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________________ । ६६२ । ७. धारेइ, ८. करेइ वा सम्मं ॥८५॥ -नंदी.सु. १२० ८३. पावसुयस्स णामाणि अदुत्तरचणं पुरिसविजय विभंगमाइक्खिस्सामि। इह खलु णाणापण्णाणं, णाणाछंदाणं, णाणासीलाणं, णाणादिट्ठीणं, णाणारुईणं जाणारंभाणं, णाणाज्झवसाणसंजुत्ताणं णाणाविहपावसुयज्झयणं एवं भवइ,तं जहा १. भोमं, २. उप्पाय, ३. सुविणं, ४. अंतलिक्खं, ५. अंगं, ७. लक्ख णं, ८. वंजणं, - द्रव्यानुयोग-(१)) ७. इसके बाद निश्चित अर्थ को हृदय में सम्यक् रूप से धारण करता है। ८. फिर जैसा गुरु ने प्रतिपादन किया उसके अनुसार आचरण करता है। ८३. पाप श्रुत के नाम इसके पश्चात् पुरुषविजय अथवा पुरुषविचय के विभंग का प्रतिपादन करूंगा। इस मनुष्य क्षेत्र में नाना प्रकार की प्रज्ञाओं, नाना प्रकार के अभिप्रायों, नाना प्रकार के शीलों, नाना प्रकार की दृष्टियों, नाना प्रकार की रुचियों, नाना प्रकार के आरम्भ तथा नाना प्रकार के अध्यवसायों से युक्त मनुष्यों के द्वारा अनेक प्रकार के पाप श्रुतों का अध्ययन किया जाता है, यथा१. भोम - भूगर्भ-शास्त्र, २. उत्पात - उल्कापात आदि प्राकृतिक घटनाओं की व्याख्या करने वाला शास्त्र, ३. स्वप्न - स्वप्नशास्त्र, ४. अन्तरिक्ष ज्योतिषशास्त्र, ५. अंग अंगविद्या; ६. स्वर - स्वर-शास्त्र, ७. लक्षण सामुद्रिकशास्त्र, हस्तरेखा-विज्ञान, ८. व्यंजन तिल आदि चिन्हों के आधार पर शुभ-अशुभ बताने वाला शास्त्र, ९. स्त्रीलक्षण - स्त्रीलक्षण शास्त्र, १०. पुरुषलक्षण पुरुषलक्षण शास्त्र, ११. हयलक्षण - अश्वलक्षण शास्त्र, १२. गजलक्षण - हस्तिलक्षण शास्त्र, १३. गौलक्षण बैललक्षण शास्त्र, १४. मेषलक्षण - मेषलक्षण शास्त्र, १५. कुक्कुटलक्षण - कुक्कुटलक्षण शास्त्र, १६. तीतरलक्षण - तीतरलक्षण शास्त्र, १७. वर्तकलक्षण - बटेरलक्षण शास्त्र, १८. लावकलक्षण - लावालक्षण शास्त्र, १९. चक्रलक्षण चक्रवर्ती के चक्र रल का लक्षण शास्त्र, २०. छत्रलक्षण - चक्रवर्ती के छत्र रन का लक्षण शास्त्र, २१. चर्मलक्षण - चक्रवर्ती के चर्म रन का लक्षण शास्त्र, २२. दंडलक्षण चक्रवर्ती के दंड रन का लक्षण शास्त्र, २३. असिलक्षण - चक्रवर्ती के असि.रत्न का लक्षण शास्त्र, २४. मणिलक्षण - चक्रवर्ती के मणि रल का लक्षण शास्त्र, २५. काकिणीलक्षण - चक्रवर्ती के काकिणी का लक्षण शास्त्र, २६. सुभगाकर - दुर्भाग्य को सुभाग्य करने वाली विद्या, २७. दुर्भगाकर - सुभाग्य को दुर्भाग्य करने वाली विद्या, २८. गर्भकर - गर्भाधान की विद्या, २९. मोहनकर - वशीकरण विद्या, ३०. आथर्वणी - अथर्ववेद के मन्त्र, ३१. पाकशासनी - इन्द्रजाल विद्या, ९. इथिलक्खणं, १०. पुरिसलक्खणं, ११. हयलक्खणं, १२. गयलक्खणं, १३. गोणलक्खणं, १४. मेंढलक्खणं, १५. कुक्कुडलक्खणं, १६. तित्तिरलक्खणं, १७. वट्टगलक्खणं, १८. लावगलक्खणं, १९. चक्कलक्खणं, २०. छत्तलक्खणं, २१. चम्मलक्खणं, २२. दंडलक्खणं, २३. असिलक्खणं, २४. मणिलक्खणं, २५. कागणिलक्खणं, २६. सुभगाकर, २७. दुब्भगाकर, २८. गब्भाकर, २९. मोहणकर, ३०. आहव्वणिं, ३१. पागसासणिं,
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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