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________________ ( ८५८ ) १. कण्हलेस्सा,२.नीललेस्सा, ३.काउलेस्सा, एवं जाव थणियकुमाराणं। पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं तओ लेस्साओ संकिलिट्ठाओ पण्णत्ताओ,तं जहा१.कण्हलेस्सा,२.नीललेस्सा,३.काउलेस्सा। पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं तओ लेस्साओ असंकिलिट्ठाओ पण्णत्ताओ,तं जहा१.तेउलेस्सा, २. पम्हलेस्सा, ३.सुक्कलेस्सा। मणुस्साणं तओ संकिलिट्ठाओ तओ असंकिलिट्ठाओ लेस्साओ एवं चेव। वाणंमतराणं जहा असुरकुमाराणं, -ठाणं अ.३, उ.१,सु. १४० २१. सलेस्स चउवीसदण्डएसुसमाहाराइसत्तदारा- . प. दं. १. सलेस्साणं भंते ! नेरइया सव्वे समाहारा, सव्वे समसरीरा, सव्वे समुस्सासणिस्सासा? उ. गोयमा ! णो इणढे समठे। प. सें केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ'सलेस्सा नेरइया नो सव्वे समाहारा नो सव्वे समसरीरा, जाव नो सव्वे समुस्सासणिस्सासा? द्रव्यानुयोग-(२) १. कृष्णलेश्या, २. नीललेश्या, ३. कापोतलेश्या। इसी प्रकार स्तनितकुमारों पर्यन्त जानना चाहिए। पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकों के तीन संक्लिष्ट लेश्याएं कही गई हैं,यथा१. कृष्णलेश्या, २.नीललेश्या, ३. कापोतलेश्या। पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकों के तीन असंक्लिष्ट लेश्याएं कही गई हैं, यथा१. तेजोलेश्या, २. पद्मलेश्या, ३. शुक्ललेश्या। मनुष्यों के संक्लिष्ट और असंक्लिष्ट तीन-तीन लेश्याएं इसी प्रकार है। वाणव्यंतरों के असुरकुमारों के समान तीन संक्लिष्ट लेश्याएं जाननी चाहिए। २१. सलेश्य चौवीस दंडकों में समाहारादि सात द्वारप्र. दं.१ भन्ते ! क्या सभी सलेश्य नारक समान आहार वाले हैं, सभी समान शरीर वाले हैं तथा सभी समान उच्छ्वास निःश्वास वाले हैं ? उ. गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि "सभी सलेश्य नारक समान-आहार वाले नहीं है, सभी समान शरीर वाले नहीं है और सभी समान उच्छ्वास-निःश्वास वाले नहीं हैं? उ. गौतम ! नारक दो प्रकार के कहे गये हैं, यथा १. महाशरीर वाले, २. अल्पशरीर वाले। १. उनमें से जो महाशरीर वाले नारक हैं, वे बहुत अधिक पुद्गलों का आहार करते हैं, बहुत अधिक पुद्गलों का परिणमन करते हैं, बहुत अधिक पुद्गलों का उच्छ्वास लेते हैं और बहुत अधिक पुद्गलों का निःश्वास छोड़ते हैं। वे बार-बार आहार करते हैं, बार-बार पुद्गलों का परिणमन करते हैं, बार-बार उच्छ्व सन करते हैं और बार-बार निःश्वसन करते हैं। २. उनमें से जो अल्पशरीर वाले नारक हैं, वे अल्पपुद्गलों का आहार करते हैं, अल्प पुद्गलों का परिणमन करते हैं, अल्प पुद्गलों का उच्छ्वास लेते हैं और अल्पपुद्गलों का निःश्वास छोड़ते हैं। वे कदाचित् आहार करते हैं, कदाचित् पुद्गलों का परिणमन करते हैं, कदाचित् उच्छ्वसन करते हैं और कदाचित् निःश्वसन करते हैं। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"सभी सलेश्य नारक समान आहार वाले नहीं हैं, सभी समान शरीर वाले नहीं हैं और सभी समान उच्छ्वास-निःश्वास वाले नहीं हैं।" प्र. २. भंते ! सभी सलेश्य नारक समान कम वाले हैं ? उ. गौतम ! यह अर्थ शक्य नहीं हैं। प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि "सभी सलेश्य नारक समान कर्म वाले नहीं हैं।" उ. गोयमा ! णेरइया दुविहा पण्णत्ता,तं जहा १. महासरीरा य, २. अप्पसरीराय, १. तत्थ णं जे ते महासरीरा ते णं बहुतराए पोग्गले आहारेंति, बहुतराए पोग्गले परिणामेंति, बहुतराए पोग्गले उस्ससंति, बहुतराए पोग्गले णीससंति, अभिक्खणं आहारेंति, अभिक्खणं परिणामेंति, अभिक्खणं उस्ससंति,अभिक्खणं णीससंति, २. तत्थ णं जे ते अप्पसरीरा ते णं अप्पतराए पोग्गले आहारेंति, अप्पतराए पोग्गले परिणामेंति, अप्पतराए पोग्गले उस्ससंति, अप्पतराए पोग्गले णीससंति, आहच्च आहारेंति, आहच्च परिणामेंति, आहच्च उस्ससंति, आहच्च णीससंति, से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ"सलेस्सा नेरइया नो सव्वे समाहारा, नो सव्वे समसरीरा, नो सव्वे समुस्सासणिस्सासा।" प. २.सलेस्सा णं भंते !णेरइया सव्वे समकम्मा? उ. गोयमा ! णो इणठे समठे। प. सेकेणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ "सलेस्सा णेरइया णो सव्वे समकम्मा?"
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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