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द्रव्यानुयोग-(१)
( ७२० ।
एवं मूलेणंजाव बीजं संजोएयव्यं,
एवं कंदेण वि समं बीयं संजोएयव्वं जाव बीयं।
एवं जाव पुप्फेण समंबीयं संजोएयव्वं ।
प. अणगारे णं भंते ! भावियप्पा रुक्खस्स किं फलं पासइ,
बीयं पासइ?
उ. गोयमा !चउभंगो। -विया. स.३, उ. ४ सु. ४-५ १२६. छउमत्थयाइहिं परमाणुपोग्गलाईणं जाणणं पासणं
तए णं भगवे गोयमे समणेणं भगवया महावीरेणं एवं वुत्ते समाणे हठ्ठतुट्ठ समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासीप. छउमत्थे णं भंते ! मणुस्से परमाणुपोग्गलं किं जाणइ
पासइ, उदाहु न जाणइ,नपासइ? उ. गोयमा ! अत्थेगइए जाणइ न पासइ, अत्थेगइए न
जाणइ,न पासइ। एवं दुपदेसिए जाव असंखेज्जपएसियं खंध भाणियव्यं ।
प. छउमत्थे णं भंते ! मणूसे अणंतपएसियं खंध किं जाणइ
पासइ, उदाहून जाणइ,न पासइ? उ. गोयमा !१.अत्थेगइए जाणइ, पासइ,
२. अत्थेगइए जाणइ,न पासइ, ३. अत्थेगइए न जाणइ, पासइ, ४. अत्येगइएन जाणइ, न पासइ, जहा छउमत्थे तहा आहोहिए वि जाव अणंतपएसिए खंधे।
इसी प्रकार मूल के साथ बीज का संयोजन करके चार भंग कहने चाहिए। इसी प्रकार कन्द के साथ बीज पर्यन्त का संयोजन कर लेना चाहिए। इसी प्रकार पुष्प के साथ बीज पर्यन्त का संयोजन कर लेना
चाहिए। प्र. भन्ते ! क्या भावितात्मा अनगार वृक्ष के फल को देखता है
या बीज को देखता है? उ. गौतम ! यहाँ भी पूर्वोक्त प्रकार से चार भंग कहने चाहिए। १२६. छमस्थादि द्वारा परमाणु पुद्गलादि का जानना-देखना
(तत्पश्चात्) भगवान् गौतम ने श्रमण भ. महावीर के इस कथन को सुनकर हष्ट तुष्ट होकर भ. महावीर स्वामी को वंदन नमस्कार किया और वंदन नमस्कार कर इस प्रकार पूछाप्र. भन्ते ! क्या छद्मस्थ मनुष्य परमाणु पुद्गल को
जानता-देखता है अथवा जानता, देखता है? उ. गौतम ! कोई छद्मस्थ मनुष्य जानता है किन्तु देखता नहीं,
कोई जानता भी नहीं और देखता भी नहीं। इसी प्रकार प्रदेशी से असंख्यातप्रदेशी स्कन्ध पर्यन्त
कहना चाहिए। प्र. भन्ते ! क्या छद्मस्थ मनुष्य अनन्तप्रदेशी स्कन्ध को जानता
देखता है, अथवा न जानता, न देखता है? उ. गौतम ! १. कोई जानता है और देखता है,
२. कोई जानता है किन्तु देखता नहीं है, ३. कोई जानता नहीं, किन्तु देखता है, ४. कोई जानता भी नहीं और देखता भी नहीं। जिस प्रकार छद्मस्थ का कथन किया गया है उसी प्रकार आधोवधि का कथन अनन्तप्रदेशी स्कन्ध तक समझ लेना
चाहिए। प्र. भन्ते ! क्या परमावधिज्ञानी मनुष्य परमाणु पुद्गल को
जानता-देखता है? उ. हां, गौतम ! जानता देखता है इसी प्रकार यावत्
अनन्तप्रदेशी स्कन्ध को जानता है, देखता है। प्र. भन्ते ! परमावधिज्ञानी मनुष्य परमाणु पुद्गल को जिस
समय जानता है, क्या उसी समय देखता है और जिस समय
देखता है क्या उसी समय जानता है ? उ. गौतम ! यह शक्य नहीं है। प्र. भन्ते ! किस कारण से ऐसा कहते हैं कि
"परमावधिज्ञानी परमाणु पुद्गल को जिस समय जानता है, उस समय देखता नहीं है और जिस समय देखता है उस
समय जानता नहीं है?" उ. गौतम ! परमावधिज्ञानी का ज्ञान साकार होता है और दर्शन
अनाकार होता है। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"परमावधिज्ञानी यावत् जिस समय देखता है, उस समय जानता नहीं।"
प. परमाहोहिए णं भंते !मणूसे परमाणु पोग्गलं किं जाणइ
पासइ? उ. हंता, गोयमा ! जाणइ पासइ एवं जाव अणंत पएसियं
खंध जाणइ पासइ। प. परमाहोहिए णं भंते ! मणूसे परमाणुपोग्गलं जं समय
जाणइ, तं समयं पासइ, जं समयं पासइ, तं समय
जाणइ? उ. गोयमा ! णो इणठे समठे। प. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ
"परमाहोहिए णं मणूसे परमाणुपोग्गलं जं समय जाणइ, नो तं समयं पासइ, जं समयं पासइ, नो तं
समयं जाणइ?" उ. गोयमा ! सागारे से नाणे भवइ, अणागारे से दसणे
भवइ। से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ"परमाहोहिए जाव जं समयं पासइ, नो तं समयं जाणइ।