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________________ ९२६ ४२. सरीरेंदिय जोगणिव्यत्तणकाले किरिया परूवणं प. जीवेनं भंते! ओरालियासरीरं निव्यतेमाणे कइ किरिए ? उ. गोयमा ! सिव तिकिरिए सिय चउकिरिए सिय पंचकरिए। एवं पुढविकाइए वि जाव मणुस्से । प. जीवा णं भंते ! ओरालियसरीर निव्वत्तेमाणा कइ किरिया ? उ. गोयमा ! तिकिरिया वि, चउकिरिया वि, पंचकिरिया वि। एवं पुढविकाइया वि जाव मणुस्सा । एवं वेव्वियसरीरेण वि दो दंडगा गवरं जस्स अस्थि उब्वियं । एवं जाव कम्मगसरीर। एवं सोइदियं जाव फासेदिय एवं मणजोगं, वइजोगं; कायजोगं जस्स जं अस्थि तं भाणियव्यं । एए एगलपुहतेणं छब्बीसं दंडगा । " - विया. स. १७, उ. १, सु. १८-२७ ४३. जीव- चउवीसदंडएसु किरियाहिं कम्मपयडीबंधाप. जीवेण भंते! पाणाड्याएण कड कम्मपगडीओ बंधड़ ? उ. गोयमा ! सत्तविहबंधए वा अट्ठविहबंधए था। दं. १ २४ एवं रइए जाव निरंतर बेमाणिए । प. जीवा णं भंते! पाणाइवाएणं कइ कम्मपगडीओ बंधति ? उ. गोयमा ! सत्तविहबंधगा वि, अट्ठविहबंधगा वि । प. दं. १. णेरइया णं भंते ! पाणाइवाएणं कइ कम्मपगडीओ बंधति ? उ. गोयमा ! १. सव्वे वि ताव होज्जा सत्तविहबंधगा, २. अहवा सत्तविहबंधना व अट्ठविहबंधने य ३. अहवा सत्तविहबंधगा य अट्ठविहबंधगा य दं. २ ११. एवं असुरकुमारा वि जाव धणियकुमारा। द्रव्यानुयोग - (२) ४२. शरीर - इन्द्रिय और योगों के रचना काल में क्रियाओं का प्ररूपण प्र. भंते! औदारिक शरीर को निष्पन्न करता (बनाता) हुआ जीव कितनी क्रियाओं वाला है ? उ. गौतम ! कदाचित् तीन, चार या पाँच क्रियाओं वाला है। इसी प्रकार पृथ्वीकायिक से लेकर मनुष्य पर्यन्त जानना चाहिए। प्र. भंते ! औदारिक शरीर को निष्पन्न करते हुए अनेक जीव कितनी क्रियाओं वाले हैं ? उ. गौतम ! तीन, चार या पाँच क्रियाओं वाले हैं। इसी प्रकार अनेक पृथ्वीकायिकों से लेकर अनेक मनुष्यों पर्यन्त कहना चाहिए। इसी प्रकार वैक्रिय शरीर के भी (एक वचन और बहुवचन की अपेक्षा) दो दण्डक कहने चाहिए। विशेष- ज़िन जीवों के वैक्रिय शरीर होता है उनकी अपेक्षा जानना चाहिए। इसी प्रकार कार्मणशरीर पर्यन्त कहना चाहिए। इसी प्रकार श्रोत्रेन्द्रिय से लेकर स्पर्शेन्द्रिय पर्यन्त कहना चाहिए। इसी प्रकार मनोयोग, वचनयोग और काययोग के विषय में जिसके जो हो उसके लिए कहना चाहिए। इस प्रकार एकवचन बहुवचन की अपेक्षा कुल छब्बीस दण्डक होते हैं। ४३. जीव- चौबीस दंडकों में क्रियाओं द्वारा कर्मप्रकृतियों का बंधप्र. भंते! एक जीव प्राणातिपात क्रिया से कितनी कर्मप्रकृतियाँ बाँधता है ? उ. गौतम ! सात या आठ कर्मप्रकृतियाँ बाँधता है। दं. १-२४ इसी प्रकार नैरयिक से लेकर वैमानिक पर्यन्त कर्म प्रकृतियों का बन्ध कहना चाहिए। प्र. भंते! अनेक जीव प्राणातिपात क्रिया से कितनी कर्मप्रकृतियों बाँधते हैं ? उ. गौतम ! सात या आठ कर्मप्रकृतियाँ बाँधते हैं । प्र. दं. १ भंते ! अनेक नारक प्राणातिपात क्रिया से कितनी कर्मप्रकृतियाँ बाँधते हैं? उ. गौतम ! १. वे सब नारक सात कर्मप्रकृतियाँ बाँधते हैं। .. अथवा अनेक नारक सात कर्मप्रकृतियों का बन्ध करने वाले होते हैं और एक नारक आठ कर्म प्रकृतियों का बन्ध करने वाला होता है। ३. अथवा अनेक नारक सात कर्मप्रकृतियों का बन्ध करने वाले और अनेक नारक आठ कर्मप्रकृतियों का बन्ध करने वाले होते हैं। दं. २- ११ इसी प्रकार असुरकुमारों से स्तनितकुमारों पर्यन्त कर्मप्रकृतियों के बन्ध कहना चाहिए।
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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