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________________ ८५२ १. तत्थ णं जे ते अपमत्त संजया ते णं नो आयारंभा जाव अणारंभा। २. तत्य णं जे ते पमत्तसंजया ते सुभं जोगं पडुच्च नो आयारंभा जाव अणारंभा। असुभ जोगं पडुच्च आयारंभा विजाव नो अणारंभा। तत्थ णं जे ते असंजया ते अविरई पडुच्च आयारंभा वि जाव नो अणारंभा। से तेणटेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ"अत्थेगइया सलेसा जीवा आयारंभा वि जाव अणारंभा वि।" किण्हलेस्सा, नीललेस्सा, काउलेस्सा जहा ओहिया जीवा। णवर-पमत्तअप्पमत्ता न भाणियव्वा। तेउलेस्सा, पम्हलेस्सा, सुक्कालेस्सा जहा ओहिया जीवा। द्रव्यानुयोग-(२) १. उनमें से जो अप्रमत्त संयत हैं वे आत्मारंभी नहीं हैं यावत् अनारम्भी हैं। २. उनमें से जो प्रमत्त संयत हैं वे शुभ योग की अपेक्षा आत्मारंभी नहीं हैं यावत् अनारंभी हैं। अशुभ योग की अपेक्षा वे आत्मारंभी हैं यावत् अनारम्भी नहीं हैं। उनमें से जो असंयत हैं वे अविरति की अपेक्षा आत्मारम्भी हैं यावत् अनारम्भी नहीं हैं। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"कितने ही सलेश्यी जीव आत्मारम्भी भी हैं यावत् अनारम्भी भी हैं।" कृष्णलेश्या, नीललेश्या और कापोतलेश्या वाले जीवों के संबंध में (पूर्वोक्त) सामान्य जीवों के समान कहना चाहिए। विशेष-प्रमत्त और अप्रमत्त यहाँ नहीं कहना चाहिए। तेजोलेश्या, पालेश्या और शुक्ललेश्या वाले जीवों के विषय में भी सामान्य जीवों की तरह कहना चाहिए। विशेष-सिद्धों का कथन यहाँ नहीं कहना चाहिये। १६. लेश्याकरण के भेद और चौबीस दंडकों में प्ररूपण प्र. भंते ! लेश्याकरण कितने प्रकार का कहा गया है? उ. गौतम ! लेश्याकरण छः प्रकार का कहा गया है, यथा १. कृष्णलेश्याकरण यावत् ६. शुक्ललेश्याकरण। दं. १-२४. नैरयिकों से वैमानिकों पर्यन्त सभी दण्डकों में जिसके जितनी लेश्याएँ हैं, उसके उतने लेश्याकरण कहना चाहिए। १७. लेश्यानिवृत्ति के भेद और चौबीस दंडकों में प्ररूपण प्र. भंते ! लेश्यानिवृत्ति कितने प्रकार की कही गई है? उ. गौतम ! लेश्यानिवृत्ति छः प्रकार की कही गई है, यथा १. कृष्णलेश्यानिवृत्ति यावत् ६. शुक्ललेश्यानिवृत्ति। दं. १-२४. नैरयिकों से वैमानिकों पर्यन्त जिसके जितनी लेश्यायें हों उसके उतनी लेश्यानिवृत्ति कहनी चाहिए। णवर-सिद्धा न भाणियव्वा। -विया. स. १, उ. १, सु. ९ १६. लेस्साकरणभेया चउवीसदंडएसुय परूवणं प. कइविहाणं भंते ! लेस्साकरणे पण्णत्ते? उ. गोयमा ! लेस्साकरणे छव्विहे पण्णत्ते,तं जहा १. कण्हलेस्साकरणे जाव ६. सुक्कलेस्साकरणे। दं. १-२४. एए सव्वे नेरइयाई दंडगा जाव वेमाणियाणं जस्स जंअत्थितं तस्स सव्वं भाणियव्वं । -विया.स.१९, उ.९,सु.८ १७. लेस्साणिव्वत्ती भेया चउवीसदंडएसुय परवणं प. कइविहाणं भंते ! लेस्सानिव्वत्ती पण्णत्ता? उ. गोयमा ! छबिहा लेस्सानिव्वत्ती पण्णत्ता,तं जहा १. कण्हलेस्सानिव्वत्ती जाव६. सुक्कलेस्सानिव्वत्ती। द.१-२४. एवं नेरइयाणं जाव वेमाणियाणं जस्स जइ लेस्साओ तस्स तइ लेस्सानिव्यत्ती माणियव्वाओ। ___-विया.स.१९,उ.८,सु.३४-३५ १८. चउवीसदंडएसु लेस्सा-परूवणं प. दं.१.णेरइयाणं भंते ! कइ लेस्साओ पण्णत्ताओ? उ. गोयमा ! तिण्णि लेस्साओ पण्णत्ताओ,तं जहा१.किण्हलेस्सा,२.नीललेस्सा,३.काउलेस्सा। -पण्ण.प.१७, उ.२,सु.११५७ प. दं. २-११. भवणवासीणं भंते ! कइ लेस्साओ पण्णत्ताओ? उ. गोयमा ! (असुरकुमारा जाव थणियकुमाराणं) चत्तारि लेस्साओ पण्णत्ताओ,तं जहा१.कण्हलेस्सा जाव ४.तेउलेस्सा। -पण्ण.प.१७, उ.२,सु.११६६(१) १. (क) जीया. पडि. १, सु. ३२ (ख) ठाणं. अ. ३, उ.१,सु. १४० १८. चौबीस दण्डकों में लेश्याओं का प्ररूपण प्र. दं.१. भंते ! नैरयिकों में कितनी लेश्याएँ कही गई हैं ? उ. गौतम ! तीन लेश्याएँ कही गई हैं, यथा १. कृष्णलेश्या, २. नीललेश्या, ३. कापोतलेश्या। प्र. दं. २-११ भंते ! भवनवासी देवों में कितनी लेश्याएँ कही गई हैं? उ. गौतम !(असुरकुमार यावत् स्तनितकुमारों में) चार लेश्याएँ कही गई हैं, यथा१.कृष्णलेश्या यावत् ४. तेजोलेश्या। २. ठाणं अ. ४, उ. ३, सु. ३१९
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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