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________________ ७०० १. मई अन्नाणी, २. सुय अन्नाणी य प. गन्धवक्कतिय मणुस्साणं भंते । किं नाणी, अण्णाणी ? " उ. गोयमा ! णाणी वि अण्णाणी वि। जे गाणी ते अंत्येगइया दुन्नाणी, अत्येगइया तित्राणी, अत्येगइया चउणाणी, अत्येगइया एगणाणी। जे दुण्णाणी ते नियमा- १. आभिणिबोहियणाणी, २. सुयनाणी य जे तिणाणी ते १. आभिणिबोहिय णाणी, २. सुयणाणी, ३. ओहिणाणी य । अहवा १. आभिणिबोहियणाणी, २. सुयणाणी, ३. मणपज्जवणाणी य। जे चउणाणी ते णियमा १. आभिणिबोहियणाणी, २. सुयणाणी, ३. ओहिणाणी ४. मणपज्जवणाणी य जे एगणाणी ते नियमा - १. केवलणाणी । एवं अण्णाणी वि दुअण्णाणी, ति अण्णाणी। - जीवा. पडि. १, सु. ४१ दं. २२. वाणमंतरा जहा नेरइया । दं. २३-२४. जोइसिय वेमाणियाणं तिण्णि नाणा तिणि अन्नाणा नियमा' । - विया. स. ८, उ. २, सु. ३६-३७ XX XX xx प. सोहम्मीसाणेसु णं भंते ! कप्पेसु देवा किं णाणी, अण्णाणी ? उ. गोयमा ! णाणी वि, अण्णाणी वि। जेणाणी ते णियमा तिण्णाणी, तं जहा १. ओहिणाणी। जे अण्णाणी ते णियमा तिअण्णाणी, तं जहा १. मइ अण्णाणी, २ . सुयअण्णाणी, ३. विभंगणाणी य एवं जाय गेवेज्जा । आभिणिबोहियणाणी, २. सुयणाणी, ३. अणुत्तरोववाइया णाणी णो अण्णाणी नियमा तिणाणी । -जीवा डि. ३. सु. २०१ (ई) प. सिद्धाणं भंते कि णाणी, अण्णाणी ? उ. गोयमा ! नाणी, नो अण्णाणी । नियमा एगणाणीकेवलणाणी । - विया. स. ८, उ. २, सु. ३८ १२०. गहआई बीस दार विक्खया नाणितानाणित परूवणं प. निरयगइयाणं भंते! जीवा कि नाणी, अन्नाणी ? उ. गोयमा ! नाणी वि, अन्नाणी वि। तिण्णि नाणाइं नियमा तिण्णि अन्नाणाई भयणाए । प. तिरियगइया णं भंते ! जीवा किं नाणी, अन्नाणी ? १. जीवा. पडि. १, सु. ४२ द्रव्यानुयोग - (१) १. मति अज्ञानी, २. श्रुत अज्ञानी । प्र. भन्ते ! गर्भज मनुष्य क्या ज्ञानी हैं या अज्ञानी हैं ? उ. गौतम ज्ञानी भी हैं और अनानी भी है। जो ज्ञानी हैं वे कितने ही दो ज्ञान वाले हैं, कितने ही तीन ज्ञान वाले हैं, कितने ही चार ज्ञान वाले हैं और कितने ही एक ज्ञान वाले हैं। जो दो ज्ञान वाले हैं वे नियमतः १. आभिणिबोधिक ज्ञानी, २. श्रुत ज्ञानी हैं। जो तीन ज्ञान वाले हैं वे १. आभिनिबोधिक ज्ञानी, २. श्रुत ज्ञानी, ३. अवधिज्ञानी हैं। अथवा १ आभिनिबोधिकज्ञानी २ श्रुतज्ञानी, ३. मनः पर्यवज्ञानी हैं। जो चार ज्ञान वाले हैं वे नियमतः १. आभिनिबोधिक ज्ञानी, २. श्रुतज्ञानी, ३. अवधिज्ञानी, ४. मन:पर्ययज्ञानी है। जो एक ज्ञान वाले हैं वे नियमतः एक केवलज्ञानी हैं। इसी प्रकार अज्ञानी भी दो अज्ञान वाले और तीन अज्ञान वाले हैं। दं. २२. वाणव्यन्तर देवों का कथन नैरयिकों के समान हैं। दं. २३-२४. ज्योतिष्क और वैमानिक देवों में तीन ज्ञान और तीन अज्ञान नियमतः पाये जाते हैं। XX XX XX प्र. भन्ते ! सौधर्म - ईशान कल्प में देव क्या ज्ञानी हैं या अज्ञानी हैं ? उ. गौतम ! ज्ञानी भी हैं और अज्ञानी भी हैं। जो ज्ञानी हैं वे नियमतः तीन ज्ञान वाले हैं, यथा १. आभिनिबोधिकज्ञानी २ श्रुतज्ञानी, ३. अवधिज्ञानी । , जो अज्ञानी हैं वे नियमतः तीन अज्ञान वाले हैं, " १. मतिअज्ञानी २ श्रुतअज्ञानी, ३. विभंगज्ञानी। इसी प्रकार ग्रैवेयक पर्यन्त जानना चाहिए। अनुत्तरोपपातिक देव ज्ञानी हैं, अज्ञानी नहीं हैं वे नियमतः तीन ज्ञान वाले हैं। प्र. भन्ते ! सिद्ध ज्ञानी हैं या अज्ञानी हैं ? यथा उ. गौतम ! सिद्ध ज्ञानी हैं, अज्ञानी नहीं है। वे बिना विकल्प के एक केवलज्ञान वाले हैं। १२०. गति आदि बीस द्वारों की विवक्षा से ज्ञानत्व अज्ञानत्व का प्ररूपण : प्र. भन्ते ! नरक गति के जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी हैं ? उ. गौतम ! वे ज्ञानी भी हैं और अज्ञानी भी हैं। जो ज्ञानी हैं, वे नियमतः तीन ज्ञान वाले हैं और जो अज्ञानी हैं वे भजना (विकल्प) से तीन अज्ञान वाले हैं। प्र. भन्ते तियंचगति के जीव ज्ञानी है या अज्ञानी है? २. इस द्वार में गत्युन्मुखी जीवों की अपेक्षा पृच्छा है।
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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