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________________ क्रिया अध्ययन -( ९१९ ) 'अन्नयरं पि तसपाणं हणइ, नो अन्नयरे वि तसे पाणे हणइ?' उ. गोयमा ! तस्स णं एवं भवइ, एवं खलु अहे एगे अन्नयरं तसं पाणं हणामि से णं एगं अन्नयरं तसं पणं हणमाणे अणेगे जीवे हणइ, ते तेणढेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ'अन्नयरं पि तसपाणं हणइ, नो अन्नयरे वि तसे पाणे हणइ।' प. पुरिसे णं भंते ! इसिं हणमाणे किं इसिं हणइ, नो इसिं हणइ? उ. गोयमा ! इसिं पि हणइ, नो इसिं पिहणइ। प. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ "इसिं पि हणइ, नो इसिं पि हणइ?" उ. गोयमा ! तस्स णं एवं भवइ एवं खलु अहं एग इसिं हणामि से णं एग इसिं हणमाणे अणंते जीवे हणइ। से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ"इसिं पि हणइ,नो इसिं पि हणइ।" -विया. स. ९, उ.३४, सु.१-६ ३४. हणमाण पुरिसस्स-फासण परूवणंप. पुरिसे णं भंते ! हणमाणे किं पुरिसवेरेणं पुढे, नोपुरिसवेरेणं पुढे ? 'वह पुरुष उस त्रसजीव को भी मारता है और उसके सिवाय अन्य त्रसजीवों को भी मारता है?' उ. गौतम ! घातक के मन में ऐसा विचार होता है कि मैं उसी त्रसजीव को मार रहा हूँ किन्तु वह उस त्रसजीव को मारता हुआ उसके सिवाय अन्य अनेक त्रसजीवों को भी मारता है। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि'वह पुरुष उस त्रस जीव को भी मारता है और उसके सिवाय अन्य त्रस जीवों को भी मारता है।' प्र. भन्ते ! कोई पुरुष ऋषि को मारता हुआ क्या ऋषि को ही मारता है या नोऋषि (ऋषि के सिवाय अन्य) जीवों को भी मारता है? उ. गौतम ! वह (ऋषि घातक) ऋषि को भी मारता है और नोऋषि को भी मारता है। प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि 'ऋषि को मारने वाला वह पुरुष ऋषि को भी मारता है और नोऋषि को भी मारता है।' उ. गौतम ! ऋषि को मारने वाले उस पुरुष के मन में ऐसा विचार होता है कि-'मैं एक ऋषि को मारता हूँ किन्तु वह एक ऋषि को मारता हुआ अनन्त जीवों को मारता है।' इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि'ऋषि को मारने वाला पुरुष ऋषि को भी मारता है और नोऋषि को भी मारता है।' ३४. मारते हुए पुरुष के वैर स्पर्शन का प्ररूपणप्र. भन्ते ! पुरुष को मारता हुआ कोई व्यक्ति क्या पुरुष वैर से स्पृष्ट होता है या नोपुरुष वैर (पुरुष के सिवाय अन्य जीव के साथ) से स्पृष्ट होता है? उ. गौतम ! १. वह व्यक्ति नियमतः पुरुषवैर से स्पृष्ट होता है। २. अथवा पुरुषवैर से और नोपुरुषवैर से स्पृष्ट होता है। ३. अथवा पुरुषवैर से और नोपुरुष वैरों (पुरुषों के अतिरिक्त अनेक जीवों के वैर) से स्पृष्ट होता है। इसी प्रकार अश्व से चित्रल पर्यन्त (वैर से स्पृष्ट होने) के विषय में भी जानना चाहिए, कि अथवा चित्रल वैर से स्पृष्ट होता है और नो चित्रल वैरों से स्पृष्ट होता है। प्र. भन्ते ! ऋषि को मारता हुआ कोई पुरुष क्या ऋषिवैर से स्पृष्ट होता है या नोऋषिवैर से स्पृष्ट होता है? उ. गौतम ! १. वह (ऋषिघातक) नियमतः ऋषिवैर से स्पृष्ट होता है। २. अथवा ऋषिवैर से और नोऋषि वैर से स्पृष्ट होता है। ३. अथवा ऋषि वैर से और नो ऋषि वैरों (ऋषियों के अतिरिक्त अनेक जीवों के वैर) से स्पृष्ट होता है। ३५. अणगार के अर्श छेदक वैद्य और अणगार की अपेक्षा क्रिया का प्ररूपणएक समय श्रमण भगवान् महावीर राजगृहनगर के उ. गोयमा ! १.नियमा ताव पुरिसवेरेणं पुढे, २. अहवा पुरिसवेरेण य णोपुरिसवेरेण य पुढे, ३. अहवा पुरिसवेरेण य नोपुरिसवेरेहि य पुढे । एवं आसं जाव चिल्ललगं जाव अहवा चिल्लगवरेण य, णो चिल्लगवेरेहि य पुठे। प. पुरिसे णं भंते ! इसिं हणमाणे किं इसिवेरेणं पुढें, णो इसि वेरेणं पुढे? उ. गोयमा ! १.नियमा ताव इसिवेरेणं पुढे, २. अहवा इसिवेरेण य णो इसिवेरेण य पुढे, ३. अहवा इसिवेरेण य नो इसिवेरेहि य पुठे। -विया. स. ९, उ.३४,सु.७-८ ३५. अणगारस्स अंसिया छेयक वेज्ज-अणगारं च किरिया परूवणंतए णं समणे भगवं महावीरे अन्नया कयाइ रायगिहाओ
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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