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________________ क्रिया अध्ययन ९०३ ३. अत्थेगइए जीवे एगइयाओ जीवाओ ज समयं काइयाए आहिगरणियाए पाओसियाए किरियाए पुढे तं समयं पारियावणियाए किरियाए अपुढे पाणाइवायकिरियाए अपुढे। ४. अत्थेगइए जीवे एगइयाओ जीवाओ जं समय काइयाए आहिगरणियाए पाओसियाए किरियाए अपुढे तं समयं पारियावणियाए किरियाए अपुढे पाणाइवायकिरिया अपुढे। -पण्ण. प. २२. सु. १६२० ९. जीव-चउवीसदंडएसु काइयाइ पंचकिरियाणं परोप्परसहभावोप. जस्स णं भंते ! जीवस्स काइया किरिया कज्जइ तस्स आहिगरणिया किरिया कज्जइ जस्स आहिगरणिया किरिया कज्जइ तस्स काइया किरिया कज्जइ? उ. गोयमा ! जस्स णं जीवस्स काइया किरिया कज्जइ, तस्स आहिगरणी णियमा कज्जइ, जस्स आहिगरणी किरिया कज्जइ, तस्स वि काइया किरिया णियमा कज्जइ। जस्स णं भंते !जीवस्स काइया किरिया कज्जइ, तस्स पाओसिया किरिया कज्जइ? जस्स पाओसिया किरिया कज्जइ तस्स काइया किरिया कज्जइ? , उ. गोयमा ! एवं चेव। प. जस्स णं भंते ! जीवस्स काइया किरिया कज्जइ, तस्स पारियावणिया किरिया कज्जइ? जस्स पारियावणिया किरिया कज्जइ तस्स काइया किरिया कज्जइ? उ. गोयमा ! जस्स णं जीवस्स काइया किरिया कज्जइ, तस्स पारियावणिया किरिया सिय कज्जइ, सिय णो कज्जइ, जस्स पुण पारियावणिया किरिया कज्जइ, तस्स काइया किरिया णियमा कज्जइ। एवं पाणाइवायकिरिया वि। एवं आदिल्लाओ परोप्परं णियमा तिण्णि कजंति। ३. कोई जीव, एक जीव की अपेक्षा से जिस समय कायिकी, आधिकरणिकी और प्राद्वेषिकी क्रिया से स्पृष्ट होता है, उस समय पारितापनिकी क्रिया से भी अस्पृष्ट होता है और प्राणातिपातकी क्रिया से भी अस्पृष्ट होता है। ४. कोई जीव, एक जीव की अपेक्षा से जिस समय कायिकी, आधिकरणिकी और प्राद्वेषिकी क्रिया से अस्पृष्ट होता है उस समय पारितापनिकी क्रिया से भी अस्पृष्ट होता है और प्राणातिपातकी क्रिया से भी अस्पृष्ट होता है। ९. जीव चौबीस दंडकों में कायिकादि पांच क्रियाओं का परस्पर सहभावप्र. भंते ! जिस जीव के कायिकी क्रिया होती है, क्या उसके आधिकरणिकी क्रिया होती है? जिस जीव के आधिक रणिकी क्रिया होती है, क्या उसके कायिकी क्रिया होती है? उ. गौतम ! जिस जीव के कायिकी क्रिया होती है, उसके नियम से आधिकरणिकी क्रिया होती है, जिसके आधिकरणिकी क्रिया होती है, उसके भी नियम से कायिकी क्रिया होती है। प्र. भंते ! जिस जीव के कायिकी क्रिया होती है, क्या उसके प्राद्वेषिकी क्रिया होती है? जिसके प्राद्वेषिकी क्रिया होती है, क्या उसके कायिकी क्रिया होती है? उ. गौतम ! पूर्ववत् (नियमतः होना) जानना चाहिए। प्र. भंते ! जिस जीव के कायिकी क्रिया होती है, क्या उसके पारितापनिकी क्रिया होती है? जिसके पारितापनिकी क्रिया होती है, क्या उसके कायिकी क्रिया होती है? उ. गौतम ! जिस जीव के कायिकी क्रिया होती है, उसके पारितापनिकी क्रिया कदाचित् होती है और कदाचित् नहीं होती है, किन्तु जिसके पारितापनिकी क्रिया होती है, उसके कायिकी क्रिया निश्चित होती है। इसी प्रकार प्राणातिपात क्रिया का सहभाव कहना चाहिए। इस प्रकार प्रारम्भ की तीन क्रियाओं का परस्पर सहभाव नियम से होता है। जिसके प्रारम्भ की तीन क्रियाएं होती हैं, उसके आगे की दो क्रियाएं कदाचित् होती हैं और कदाचित् नहीं होती हैं, जिसके आगे की दो क्रियाएँ होती हैं, उसके प्रारम्भ की तीन क्रियाएं निश्चित होती हैं। प्र. भंते ! जिस जीव के पारितापनिकी क्रिया होती है, क्या उसके प्राणातिपात क्रिया होती है? जिसके प्राणातिपात क्रिया होती है, क्या उसके पारितापनिकी क्रिया होती है ? M जस्स आदिल्लाओ तिण्णि कज्जति, तस्स उवरिल्लाओ दोण्णि सिय कन्जंति, सिय णो कज्जति, जस्स उवरिल्लाओ दोण्णि कज्जति, तस्स आइल्लाओ तिण्णि णियमा कज्जति। प. जस्स णं भंते ! जीवस्स पारियावणिया किरिया कज्जइ, तस्स पाणाइवायकिरिया कज्जइ? जस्स पाणाइवायकिरिया कज्जइ तस्स पारियावणिया किरिया कज्जइ?
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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