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________________ क्रिया अध्ययन (८९९) १. काइया चेव, २. अहिगरणिया चेव। १. काइया किरिया दुविहा पण्णत्ता,तं जहा १. अणुवरयकायकिरिया चेव, २. दुपउत्तकायकिरिया चेव। २. अहिगरणिया किरिया दुविहा पण्णत्ता,तं जहा १. संजोयणाधिकरणिया चेव, २. णिव्वत्तणाधिकरणिया चेव। दो किरियाओ पण्णत्ताओ,तं जहा१. पाओसिया चेव, २. पारियावणिया चेव। १. पाओसिया किरिया दुविहा पण्णत्ता,तं जहा १. जीवपाओसिया चेव, २. अजीवपाओसिया चेव। -ठाणं अ.२, उ. २, सु. ५०/१-८ प. पाओसिया णं भंते ! किरिया कइविहा पण्णत्ता? उ. गोयमा ! तिविहा पण्णत्ता,तं जहा १.जे णं अप्पणो वा, २. परस्स वा, ३. तदुभयस्स वाअसुभं मणं पहारेइ। सेत्तं पाओसिया किरिया। -पण्ण. प. २२, सु. १५७० पारियावणिया किरिया दुविहा पण्णत्ता,तं जहा१. सहत्थपारियावणिया चेव, २. परहत्थपारियावणिया चेवरे। -ठाणं. अ.२, उ.२, सु.५०/९ प. पारियावणिया णं भंते ! किरिया कइविहा पण्णत्ता? १. कायिकी (काया से होने वाली) (क्रिया), २. आधिकरणिकी (शस्त्रादि से होने वाली) क्रिया। १. कायिकी क्रिया दो प्रकार की कही गई है, यथा १. अनुपरतकायक्रिया (विरति रहित व्यक्ति की क्रिया), २. दुष्प्रयुक्तकाय क्रिया (विषयासक्त की क्रिया)। २. आधिकरणिकी क्रिया दो प्रकार की कही गई है, यथा १. संयोजनाधिकरणिकी (शस्त्र जोड़ने की क्रिया), २. निर्वर्तनाधिकरणिकी (शस्त्र निर्माण की क्रिया)। क्रिया दो प्रकार की कही गई है, यथा१. प्राद्वेषिकी (ईर्ष्या करने की क्रिया), २. पारितापनिकी (परिताप देने की क्रिया)। प्राद्वेषिकी क्रिया दो प्रकार की कही गई है, यथा१. जीवप्राद्वेषिकी (जीव के प्रति ईर्ष्याभाव), २. अजीवप्राद्वेषिकी (अजीव के प्रति ईर्ष्याभाव)। प्र. भंते ! प्राद्वेषिकी (द्वेष उत्पन्न करने वाली) क्रिया कितने प्रकार की कही गई है? उ. गौतम ! तीन प्रकार की कही गई है, यथा १.स्व. (अपना), २. पर (अन्य का), ३. उभय (दोनों का) जिससे मन अशुभ परिणत हो जाता है। यह प्राद्वेषिकी क्रिया का वर्णन है। पारितापनिकी क्रिया दो प्रकार की कही गई है, यथा१. स्वहस्तपारितापनिकी (अपने हाथ से कष्ट देने की क्रिया) २. परहस्तपारितापनिकी (दूसरे के हाथ से कष्ट दिलाने की क्रिया)। प्र. भंते ! पारितापनिकी (परिताप देने वाली) क्रिया कितने प्रकार की कही गई है? उ. गौतम ! तीन प्रकार की कही गई है, यथा १. स्व, २. पर, ३. उभय, को जिससे दुःख उत्पन्न हो जाता है। यह पारितापनिकी क्रिया का वर्णन है। क्रिया दो प्रकार की कही गई है, यथा१. प्राणातिपात क्रिया (जीव वध से होने वाली क्रिया) २. अप्रत्याख्यान क्रिया (अविरति से होने वाली क्रिया) १. प्राणातिपात क्रिया दो प्रकार की कही गई है, यथा१. स्वहस्तप्राणातिपात क्रिया (अपने हाथ से मारने पर होने वाली क्रिया) २. परहस्तप्राणातिपात क्रिया (दूसरे के हाथ से मरवाने पर होने वाली क्रिया) प्र. भंते ! प्राणातिपात (जीव समाप्त करने वाली) क्रिया कितने प्रकार की कही गई है? उ. गौतम ! तीन प्रकार की कही गई है, यथा उ. गोयमा ! तिविहा पण्णत्ता,तं जहा १.जे णं अप्पणो वा, २. परस्स वा, ३. तदुभयस्स वाअसायं वेयणं उदीरेइ। सेत्तं पारियावणिया किरिया। -पण्ण. प. २२, सु. १५७१ दो किरियाओ पण्णत्ताओ,तं जहा१. पाणाइवाय किरिया चेव, २. अपच्चक्खाणकिरिया चेव। १. पाणाइवायकिरिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा १. सहत्थपाणाइवायकिरिया चेव, २. परहत्थपाणाइवायकिरिया चेव३। -ठाणं अ.२, उ.२, सु. ५०/१०-११ प. पाणाइवायकिरिया णं भंते ! कइविहा पण्णत्ता? उ. गोयमा ! तिविहा पण्णत्ता,तं जहा १. (क) पण्ण.प.२२,सु. १५६८-१५६९ (ख) विया.स.३,उ.३,सु.२-४ २. विया.स.३,उ.३,सु.५-६ ३. विया.स.३,उ.३,सु.७
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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