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लेश्या अध्ययन
८४९ सुगन्धित पुष्प और पीसे जा रहे सुवासित गन्धद्रव्यों की जैसी गन्ध होती है, उससे भी अनन्तगुणी अधिक सुगन्ध तीनों
प्रशस्त (तेजो-पद्म-शुक्ल) लेश्याओं की होती है। १०. लेश्याओं के रस
प्र. १.भन्ते ! कृष्णलेश्या का आस्वाद (रस) कैसा कहा गया है ? उ. गौतम ! नीम, नीम-सार, नीम-छाल, नीम-क्वाथ, कुटज,
कुटज-फल, कुटज-छाल, कुटज-क्वाथ, कटुक तुम्बी, कटुक तुम्बी फल, कड़वी ककड़ी, कड़वी ककड़ी फल, देवदाली, देवदाली पुष्प, मृगवालुंकी, मृगवालुंकी फल, घोषातिकी, घोषातिकी फल, कृष्णकन्द, वज्रकन्द जैसा कृष्णलेश्या का आस्वाद है।
प्र. क्या कृष्णलेश्या ऐसे आस्वाद वाली है? उ. गौतम ! यह अर्थ शक्य नहीं है।
कृष्णलेश्या आस्वाद में इनसे भी अनिष्ट यावत् अधिक
अमनोहर रस वाली कही गई है। प्र. २. भन्ते ! नीललेश्या का आस्वाद कैसा कहा गया है? उ. गौतम ! भृगी, भृगी-कण, पाठा, चविता, चित्रमूलक, पिप्पलीमूल (पीपलामूल) पीपर, पीपरचूर्ण, मिर्च, मिर्चचूर्ण शृंगबेर, शृंगबेरचूर्ण जैसा नीललेश्या का आस्वाद है।
जह सुरहिकुसुमगन्धे, गन्धवासाण पिस्समाणाणं। एत्तो वि अणन्तगुणो, पसत्थलेसाण तिण्हं पि॥
-उत्त.अ.३४,गा.१६-१७ १०. लेसाणं रसा
प. १.कण्हलेस्सा णं भंते ! केरिसिया आसाएणं पण्णता? उ. गोयमा ! से जहाणामए णिंबे इ वा, णिंबसारे इ वा, थिंबछल्ली इ वा, कुडगफाणिए इ वा, णिंबफाणिए इ वा, कुडए इ वा, कुडगपत्ते इ वा, कडुगतुंबी इ वा, कडुगतुंबीफले इवा, खारतउसी इवा, खारतउसीफले इ वा, देवदाली इ वा, देवदालिपुप्फे इ वा, मियवालुंकी इ वा, मियवालुंकीफले इ वा, घोसाडिए इवा, घोसाडइफले इवा, कण्हकंदए इवा, वज्जकंदए इवा। प. भवेयारूवा? उ. गोयमा ! णो इणद्वे समढे।
कण्हलेस्सा णं एत्तो अणिठ्ठतरिया चेव जाव
अमणामतरिया चेव आसाएणं पण्णत्ता। प. २.णीललेस्साए णं भन्ते ! केरिसिया आसाएणं पण्णत्ता? उ. गोयमा ! से जहाणामए भंगी इवा, भंगीरए इवा, पाढाइ
वा, चविता इ वा, चित्तामूलए इ वा, पिप्पलीमूलए इ वा, पिप्पली इ वा, पिप्पलीचुण्णे इ वा, मिरिए इ वा,
मिरियचुण्णे इ वा, सिंगबेरे इवा, सिंगबेरचुण्णे इ वा। प. भवेयारूवा? उ. गोयमा ! णो इणढे समढे।
णीललेस्सा णं एत्तो अणिठ्ठतरिया चेव जाव
अमणामतरिया चेव आसाएणं पण्णत्ता। प. ३. काउलेस्साए णं भंते ! केरिसिया आसाएणं पण्णता? उ. गोयमा ! से जहाणामए अंबाण वा, अंबाडगाण वा,
माउलुगाण वा, बिल्लाण वा, कविट्ठाण वा, भद्दाण वा, फणसाण वा, दालिमाण वा, पारेवयाण वा, अक्खोडाण वा, पोराण वा, बोराण वा, तेंदुयाण वा, अपक्काणं, अपरियागाणं, वण्णेणं अणुववेयाणं, गंधेणं
अणुववेयाणं,फासेणं अणुववेयाणं। प. भवेयारूवा? उ. गोयमा ! णो इणढे समढे।
काउलेस्सा णं एत्तो अणिठ्ठतरिया चेव जाव
अमणामतरिया चेव आसाएणं पण्णत्ता। प. ४. तेउलेस्सा णं भंते ! केरिसिया आसाएणं पण्णत्ता? उ. गोयमा ! से जहाणामए अंबाण वा जाव तेंदुयाण वा, पिक्काणं परियावण्णाणं वण्णेणं उववेयाणं, गंधेणं
उववेयाणं, फासेणं उववेयाणं। प. भवेयारूवा? उ. गोयमा ! णो इणढे समढे।
तेउलेस्सा णं एत्तो इछतरिया चेव जाव मणामतरिया चेव आसाएणं पण्णता।
प्र. क्या नीललेश्या ऐसे आस्वाद वाली है? उ. गौतम ! यह अर्थ शक्य नहीं है।
नीललेश्या आस्वाद में इनसे भी अधिक अनिष्ट यावत्
अधिक अमनोहर रस वाली कही गई है। प्र. ३. भंते ! कापोतलेश्या का आस्वाद कैसा कहा गया है? उ. गौतम ! आम्र, आम्राटक, बिजौरा, बिल्वफल, कपिट्ठ,
द्राक्षाफल, कटहल, दाडिम, पारावत, अखरोट, इक्षु, बेर, तेन्दुफल जो कि अपक्व हों, पूरे पके हुए न हों, वर्ण से रहित हों, गन्ध से रहित हों और स्पर्श से रहित हों ऐसा कापोतलेश्या का आस्वाद है।
प्र. क्या कापोतलेश्या ऐसे आस्वाद वाली है? उ. गौतम ! यह अर्थ शक्य नहीं है।
कापोतलेश्या आस्वाद में इनसे भी अधिक अनिष्ट यावत्
अधिक अमनोहर रस वाली कही गई है। प्र. ४. भंते ! तेजोलेश्या का आस्वाद कैसा कहा गया है? उ. गौतम ! पक्व, परिपक्व, प्रशस्त वर्ण, गंध और स्पर्श से युक्त
आम्र यावत् तिंदुकफल जैसा तेजोलेश्या का आस्वाद है।
प्र. क्या तेजोलेश्या ऐसे आस्वाद वाली है? उ. गौतम ! यह अर्थ शक्य नहीं है।
तेजोलेश्या आस्वाद में इनसे भी अधिक इष्ट यावत् अधिक मनोहर रस वाली कही गई है।