SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 742
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ज्ञान अध्ययन ६३५ सेतं मणुस्ससेणियापरिकम्मे। अवसेसाईपरिकम्माई पुट्ठाइयाई एक्कारसविहाई पण्णत्ताई। इच्चेयाई सत्त परिकम्माइंछ ससमइयाणि, सत्त आजीवियाणि, छ चउक्कणयाणि, सत्त तेरासियाणि। एवामेव सपुव्वावरेणं सत्त परिकम्माइं तेसीतिं भवंतीतिमक्खायाई। से तं परिकम्माइं३। -सम.सु. १४७(१) (२) सुत्ताइंप. से किं तं सुत्ताइं? उ. सुत्ताई अट्ठासीतिं भवंतीतिमक्खायाई,तं जहा१. उजुगं, २. परिणयापरिणयं, ३. बहुभंगियं, ४. विजयचरियं, ५. अणंतरं, ६. परंपरं, ७. समाणं, ८. संजूह, ९. संभिन्नं, १०. आहच्चायं, ११. सोवत्थियं घंट, १२. णंदावत्तं, १३. बहुलं, १४. पुट्ठापुठं, १५. वियावत्तं, १६. एवंभूयं, १७. दुआवत्तं, १८. वत्तमाणुपयं, १९. समभिरूढं, २०. सव्वओभद्द, २१. पण्णासं, २२. दुपडिग्गह। इच्चेयाइं बावीसं सुत्ताई छिण्णच्छेयणयाई ससमयसुत्तपरिवाडीए, इच्चेयाई बावीसं सुत्ताइं अछिण्णछेयणइयाई आजीवियसुत्तपरिवाडीए, इच्चेयाई बावीसं सुत्ताई तिकणइयाई तेरासियसुत्तपरिवाडीए, यह मनुष्यश्रेणिका परिकर्म है। पृष्ठश्रेणिका परिकर्म से लेकर शेष परिकर्म ग्यारह-ग्यारह प्रकार के कहे गए हैं। पूर्वोक्त सातों परिकर्म में से छ स्वसिद्धांत के प्ररूपक है। सातवां आजीविकमतानुसारी है, छह चतुष्कनयवालों के मतानुसारी हैं। सातवां त्रैराशिक मतानुसारी है। इस प्रकार ये सातों परिकर्म पूर्वापर भेदों की अपेक्षा तिरासी होते हैं। यह परिकर्म का वर्णन है। (२) सूत्रप्र. सूत्र कितने प्रकार का है? उ. सूत्र अठासी प्रकार का कहा गया है, यथा१. ऋजुक, २. परिणतापरिणत, ३. बहुभंगिक, ४. विजयचरित, ५. अनन्तर, ६. परम्पर, ७. समान, ८. संयूथ, ९. संभिन्न, १०. यथात्याग, ११. सौवस्तिकघंट, १२. नन्द्यावर्त, १३. बहुल, १४. पृष्टापृष्ट, १५. व्यावर्त, १६. एवंभूत, १७. द्विकावर्त, १८. वर्तमान पद, १९. समभिरूढ, २०. सर्वतोभद्र, २१. पन्यास, २२. द्विप्रतिग्रह। ये बाईस सूत्र स्वसमयसूत्र परिपाटी से छिन्नच्छेद-नयिक हैं। ये बाईस सूत्र आजीविकसूत्र परिपाटी से अच्छिन्नच्छेदनयिक हैं। ये बाईस सूत्र त्रैराशिकसूत्र परिपाटी से तीन नय वाले हैं। १. से किं तं मणुस्ससेणियापरिकम्मे, मणुस्ससेणियापरिकम्मे चोद्दसविहे पण्णत्ते, तं जहा१.माउगापयाई,जाव १४. मणुस्सावत्तं -नंदी सु. १०१ से तं मणुस्ससेणिया परिकम्मे। से किं तं पुट्ठसेणियापरिकम्मे ? पुट्ठसेणियापरिकम्मे एक्कारसविहे पण्णत्ते, त जहा१. पाढो जाव ११. पुट्ठावत्तं। से तं पुट्ठसेणियापरिकम्मे। से किं तं ओगाढसेणियापरिकम्मे? ओगाढसेणियापरिकम्मे एक्कारसविहे पण्णत्ते, तं जहा१.पाढो जाय ११.ओगाढावत्तं। से तं ओगाढसेणियापरिकम्मे। से किं तं उयसंपज्जणसेणियापरिकम्मे? उवसंपज्जणसेणियापरिकम्मे एक्कारसविहे पण्णत्ते, त जहा १. पाढो जाव ११.उवसंपज्जणावत्तं। सेत उवसंपज्जणसेणियापरिकम्मे। से किं तं विष्पजहणसेणियापरिकम्मे? विष्पजहणसेणियापरिकम्मे एगारसविहे पण्णत्ते,तं जहा१. पाढो जाव ११.विप्पजहणावत्तं। से तं विष्पजहणसेणियापरिकम्मे। से किं तं चुयमचुयसेणियापरिकम्मे? चुयमचुयसेणियापरिकम्मे एगारसविहे पण्णते,तं जहा१. पाढो जाव १.चुयमचुयावत्त। सेत्तं चुयमचुयसेणिया परिकम्मे। ३. इच्चेइयाई सत्त परिकम्माई छ ससमइयाई, सत्त आजीवियाई छ चउक्कणइयाई सत्त तेरासियाई। एवामेव सपुव्यावरेणं सत्त परिकम्माई तेसीतिं भवंतीतिमक्खायाई से तं परिकम्माई। -नंदी सु.१०२-१०७
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy