले यावत् नानाअध्यवसाय से युक्त दार्शनिक अपना हाथ खींच लेते हैं। तब उस पुरुष ने धर्म के आदिकर्ता, नानाप्रज्ञावाले यावत् नानाअध्यवसाय से युक्त उन सब से इस प्रकार कहा'हे धर्म के आदिकर्ता ! नानाप्रज्ञावाले ! यावत् नानाअध्यवसाय से युक्त दार्शनिक प्रावादुकों ! तुम किसलिए हाथ को पीछे खींच रहे हो? क्या हाथ नहीं जलेंगे? हाथ जलने से क्या होगा? 'दुःख होगा-दुःख-होगा'-यह मानकर तुम हाथ हटा लेते हो। यह तुला (निश्चित) है, यह प्रमाण है और यह समवसरण है। प्रत्येक के लिए तुला है, प्रत्येक के लिए प्रमाण है और प्रत्येक के लिए समवसरण है। जो ये श्रमण-ब्राह्मण ऐसा आख्यान यावत् ऐसा प्ररूपण करते हैं किसब प्राण यावत् सब सत्वों का हनन किया जा सकता है, अधीन बनाया जा सकता है, दास बनाया जा सकता है, परिताप दिया जा सकता है, क्लान्त किया जा सकता है और प्राणों से वियोजित किया जा सकता है। वे भविष्य में शरीर के छेदन भेदन को प्राप्त होंगे। वे भविष्य में जन्म, जरा, मरण योनिजन्म संसार में बारबार उत्पत्ति, गर्भवास, भव-प्रपंच में व्याकुल चित्त वाले होंगे। वे बहुत दंड, मुंडन, तर्जन, ताडन, सांकल से बँधना, घुमाना तथा मातृमरण, पितृमरण, भ्रातृमरण, भगिनीमरण, भार्यामरण, पुत्रमरण, पुत्री मरण, पुत्रवधुमरण एवं दरिद्रता, दौर्भाग्य, अप्रिय-संयोग, प्रिय-वियोग और अनेक दुःख व वैमनस्य के भागी होंगे। वे अनादि-अनन्त, लम्बे मार्गवाले, चतुर्गतिक संसाररूपी अरण्य में बार-बार परिभ्रमण करेंगे। वे सिद्ध नहीं होंगे यावत् सब दुःखों का अन्त नहीं करेंगे। यह तुला है, यह प्रमाण है और यह समवसरण है। प्रत्येक के लिए तुला है, प्रत्येक के लिए प्रमाण है और प्रत्येक के लिए समवसरण है। ६२. धर्मपक्षीय क्रियास्थान अब तेरहवाँ ईर्यापथिक क्रियास्थान कहा जाता हैइस जगत् में इस क्रिया स्थान में आत्म कल्याण के लिए संवृत अणगार१. ईर्या-समिति से युक्त, २. भाषा-समिति से युक्त, ते आगंतु छेयाए ते आगंतु भेयाए, ते आगंतुं जाइ-जरा-मरण-जोणिजम्मणं-संसार-पुणब्भवगब्भवास-भवपवंच-कलंकली भागिणो भविस्संति। ते बहूणं दंडणाणं मुंडणाणं तज्जणाणं अंदुबंधणाणं घोलणाणं माइमरणाणं पिइमरणाणं भाइमरणाणं भगिणीमरणाणं भज्जामरणाणं पुत्तमरणाणं धूयमरणाणं सुण्हामरणाणं, दारिदाणं दोहग्गाणं अप्पियसंवासाणं पियविप्पओगाणं बहूणं दुक्खदोमणसाणं आभागिणो भविस्संति, अणाइयं च णं अणवदग्गं दीहमद्धं चाउरंतसंसारकंतारं भुज्जो-भुज्जो अणुपरियट्टिस्संति, ते नो सिज्झिस्संति जाव नो सव्वदुक्खाणं अंतं करिस्संति, एस तुला, एस पमाणे, एस समोसरणे, पत्तेयं तुला, पत्तेयं पमाणे, पत्तेयं समोसरणे। -सुय. सु.२, अ.२,सु.७१८-७१९ ६२. धम्मपक्खीय किरिया ठाणं अहावरे तेरसमे किरियाठाणे इरियावहिए त्ति आहिज्जइ, इह खलु अत्तत्ताए संवुडस्स अणगारस्स १. इरियासमियस्स, २. भासासमियस्स,
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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