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________________ ७७६ १. सावज्जजोगविरती, २. उक्कित्तण, ३. गुणवओ य पडिवत्ती । ४. खलियस्स निंदणा, ५. वणतिगिच्छ, ६. गुणधारणा चेव ॥१२३ ॥ सेतं अत्याहिगारे। १७९. समोयारस्स भेवष्यमेया प. से किं तं समोयारे ? उ. समोयारे छव्विहे पण्णत्ते, तं जहा १. णामसमोयारे, २ . ठवणसमोयारे, ३. दव्वसमोयारे, ४. खेत्तसमोयारे, ५. कालसमोयारे, ६. भावसमोयारे । प. (१-२ ) से किं तं णामसमोयारे ? उ. नाम-ठवणाओ पुब्ववण्णियाओ। - अणु. सु. ५२६ प. (३). से किं तं दव्यसमोयारे ? उ. दव्वसमोयारे - दुविहे पण्णत्ते, तं जहा १. आगमओ य, २ . णो आगमओ य । एवं जाब से तं भवियसरीरदव्य-समोयारे । - प से किं तं जाणयसरीरभवियसरीर वइरिते दव्वसमोयारे ? उ. जाणय सरीर भवियसरीर बइरिते दव्वसमोयारेतिविहे पण्णत्ते, तं जहा १. आयसमोयारे, २. परसमोयारे, ३. तदुभयसमोयारे। सव्वदव्वा वि य णं आयसमोयारेणं आयभावे समोरयति । परसमोयारेणं जहा कुंडे बदराणि, तदुभयसमोयारेणं जहा घरे थंभो आयभावे च जहा घडे गीवा आयभावे य २. अहवा जाणयसरीरभवियसरीर वइरिते दव्वसमोयारे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा१. आयसमोयारे य, २. तदुभयसमोयारे य । चउसट्ठिया आयसमोयारेणं आयभावे समोयरइ, तदुभयसमोयारेण बत्तीसियाए समोयर आयभाये य बत्तीसिया आयसमोयारेणं आवभावे समोयरइ, तदुभयसमोयारेणं सोलसियाए समोयरइ आयभावे य । सोलसिया आयसनोयारंणं आयभावे समोयरइ, द्रव्यानुयोग - (१) १. प्रथम अध्ययन का अर्थ सावद्ययोगविरति अर्थात् सावध व्यापार का त्याग, २. दूसरे अध्ययन का अर्थ उत्कीर्तन - स्तुति करना, है । ३. तृतीय अध्ययन का अर्थ गुणवान् पुरुषों का सम्मान, वन्दना, नमस्कार करना, ४. चतुर्थ अध्ययन का अर्थ है आचार में हुई स्खलनाओं दोषों आदि की निन्दा करना, ५. पांचवें अध्ययन का अर्थ व्रणचिकित्सा करना, ६. छठे अध्ययन (प्रत्याख्यान) का अर्थ है गुण धारण करना। यह अर्थाधिकार है। १७९. समवतार के भेद-प्रभेद प्र. समवतार क्या है ? उ. समवतार छह प्रकार का कहा गया है, यथा १. नामसमवतार, २. स्थापनासमवतार, ३. द्रव्यसमवतार, ४. क्षेत्रसमवतार, ५. कालसमवतार, ६. भावसमवतार । प्र. ( १-२ ). नामसमवतार क्या है ? उ. नाम और स्थापना का वर्णन पूर्ववत् यहां भी जानना चाहिए। प्र. (३). द्रव्यसमवतार क्या है ? उ. द्रव्यसमवतार दो प्रकार का कहा गया है, यथा १. आगमद्रव्यसमवतार, २. नो आगमद्रव्यसमवतार । इस प्रकार यावत् भव्य शरीर नो आगमद्रव्यसमवतार का स्वरूप (द्रव्यावश्यक के प्रकरण में कथित भेदों के समान) जानना चाहिए। प्र. ज्ञायकशरीर भव्यशरीर व्यतिरिक्तद्रव्यसमवतार क्या है? उ. ज्ञायकशरीर भव्यशरीर व्यतिरिक्तद्रव्यसमवतार तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा १. आत्मसमवतार, २. परसमवतार, ३. तदुभयसमवतार। आत्मसमवतार की अपेक्षा सभी द्रव्य आत्मभाव - ( अपने स्वरूप) में ही रहते हैं, परसमवतार की अपेक्षा कुंडे में बेर की तरह परभाव में रहते हैं, तदुभयसमवतार की अपेक्षा घर में स्तम्भ अथवा घट में ग्रीवा के समान परभाव तथा आत्मभाव दोनों में रहते हैं। २. अथवा ज्ञायकशरीर भव्यशरीर व्यतिरिक्त द्रव्यसमवतार दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. आत्मसमवतार, २. तदुभयसमवतार। जैसे आत्मसमवतार से चतुष्षष्टिका आत्मभाव में रहती है। तदुभयसमवतार की अपेक्षा द्वात्रिंशिका में भी और अपने निजरूप में भी रहती है। द्वात्रिंशिका आत्मसमवतार की अपेक्षा आत्मभाव में रहती है। तदुभयसमवतार की अपेक्षा षोडशिका में भी रहती है और आत्मभाव में भी रहती है। षोडशिका आत्मसमवतार से आत्मभाव में समवतीर्ण है,
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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