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________________ ९५४ इमं हत्यच्छिण्णय करेह, इमं पायच्छिण्णयं करेह, इमं कण्णच्छिण्णवं करेह, इम नकओट्ठ-सीसमुहच्छिण्णय करेह, इमं वेयच्छिण्णयं करेह, इमं अंगछिण्णयं करेह, इमं हिययुप्पाडिययं करेह इमं णयनुपाडियय करेह, इमं दंसणुष्पाडिययं करेह, इमं वसप्पाडिययं करेह, इमं जिप्पाडिययं करेह, इमं उल्लंबिययं करेह, इमं सिय करेह, इमं घोलिये करेह, इमं सूलाइयं करेह, इमं सूलाभिण्णयं करेह, इमं खारवत्तियं करेह, इमं वज्झवत्तिय करेह. इमं सीहपुच्छियगं करेह, सहपुच्छय करेह " इमं कडग्गिदड्ढयगं करेह, इमं कागणिमंसखावियगं करेह, इमं भत्तपाणनिरुद्धयं करेह, इमं जावज्जीवं वहबंधणं करेड, इमं अण्णयरेणं असुभेण कुमारेण मारेह जाविय से अतिरिया परिसा भवइ तं जहा माया इवा, पिया इवा, भाया इवा, भगिणी इ वा, भज्जा इ वा, पुत्ता इवा, धूया इवा, सुण्हा इवा, तेसिं पि य णं अण्णवरसि अहालहुसगंति अवराहंसि सयमेव गरुयं दंड णिव्यत्ते तं जहा सीओदगवियसि ओबोलेता भवइ जहा मित्तदोसवित्तए जाय अहिए परसि लोगसि ते दुक्खंति सोयंति जूरंति तिप्पंति पिट्टंति परितप्पंति । ते दुक्खण-सोयण-जूरण-तिप्पण-पिट्टण-परितप्पण-वहबंधणपरिकिलेसाओ अप्पडिविरया भवंति । एवामेव ते इत्थिकामेहिं मुच्छिया गिद्धा गढिया अज्झववन्ना जाव वासाई चउपंचमाई छद्दसमाई वा अप्पयरो वा भुज्जयरो वा कालं भुंजित्तु भोगभोगाई पसवित्ता वेरायतणाई संचिणित्ता बहूणि कूराणि कम्माई उस्सण्णं संभारकडेण कम्मुणा । से जहाणामए-अयगोले इ वा, सेलगोले इ वा, उदगंसि पक्खित्ते समाणे उदगतलमइयइत्ता अहे धरणितल-पइट्ठाणे भवइ । इसके हाथ काट दें, इसके पैर काट दें, इसके कान काट दें, इसका नाक, होठ, मस्तक और मुंह काट दें, इसे नपुंसक कर दें, इसके अंग काट दें, इसका हृदय उखाड़ दें, इसकी आँखें निकाल दें, इसके दांत निकाल दें, इसके अंडकोश निकाल दें, इसकी जीभ खींच लें, द्रव्यानुयोग - (२) इसे कुए में लटका दें, इसे घसीटें, इसे पानी में डुबो दें, इसे शूली पर लटका दें, इसे शूली में पिरोकर टुकड़े-टुकड़े कर दें, इस पर नमक छिड़क दें, इस पर चमड़ा बाँध दें, इसकी जननेन्द्रिय को काट दें, इसके अंडकोशों को तोड़कर इसके मुंह में डाल दें, इसे चटाई में लपेट कर आग में जला दें, इसके मांस के छोटे-छोटे टुकड़े कर इसे खिलाएँ, इसका भोजन - पानी बन्द कर दें, इसको जीवन भर पीटें और बांधे रखें, इसे दूसरे किसी प्रकार के अशुभ और बुरी मार से मारें। जो उसकी आन्तरिक परिषद् होती है, यथामाता-पिता, भाई, बहिन, पत्नी, पुत्र, पुत्री अथवा पुत्रवधू, उनके द्वारा किसी प्रकार का छोटा-सा अपराध होने पर स्वयं भारी दंड का प्रयोग करता है, यथा ठंडे पानी में उसके शरीर को डुबोता है या जिस प्रकार मित्रद्वेष प्रत्ययिक क्रियास्थान में दण्ड कहे गये हैं वैसे ही दण्ड देते हैं और वे परलोक में अपना अहित करते हैं। दुःखी होते हैं, शोक करते हैं, खिन्न होते हैं, आँसू बहाते हैं, पीटे जाते हैं और परितप्त होते हैं। वे दुःख, शोक, खेद, अश्रुविमोचन, पीड़ा, परिताप, वध, बन्धन और परिक्लेश से विरत नहीं होते हैं। इसी प्रकार वे स्त्री-कामों में मूर्च्छित, गृद्ध, प्रथित, आसक्त होकर, चार-पांच छह-या दस वर्षों तक, कम या अधिक काल तक भोगों को भोग कर वैर के आयतनों को जन्म देकर, अनेक बार बहुत क्रूर कर्मों का संचय कर, प्रचुर मात्रा में किए गए कर्मों के कारण दब जाते हैं। जैसे- लोहे का गोला अथवा पत्थर का गोला जल में डालने पर, जल के तल को पार कर धरती के तल पर जाकर टिकता है,
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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