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________________ लेश्या अध्ययन ८७५ प. से केणट्टेणं भंते ! एवं वुच्चइ "सिय कण्हलेस्से नेरइए अप्पकम्मतराए, नीललेस्से नेरइए महाकम्मतराए?" उ. गोयमा ! ठिइं पडुच्च, से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ"सिय कण्हलेस्से नेरइए अप्पकम्मतराए, नीललेस्से नेरइए महाकम्मतराए।" प. सिय भंते ! नीललेस्से नेरइए अप्पकम्मतराए, काउलेस्से नेरइए महाकम्मतराए? उ. हंता, गोयमा ! सिया। प. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ “सिय नीललेस्से नेरइए अप्पकम्मतराए, काउलेस्से नेरइए महाकम्मतराए? उ. गोयमा ! ठिइं पडुच्च, से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ"सिय नीललेस्से नेरइए अप्पकम्मतराए काउलेस्से नेरइए महाकम्मतराए।" दं.२. एवं असुरकुमारे वि. णवरं-तेउलेस्सा अब्भहिया, दं.३-२४. एवं जाव वेमाणिया, जस्स जास्साओ तस्स तइ भाणियव्याओ, प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि"कृष्णलेश्या वाला नैरयिक कदाचित् अल्पकर्मवाला होता है और नीललेश्या वाला नैरयिक कदाचित् महाकर्मवाला होता है?" उ. गौतम ! स्थिति की अपेक्षा से ऐसा कहा जाता है। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"कृष्णलेश्या वाला नैरयिक कदाचित् अल्पकर्मवाला होता है और नीललेश्या वाला नैरयिक कदाचित् महाकर्मवाला होता है।" प्र. भंते ! क्या नीललेश्या वाला नैरयिक कदाचित् अल्पकर्मवाला होता है और कापोतलेश्या वाला नैरयिक कदाचित् महाकर्मवाला होता है? उ. हां, गौतम ! कदाचित् ऐसा होता है। प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि"नीललेश्या वाला नैरयिक कदाचित् अल्पकर्मवाला होता है और कापोतलेश्या वाला नैरयिक कदाचित् महाकर्मवाला होता है ?" उ. गौतम ! स्थिति की अपेक्षा ऐसा कहा जाता है। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"नीललेश्या वाला नैरयिक कदाचित् अल्पकर्मवाला होता है और कापोतलेश्या वाला नैरयिक कदाचित् महाकर्मवाला होता है। दं.२. इसी प्रकार असुरकुमार के विषय में भी कहना चाहिए। विशेष-उनमें एक तेजोलेश्या अधिक होती है। दं.३-२४. इसी प्रकार वैमानिक देवों पर्यन्त कहना चाहिए। जिसमें जितनी लेश्याएँ हों, उसकी उतनी लेश्याएँ कहनी चाहिए। ज्योतिष्क देवों के दण्डक का कथन नहीं करना चाहिए। क्योंकि ज्योतिष्कों में एक तेजोलेश्या ही है इसलिए उनमें अल्पकर्म महाकर्म की प्ररूपणा नहीं है। प्र. भंते ! क्या पद्मलेश्या वाला वैमानिक कदाचित् अल्पकर्म वाला और शुक्ललेश्या वाला वैमानिक कदाचित् महाकर्म वाला होता है? उ. हां, गौतम ! कदाचित् ऐसा होता है। प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि "पद्मलेश्या वाला वैमानिक कदाचित् अल्प कर्म वाला होता है और शुक्ललेश्या वाला वैमानिक कदाचित् महाकर्म वाला होता है? उ. गौतम ! स्थिति की अपेक्षा ऐसा कहा जाता है। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"पद्मलेश्या वाला वैमानिक कदाचित् अल्प कर्म वाला होता है और शुक्ललेश्या वाला वैमानिक कदाचित् महाकर्म वाला होता है।" शेष नैरयिक के समान अल्पकर्म वाला यावत् महाकर्मवाला होता है ऐसा कहना चाहिए। जोइसियस्स न भण्णइ, जोइसिएसु एगा तेउलेस्सा तत्थ नत्थि अप्पकम्म-महाकम्मपरूवणं, प. सिय भंते ! पम्हलेस्से वेमाणिए अप्पकम्मतराए, सुक्कलेस्से वेमाणिए महाकम्मतराए? उ. हता, गोयमा ! सिया। प. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ “पम्हलेस्से वेमाणिए अप्पकम्मतराए सुक्कलेस्से वेमाणिए महाकम्मतराए?" उ. गोयमा ! ठिई पडुच्च, से तेणट्टेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ“पम्हलेस्से वेमाणिए अप्पकम्मतराए, सुक्कलेस्से वेमाणिए महाकम्मतराए, सेसं जहा नेरइयस्स अप्पकम्मतराए जाव महाकम्मतराए। -विया. स.७, उ.३,सु.६-९
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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