SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 873
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ । ७६६ - उ. एगसेसे समासे जहा एगो पुरिसो तहा बहवे पुरिसा, जहा बहवे पुरिसा तहा एगो पुरिसो, जहा एगो करिसावणो तहा बहवे करिसावणा, जहा बहबे करिसावणा तहा एगो करिसावणो, जहा एगो साली तहा बहवे सालिणो, जहा बहबे सालिणो तहा एगो साली। से तं एगसेसे समासे। से तं सामासिए। -अणु.सु.२९४-३०१ १७१. (२) तद्धित-भेयाण पखवणा प. से किं तं तद्धियए? उ. तद्धियए १. कम्मे २. सिप्प, ३. सिलोए, ४. संजोग, ५.समीवओ,६.य संजूहे,७.इस्सरिया,८.वच्चेण य तद्धितणामं तु अट्ठविहं ॥१२॥ प. १.से किं तं कम्मणाम? उ. कम्मणमे-दोस्सिए, सोत्तिए, कप्पासिए, सुत्तवेतालिए, भंडवेतालिए, कोलालिए। सेतं कम्मनामे। प. २.से किं तं सिप्पनामे? उ. सिप्पनामे १. वत्थिए २. तंतिए ३. तुण्णाए, ४. तंतुवाए, ५ पट्टकारिए ६ उव्यट्टिए, ७. वरूडे, ८ मुंजकारे, ९ कट्ठकारे, १०. छत्तकारे, ११. वज्झकारे, १२. पोत्थकारे, १३. चित्तकारे, १४ दंतकारे, १५. लेप्पकारे १६.सेलकारिए, १७. कोट्टिमकारे। द्रव्यानुयोग-(१) उ. जिसमें एक शेष रहे वह एकशेषसमास है, जैसा-एक पुरुष वैसे अनेक पुरुष, जैसे अनेक पुरुष वैसा एक पुरुष, जैसा एक कार्षापण वैसे अनेक कार्षापण जैसे अनेक कार्षापण वैसा एक कार्षापण, जैसा एक शालि वैसे अनेक शालि, चावल, जैसे अनेक शालि वैसा एक शालि। ये एकशेषसमास के उदाहरण हैं। यह सामासिकभावप्रमाणनाम है। १७१. (२) तद्धित के भेदों की प्ररूपणा- प्र. तद्धित से निष्पन्न नाम क्या है ? उ. तद्धित निष्पन्न नाम इस प्रकार हैं, यथा १. कर्म, २. शिल्प, ३. श्लोक, ४. संयोग, ५. समीप, ६. संयूथ, ७. ऐश्वर्य, ८. अपत्य ये तद्धित निष्पन्न नाम के आठ प्रकार हैं। प्र. १. कर्मनाम क्या है? उ. कर्मनाम-दोष्यिक, सौत्रिक, कासिक, सूत्रवैचारिक, भांडवैचारिक, कौलालिक। ये कर्म निमित्तज नाम हैं। प्र. २.शिल्पनाम क्या है? उ. शिल्पनाम इस प्रकार है, यथा १. वास्त्रिक-वस्त्र बनाने वाला, २. तान्त्रिक-वीणा बजाने वाला, ३. तुन्नाक-रफू करने वाला, शिल्पी, ४. तन्तुवायिक-जुलाहा, ५. पट्टकार-बुनकर, ६. औवृत्तिक-उबटन करने वाला ७. वारुटिक-एक शिल्पी विशेष, ८. मौंजकारिक-मुंज की रस्सी बनाने वाला, ९. काष्टकारिक-बढ़ई, १०.छत्रकारिक-छाता बनाने वाला, ११. बाह्यकारिक-रथ आदि बनाने वाला, १२. पोस्तकारिक-जिल्दसाज, १३. चित्रकारिक-चित्र बनाने वाला, १४. दान्तकारिक-हाथी दांत आदि का सामान बनाने वाला, १५. लेप्यकारिक-मकान बनाने वाला, १६. सेलकारिक-पत्थर घड़ने वाला,१७. कोटिमकारिक-खान खोदने वाला या फर्श बनाने वाला। ये शिल्प नाम हैं। प्र. ३. श्लोकनाम क्या है? उ. श्लोकनाम का स्वरूप इस प्रकार है सभी के अतिथि श्रमण, बाह्मण आदि। ये श्लोकनाम हैं। प्र. ४.संयोगनाम क्या है? उ. संयोगनाम का स्वरूप इस प्रकार है राजा का ससुर-राजकीय ससुर, राजा का साला-राजकीय साला, राजा का साढू-राजकीय सादू, राजा का जमाई-राजकीय जमाई, से तं सिप्पनामे। प. ३.से किं तं सिलोयनामे? उ. सिलोयनामे समणे,माहणे, सव्वतिही। सेतं सिलोयनामे। प. ४.से किं तं संजोगनामे? उ. संजोगनामे रण्णो ससुरए, रण्णो सालए, रण्णो सड्ढुए, रण्णो जामाउए,
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy