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________________ ७२२ उ. गोयमा ! ण जाणंति ण पासंति, आहारैति । , दं. २ १८. एवं जाव तेइंदिया । प. दं. १९. चउरिंदिया णं भंते! जे पोग्गले आहारत्ताए हंति ते किं जाणंति, पासंति, आहारेंति, उदाहुण जाणति ण पासंति, आहारेति ? " उ. गोयमा ! अत्येगइया न जाणति, पासंति, आहारेति, अत्येगइया ण जाणति ण पासंति, आहारेति । 1 प. दं. २०. पंचेंदिय-तिरिक्खजोणिया णं भंते ! जे पोग्गले आहारत्ताए गेहंति ते किं जाणंति, पासंति, आहारेंति ? उदाहुण जाणति, ण पासति, आहारेति ? उ. गोयमा ! १. अत्थेगइया जाणंति, पासंति आहारेंति, २. अत्थेगइया जाणंति, ण पासंति, आहारेंति, ३. अत्येगइया ण जाणंति, पासंति, आहारेति, ४. अत्येगइया ण जाणति, ण पासंति, आहारेति । द. २१. एवं मणूसाण वि ६. २२-२३. वाणमंतर जोइसिया जहा पेरइया। प. दं. २४. वैमाणिया णं भंते! जे पोग्गले आहारत्ताए गेहति जाणंति, पासंति, आहारैति ? उदाहुण जाणंति, ण पासंति, आहारेंति । उ. गोयमा १. अत्येगइया जाणंति, पासंति, आहारेति, २. अत्येगइयां ण जाणंति, ण पासंति, आहारेंति । प से केणद्वेण भंते! एवं बुच्चइ १. "अत्येगइया जाणति, पासति, आहारेति, २. अत्येगइया ण जाणंति, ण पासंति, आहारेति ? उ. गोयमा ! वेमाणिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा१. माइमिच्छदिठि उबवण्णमा य २. अमाइसम्मद्दिट्ठि उववण्णगा। एवं जाव से तेणट्ठेण गोयमा ! एवं वुच्चइ १. अत्येगइया जाणति, पासति, आहारैति २. अत्थेगइया ण जाणंति, ण पासंति, आहारेंति । १२९. पट्ठस्स छप्पगारा - पण्ण. प. ३४, सु. २०४० २०४६ छव्हि पठ्ठे पण्णत्ते तं जहा " १. संसयपठ्ठे २. युग्गहपट्टे, ? द्रव्यानुयोग - (१) उ. गौतम ! वे न तो जानते हैं और न देखते हैं, किन्तु उनका आहार करते हैं। दं. २- १८. इसी प्रकार त्रीन्द्रिय पर्यन्त जानना चाहिए। प. भन्ते ! चतुरिन्द्रिय जिन पुद्गलों को आहार के रूप में ग्रहण करते हैं, क्या वे उन्हें जानते हैं, देखते हैं और उनका आहार करते हैं ? अथवा नहीं जानते हैं, नहीं देखते हैं और आहार करते हैं ? उ. गौतम ! कोई जानते नहीं हैं किन्तु देखते हैं, और आहार करते हैं, कोई न जानते हैं, न देखते हैं, किन्तु आहार करते हैं। प. दं. २० भन्ते ! पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जिन पुद्गलों को आहार के रूप में ग्रहण करते हैं, क्या वे उन्हें जानते हैं, देखते हैं और उनका आहार करते हैं, अथवा नहीं जानते हैं, नहीं देखते हैं और आहार करते हैं ? , उ. गौतम १. कोई जानते हैं, देखते हैं और आहार करते हैं, २. कोई जानते हैं, देखते नहीं, किन्तु आहार करते हैं। ३. कोई नहीं जानते हैं किन्तु देखते हैं, आहार करते हैं, ४. कोई नहीं जानते हैं, नहीं देखते हैं किन्तु आहार करते हैं। दं. २१. इसी प्रकार मनुष्यों का भी आहार जानना चाहिए। दं. २२-२३. वाणव्यन्तर, ज्योतिषियों का कथन नैरयिकों के समान है। प. दं. २४. भन्ते वैमानिक देव जिन पुद्गलों को आहार के रूप में ग्रहण करते हैं, क्या ये उन्हें जानते हैं, देखते हैं और उनका आहार करते हैं, अथवा नहीं जानते हैं, नहीं देखते हैं और आहार करते हैं ? उ. गौतम ! १. कोई जानते हैं, देखते हैं, आहार करते हैं, २. कोई नहीं जानते हैं, नहीं देखते हैं, आहार करते हैं. प. भन्ते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि १. कोई जानते हैं, देखते हैं, आहार करते हैं, २. कोई नहीं जानते हैं, नहीं देखते हैं, आहार करते हैं। उ. गौतम ! वैमानिक दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा १. मायीमिथ्यादृष्टि - उपपन्नक, २. अमायीसम्यग्दृष्टि उपपन्त्रक। इसी प्रकार यावत् गौतम ! इस कारण से ऐसा कहा जाता है कि १. कोई जानते हैं, देखते हैं, आहार करते हैं, २. कोई नहीं जानते हैं, नहीं देखते हैं, आहार करते हैं। १२९. प्रश्न के छः प्रकार प्रश्न छह प्रकार के कहे गए हैं, यथा - १. संशयप्रश्न - संशय मिटाने के लिए पूछा जाने वाला। २. ब्युग्रहप्रश्न-कपट से दूसरे को पराजित करने के लिए पूछा जाने वाला।
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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