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________________ ७७२ उ. दव्वसंखा जस्स णं "संखा " ति पदं सिक्खितं ठियं जियं मियं परिजियं जाव कंठोट्ठ विप्पमुक्कं गुरुवायणोवगयं, से णं तत्थ वायणाए पुच्छणाएं परियट्टणाए धम्मकड़ाए. अपे प. कम्हा ? उ. अणुवओगो दव्यमिति कटु १. णेगमस्स एक्को अणुवउत्तो आगमओ एका दव्यसंखा, दो अणुवत्ता आगमओ दो दव्यसंखाओ, तिणि अणुवउत्ता आगमओ तिण्णि दव्यसंखाओ, एवं जावइया अणुवत्ता तावइयाओ णेगमस्स आगमओ दव्वसंखाओ। २. एवामेव ववहारस्स वि। ३. संगहस्स एको वा अणेगा वा अणुवउत्तो वा अणुवउत्ता वा आगमओ दव्वसंखा वा दव्यसंखाओ वा सा एगा दव्यसंखा ४. उज्जुसुयस्स एगो अणुवउत्तो आगमओ एका दव्यसंखा, पुहत्तं णेच्छइ । ५. तिन्ह सद्दणयाणं जाणए अणुवउत्ते अवत्यू प. कम्हा ? उ जति जाणए अणुवउत्ते ण भवइ । सेतं आगमओ दव्यसंखा । प. (ख) से किं तं नो आगमओ दव्यसंखा ? उ. नो आगमओ दख्यसंखा-तिविडा पण्णत्ता, तं जहा १. जाणयसरीरदव्यसंखा २ भवियसरीरदव्यसंखा, ३. जाणयसरीरभवियसरीरवइरित्ता दव्वसंखा । प. (१) से किं तं जाणयसरीरदव्यसंखा ? उ. जाणयसरीरदव्यसंखा "संखा ति पयत्याहिकार जाणयस्स जं सरीरयं वयगय-चुय चइत चत्तदेहं जीवविप्पजढं जाव कोई वएज्जा अहो ! णं इमेणं सरीरसमुसएणं "संखा" ति पयं आघवियं जाव उयवसिय प. जहा को दिट्ठतो ? - द्रव्यानुयोग - (१) उ. आगमद्रव्यशंखा - जिसने शंख यह पद सीख लिया, हृदय में स्थिर किया, जित किया- तत्काल स्मरण हो जाए ऐसा याद किया, मित किया मनन किया, अधिकृत किया यावत् निर्दोष स्पष्ट स्वर से शुद्ध उच्चारण किया तथा गुरु से वाचना ली। जिसने वाचना, पृच्छना, परावर्तना एवं धर्मकथा भी की है। परन्तु अर्थ का अनुचिन्तन करने रूप अनुप्रेक्षा से रहित हो वह आगम से द्रव्यशंखा कहलाती है। प्र. कैसे ? ( इसका क्या कारण है ?) उ. सिद्धान्त में अनुपयोगो द्रव्यम्" ऐसा कहा गया है अर्थात् उपयोग से शून्य हो वह द्रव्य कहा जाता है। (वह भाव नहीं कहा जाता है।) १. नैगमनय की अपेक्षा एक उपयोगरहित आत्मा एक आगमद्रव्यशंखा है, दो उपयोग रहित आत्मा दो आगमद्रव्यशंखा है, तीन उपयोग रहित आत्मा तीन आगमद्रव्य शंखा है, इस प्रकार जितनी उपयोग रहित आत्माएं हैं उतने ही ( नैगमनय की अपेक्षा आगम) द्रव्य शंखा है। २. नैगमनय के समान ही व्यवहारनय आगमद्रव्यशंखा है। ३. संग्रहनय एक उपयोग रहित आत्मा (आगम से) एक द्रव्यशंखा है और अनेक उपयोग रहित आत्माएं अनेक आगमद्रव्यशंखा है, ऐसा स्वीकार नहीं करता किन्तु सभी को एक ही आगमद्रव्यशंखा मानता है। ४. ऋजुसूत्रनय की अपेक्षा एक अनुपयुक्त आत्मा एक आगमद्रव्यशंखा है। वह भेद को स्वीकार नहीं करता है। ५. तीनों शब्द नय आदि अनुपयुक्त ज्ञायक को असत् मानते हैं। प्र. इसका क्या कारण है ? उ. यदि ज्ञायक है तो उपयोग रहित नहीं होता है और यदि उपयोग रहित है तो वह ज्ञायक नहीं होता है। यह आगमद्रव्यशंखा है। प्र. (ख) नो आगमद्रव्यशंखा क्या है ? उ. नो आगमद्रव्यशंखा के तीन भेद कहे गए हैं, यथा १. ज्ञायकशरीरद्रव्यशंखा, २. भव्यशरीरद्रव्यशंखा, ३. ज्ञायकशरीर भव्यशरीर-व्यतिरिक्त द्रव्यशंखा । प्र. (१) ज्ञायकशरीरद्रव्यशंखा क्या है ? उ. 'शंखा' इस पद के अर्थाधिकार से ज्ञाता का वह शरीर, जो व्यपगत अर्थात् चैतन्य से रहित च्युत-च्यवित- यक्त जीवरहित है उसे देखकर यावत् कोई कहे कि - "अहो ! इस शरीर रूप पुद्गलसंघात ने शंख पद को ग्रहण किया था, पढ़ा था यावत् उपदर्शित किया था, नय और युक्तियों द्वारा शिष्यों को समझाया था, उसका वह शरीर ज्ञायक शरीरद्रव्यशंखा है।" प्र. इसका कोई दृष्टान्त है ?
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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