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________________ ७१० द्रव्यातुयोग-(१) १३. कसायदारप. सकसाई णं भंते ! जीवा किं नाणी,अन्नाणी? उ. गोयमा ! जहा सइंदिया। १३. कषाय द्वारप्र. भन्ते ! सकषायी जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी हैं ? उ. गौतम ! सकषायी जीवों का कथन सेन्द्रिय जीवों के समान है। इसी प्रकार क्रोधकषायी से लोभकषायी जीवों पर्यन्त जानना कोहकसाई जाव लोहकसाई विएवं चेव। चाहिए। प्र. भन्ते ! अकषायी जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी हैं ? उ. गौतम ! उनमें पांच ज्ञान भजना (विकल्प) से पाए जाते हैं। प. अकसाई णं भंते ! जीवा किं नाणी, अन्नाणी? उ. गोयमा !पंच नाणाई भयणाए। -विया. स.८,उ.२,सु.१३८-१३९ १४. वेददारंप. सवेयगाणं भंते !जीवा किं नाणी, अन्नाणी? उ. गोयमा !जहा सइंदिया। एवं इत्थिवेयगा, एवं पुरिसवेयगा, नपुंसकवेयगा वि। १४. वेद द्वारप्र. भन्ते ! सवेदक जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी हैं ? उ. गौतम ! सवेदक जीवों का कथन सेन्द्रिय जीवों के समान है। इसी प्रकार स्त्रीवेदक, पुरुषवेदक और नपुंसकवेदक जीवों का कथन है। अवेदक जीवों का कथन अकषायी जीवों के समान है। अवेयगा जहा अकसाइ। -विया.स.८,उ.२,सु.१४०-१४१ १५. आहारदारंप. आहारगाणं भंते ! जीवा किं नाणी, अन्नाणी? उ. गोयमा !जहा सकसाई। १५. आहार द्वारप्र. भन्ते ! आहारक जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी हैं? उ. गौतम ! आहारक जीवों का कथन सकषायी जीवों के समान है। विशेष-उनमें केवलज्ञान भी पाया जाता है। प्र. भन्ते ! अनाहारक जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी हैं ? उ. गौतम ! वे ज्ञानी भी हैं और अज्ञानी भी हैं। जो ज्ञानी हैं, उसमें मनःपर्यवज्ञान को छोड़कर चार ज्ञान और तीन अज्ञान भजना (विकल्प) से पाए जाते हैं। १६. विषय द्वारप्र. भन्ते ! आभिनिबोधिकज्ञान का विषय कितना कहा गया है ? णवरं-केवलनाणं वि। प. अणाहारगा णं भंते !जीवा किं नाणी,अन्नाणी? उ. गोयमा ! णाणी वि, अण्णाणी वि, जेणाणी तेसिं मणपज्जव नाणवज्जाइं चत्तारि नाणाई, तिण्णि अन्नाणाणि य भयणाए। -विया.स.८,उ.२.सु.१४२-१४३ १६. विसयदारंप. आभिणिबोहियनाणस्स णं भंते ! केवइए विसए पण्णत्ते? उ. गोयमा ! से समासओ चउविहे पण्णत्ते,तं जहा १. दव्वओ,२.खेत्तओ,३.कालओ, ४.भावओ। १. दव्वओ णं आभिणिबोहियनाणी आएसेणं सव्वदव्वाइं जाणइ पासइ। २. खेत्तओ णं आभिणिबोहियनाणी आएसेणं सव्वं खेत्तं जाणइ पासइ। ३. कालओ णं आभिणिबोहिय नाणी आएसेणं सव्वं कालं जाणइ पासइ। ४. भावओ णं आभिणिबोहियनाणी आएसेणं सब्वे भावे जाणइ पासइ। xx उ. गौतम ! वह संक्षेप में चार प्रकार का कहा गया है, यथा १. द्रव्य से, २. क्षेत्र से, ३. काल से, ४. भाव से। १. द्रव्य से आभिनिबोधिकज्ञानी आदेश (अपेक्षा) से सर्वद्रव्यों को जानता और देखता है, २. क्षेत्र से आभिनिबोधिकज्ञानी अपेक्षा से सर्वक्षेत्र को जानता और देखता है। ३. काल से आभिनिबोधिकज्ञानी अपेक्षा से सर्वकाल को जानता और देखता है। ४. भाव से आभिनिबोधिकज्ञानी अपेक्षा से सर्वभावों को जानता और देखता है। xx xx १. तं समासओ चउव्विहं पण्णत्तं,तं जहा १.दव्यओ,२.खेत्तओ,३. कालओ,४.भावओ। १. तत्थ दव्वओ णं आभिणिबोहियनाणी आएसेणं सव्वदव्वाई जाणइ ण पासइ। २. खेत्तओ णं आमिणिबोहियनाणी आएसेणं सव्वं खेत्तं जाणइ ण पासइ। ३. कालओ णं आभिणिबोहियनाणी आएसेणं सव्यं कालं जाणइ ण पासइ। ४. भावओणं आभिणिबोहियनाणी आएसेणं सव्ये भावे जाणइण पासइ। इस पाठ में कभी लिपि दोष से 'ण' अधिक लग गया है। -नंदी सु.६५
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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