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________________ क्रिया अध्ययन ९१७ अंतो छण्हं मासाणं मरइ काइयाए जाव पाणाइवाय किरियाए पंचकिरियाहिं पुढें। बाहिं छह मासाणं मरइ काइयाए जाव पारियावणियाए चउहिं किरियाहिं पुढें। -विया. स. १,उ.८, सु.७ ३०. तणदाहगस्स किरियापरूवणंप. पुरिसे णं भंते ! कच्छंसि वा जाव वणविदुग्गंसि वा तणाई ऊसविय-ऊसविय अगणिकायं णिसिरइ तावं च णं भंते! से पुरिसे कइ किरिए? उ. गोयमा ! सिय तिकिरिए, सिय चउकिरिए, सिय पंचकिरिए। प. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ सिय तिकिरिए, सिय चउकिरिए, सिय पंचकिरिए। उ. गोयमा ! जे भविए उस्सवणयाए तिहिं। उस्सवणयाए वि, णिसिरणयाए वि, णो दहणयाए चउहिं। यदि मरने वाला छह मास के अन्दर मरे, तो मारने वाला कायिकी यावत् प्राणातिपातिकी इन पांचों क्रियाओं से स्पृष्ट होता है। यदि मरने वाला छह मास के पश्चात् मरे तो मारने वाला कायिकी यावत् पारितापनिकी इन चार क्रियाओं से स्पृष्ट होता है। ३०. तृणदाहक की क्रियाओं का प्ररूपणप्र. भंते ! कच्छ में यावत् गहन वन में कोई पुरुष तिनके इकट्ठे करके अग्नि जलाए तब वह पुरुष कितनी क्रिया वाला होता है? उ. गौतम ! वह कदाचित् तीन क्रियाओं वाला, कदाचित् चार क्रियाओं वाला और कदाचित् पांच क्रियाओं वाला होता है। प्र. भंते ! किस कारण से.ऐसा कहा जाता है कि "कदाचित् तीन क्रिया वाला, कदाचित् चार क्रिया वाला और कदाचित् पांच क्रिया वाला होता है?" उ. गौतम ! जो पुरुष तिनके इकट्ठे करता है, वह तीन क्रियाओं से स्पृष्ट होता है। जो पुरुष तिनके भी इकट्ठे कर लेता है और आग भी पैदा करता है, किन्तु जलाता नहीं है वह चार क्रियाओं से स्पृष्ट होता है। जो तिनके भी इकट्ठे करता है, आग भी पैदा करता है और जलाता भी है तब वह पुरुष कायिकी यावत् प्राणातिपातिकी इन पांचों क्रियाओं से स्पृष्ट होता है। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"वह पुरुष कदाचित् तीन क्रियाओं वाला, कदाचित् चार क्रियाओं वाला और कदाचित् पाँच क्रियाओं वाला होता है।" ३१. तपे हुए लोहे को उलट-पुलट करने वाले पुरुष की क्रियाओं का प्ररूपणप्र. भंते ! भट्टी में से तपे हुए लोहे को, लोहे की संडासी से उलटपुलट करने वाले पुरुष को कितनी क्रियाएं लगती हैं? उ. गौतम ! जब वह पुरुष भट्टी में से तपे हुए लोहे को लोहे की संडासी से उलट-पुलट करता है, तब वह पुरुष कायिकी यावत् प्राणातिपातिकी इन पांच क्रियाओं से स्पृष्ट होता है। जिन जीवों के शरीरों से लोहा बना है, भट्टी बनी है, संडासी बनी है, अंगारे बने हैं, अंगारे निकालने की लोहे की छड़ बनी है और धमण बनी है। जे भविए उस्सवणयाए वि, णिसिरणयाए वि, दहणयाए वि, तावं च णं से पुरिसे काइयाए जाव पंचहि किरियाहिं पुढे। से तेणढेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ"सिय तिकिरिए, सिय चउकिरिए, सिय पंचकिरिए।" -विया. स. १, उ.८, सु.५ ३१. तत्तलोह उक्खेवनिक्खेवमाण पुरिसस्स किरियापरूवणं प. पुरिसे णं भंते ! अयं अयकोळंसि अयोमएणं संडासएणं उव्विहमाणे वा पव्विहमाणे वा कइ किरिए? उ. गोयमा ! जावं च णं से पुरिसे अयं अयकोट्ठसि अयोमएणं संडासएणं उब्विहइ वा, पव्विहइ वा तावं च णं से पुरिसे काइयाए जाव पाणाइवायकिरियाए तावं च मारयाहिं पुठे, रहितो अए नि जेसि पि य णं जीवाणं सरीरेहिंतो अए निव्वत्तिए, अयकोठे निव्वत्तिए, संडासए निव्वत्तिए, इंगाला निव्वत्तिया, इंगालकड्ढिणी निव्वत्तिया, भत्था निव्वत्तिया। ते वि य णं जीवा काइयाए जाव पाणाइवायकिरियाए पंचहिं किरियाहिं पुट्ठा। प. पुरिसे णं भंते ! अयं अयकोट्ठाओ अयोमएणं संडासएणं गहाय अहिगरणिंसि उक्खिवमाणे वा निक्खिवमाणे वा वे सभी जीव कायिकी यावत् प्राणातिपातिकी इन पांचों क्रियाओं से स्पृष्ट होते हैं। प्र. भंते ! भट्टी में से लोहे को, लोहे की संडासी से पकड़ कर एरण पर रखते हुए उठाते हुए पुरुष को कितनी क्रियाएं लगती हैं ? कइ किसिगरणिसि उविकोटाओ अयोमा उ. गोयमा ! जावं च णं से पुरिसे अयं अयकोट्ठाओ अयोमएणं संडासएणं गहाय अहिगरणिंसि उक्खिवइ वा निक्खिवइ वा तावं च णं से पुरिसे काइयाए जाव पाणाइवायकिरियाएपंचहि किरियाहिं पुढें, उ. गौतम ! जब वह पुरुष भट्टी में से लोहे को, लोहे की संडासी से पकड़ कर एरण पर रखता है और उठाता है तब वह पुरुष कायिकी यावत् प्राणातिपातिकी इन पांचों क्रियाओं से स्पृष्ट होता है।
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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