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________________ क्रिया अध्ययन ९०९ १८. कय-विक्कयमाणाणं आरंभियाइ किरिया परूवणंप. गाहावइस्स णं भंते ! भंडं विक्किणमाणस्स केइ भंड अवहरेज्जा, तस्स णं भंते ! तं भंडं अणुगवेसमाणस्सकिं आरंभिया किरिया कज्जइ, पारिग्गहिया किरिया कज्जइ, मायावत्तिया किरिया कज्जड. अपच्चक्खाणकिरिया कज्जइ, मिच्छादसणवत्तिया किरिया कज्जइ? उ. गोयमा ! आरंभिया किरिया कज्जइ, पारिग्गहिया किरिया कज्जइ, मायावत्तिया किरिया कज्जइ, अपच्चक्खाणकिरिया कज्जइ, मिच्छादसणवत्तियाकिरिया सिय कज्जइ,सिय नो कज्जइ, अह से भंडे अभिसमण्णागए भवइ, तओ से पच्छा सव्वाओ ताओ पयणुई भवंति। प. गाहावइस्स णं भंते ! भंडं विक्किणमाणस्स कइए भंडं साइज्जेज्जा, भंडे य से अणुवणीए सिया, गाहावइस्स णं भंते ! ताओ भंडाओ किं आरंभिया किरिया कज्जइ जाव मिच्छादसणवत्तिया किरिया कज्जइ, कइयस्स वा ताओ भंडाओ किं आरंभिया किरिया कज्जइ जाब मिच्छादसणवत्तिया किरिया कज्जइ? १८. क्रेता-विक्रेताओं के आरंभिकी आदि क्रियाओं का प्ररूपणप्र. भंते ! किराने का सामान बेचते हुए किसी गृहस्थ का वह किराने का माल कोई चुरा ले तो, भंते ! उस किराने के सामान की खोज करते हुए उस गृहस्थ को, क्या आरंभिकी क्रिया लगती है? पारिग्रहिकी क्रिया लगती है? मायाप्रत्ययिकी क्रिया लगती है? अप्रत्याख्यानिकी क्रिया लगती है या मिथ्यादर्शन-प्रत्ययिकी क्रिया लगती है ? उ. गौतम ! उस पुरुष को आरंभिकी क्रिया लगती है। पारिग्रहिकी क्रिया लगती है। मायाप्रत्ययिकी क्रिया लगती है एवं अप्रत्याख्यानिकी क्रिया भी लगती है, किन्तु मिथ्यादर्शनप्रत्ययिकी क्रिया कदाचित् लगती है और कदाचित् नहीं लगती है। यदि उस पुरुष को चुराया हुआ सामान वापस मिल जाता है तो वे सब क्रियाएं हल्की हो जाती हैं। प्र. भंते ! किराना बेचने वाले उस गृहस्थ से किसी व्यक्ति ने किराने का माल खरीद लिया है और सौदे को पक्का करने के लिए खरीददार ने बयाना भी दे दिया, किन्तु वह किराने का माल अभी तक ले नहीं गया है तोभंते ! उस माल बेचने वाले गृहस्थ को उस किराने के माल से आरम्भिकी यावत् मिथ्यादर्शन-प्रत्ययिकी क्रियाओं में से कौन सी क्रिया लगती है ? और खरीदने वाले को उस किराने के माल से आरम्भिकी यावत् मिथ्यादर्शनप्रत्ययिकी क्रियाओं में से कौन-सी क्रिया लगती है? उ. गौतम ! उस गृहपति को उस किराने के सामान से आरंभिकी यावत् अप्रत्याख्यानिकी क्रियाएं लगती हैं। मिथ्यादर्शनप्रत्ययिकी क्रिया कदाचित् लगती है और कदाचित् नहीं लगती है। खरीददार के तो ये सब क्रियाएं हल्की हो जाती हैं। प्र. भंते ! किराना बेचने वाले गृहस्थ के यहां से खरीददार उस माल को अपने यहाँ ले आया तो भंते ! उस खरीददार को उस खरीदे हुए किराने के माल से आरम्भिकी यावत् मिथ्यादर्शनप्रत्ययिकी क्रियाओं में से कौन-सी क्रिया लगती है? तथाउस विक्रेता गृहस्थ को उस माल से आरंभिकी यावत् मिथ्यादर्शन प्रत्ययिकी क्रियाओं में से कौन-सी क्रिया लगती है? उ. गौतम ! खरीददार को उस किराने के सामान से प्रारंभ की (आरम्भिकी यावत् अप्रत्याख्यानिकी) चारों क्रियाएं लगती हैं। मिथ्यादर्शन प्रत्ययिकी क्रिया विकल्प से लगती है। विक्रेता गृहस्थ को तो ये पांचों क्रियाएं हल्की होती हैं। उ. गोयमा ! गाहावइस्स ताओ भंडाओ आरंभिया किरिया कज्जइ जाव अपच्चक्खाण किरिया कज्जइ, मिच्छादसणवत्तिया किरिया सिय कज्जइ, सिय नो कज्जइ, कइयस्स णं ताओ सव्वाओ पयणुई भवंति। प. गाहावइस्स णं भंते ! भंडं विक्किणमाणस्स कइए भंडे साइज्जेज्जा भंडे से उवणीए सिया, कइयस्स णं भंते ! ताओ भंडाओ किं आरंभिया किरिया कज्जइ जाव मिच्छादसणवत्तिया किरिया कज्जइ, तं जहा गाहावइस्स वा ताओ भंडाओ किं आरंभिया किरिया कज्जइ जाव मिच्छादसणवत्तिया किरिया कज्जइ? उ. गोयमा ! कइयस्स ताओ भंडाओ हेट्ठिल्लाओ चत्तारि किरियाओ कज्जंति, मिच्छादसणवत्तिया किरिया भयणाए, गाहावइस्स णं ताओ सव्वाओ पयणुई भवंति।
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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