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________________ ज्ञान अध्ययन ६३३ (क) विपाक सूत्र के प्रथम श्रुतस्कन्ध का उपोद्घातप्र. भन्ते ! श्रमण भगवान् महावीर यावत् सिद्धगति नामक स्थान प्राप्त द्वारा दसवें अंग प्रश्नव्याकरण का यह अर्थ कहा गया है तोभन्ते ! ग्यारहवें अंग विपाक श्रुत का क्या अर्थ कहा गया है? उ. जम्बू ! श्रमण भगवान महावीर यावत् सिद्धगति नामक स्थान प्राप्त द्वारा ग्यारहवें अंग विपाक श्रुत के दो श्रुतस्कन्ध कहे गए हैं, यथा १. दुःख विपाक, २. सुख विपाक। प्र. भन्ते ! यदि श्रमण भगवान् महावीर यावत् सिद्धगति नामक स्थान प्राप्त द्वारा ग्यारहवें अंग विपाक श्रुत के दो श्रुतस्कन्ध कहे गए हैं तोभन्ते ! प्रथम श्रुतस्कन्ध दुःख विपाक के कितने अध्ययन कहे उ. जम्बू ! श्रमण भगवान महावीर यावत् सिद्धगति नामक स्थान प्राप्त द्वारा दुःख विपाक के दस अध्ययन कहे गए हैं, यथा (क) विवागसुयस्स पढमसुयखंधस्स उक्खेवोप. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव सिद्धिगइणामधेयं ठाणं संपत्तेणं दसमस्स अंगस्स पण्हावागरणाणं अयमठे पण्णत्ते, एक्कारसमस्स णं भंते ! अंगस्स विवागसुयस्स के अट्ठे पण्णत्ते? उ. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव सिद्धिगइणामधेयं ठाणं संपत्तेणं एक्कारसमस्स अंगस्स विवागसुयस्स दो सुयक्खंधा पण्णत्ता,तं जहा १. दुहविवागा य,२.सुहविवागा य। प. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव सिद्धिगइणामधेयं ठाणं संपत्तेणं एक्कारसमस्स अंगस्स विवागसुयस्स दो सुयक्खंधा पण्णत्ता, पढमस्स णं भंते ! सुयक्खंधस्स दुहविवागाणं कइ अज्झयणा पण्णत्ता? उ. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव सिद्धिगइणामधेयं ठाणं संपत्तेणं दुहविवागाणं दस अज्झयणा पण्णत्ता,तं जहा१. मियापुत्ते य, २. उज्झियए, ३. अभग्ग, ४. सगडे, ५. वहस्सइ, ६. नंदी, ७. उंबर, ८. सोरियदत्ते य, ९.देवदत्ता य,१०.अंजू य ॥१॥ प. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव। सिद्धिगइणामधेयं ठाणं संपत्तेणं दुहविवागाणं दस अज्झयणा पण्णत्ता, पढमस्स णं भंते ! अज्झयणस्स दुहविवागाणं के अट्ठे पण्णत्ते? उ. एवं खलु जंबू! -विपाक. सु. १, अ.१, सु. ४-९ (ख) बिइय सुयक्खंधस्स उक्खेवोप. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव सिद्धिगइणामधेयं ठाणं संपत्तेणं दुहविवागाणं अयमठे पण्णत्ते, सुहविवागाणं भन्ते ! के अट्ठे पण्णत्ते? तए णं से सुहम्मे अणगारे जंबू अणगारं एवं वयासीउ. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव सिद्धिगइणामधेयं ठाणं संपत्तेणं सुहविवागाणं दस अज्झयणा पण्णत्ता,तं जहा१.सुबाहू, २. भद्दनंदी य,३.सुजाए य, ४. सुवासवे। तहेव, ५. जिणदासे य,६.धणवई य,७. महब्बले ॥१॥ ८. भद्दनंदी, ९. महच्चंदे, १०.वरदत्ते तहेव य। प. जइ णं भन्ते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव सिद्धिगइणामधेयं ठाणं संपत्तेणं सुहविवागणं दस अज्झयणा पण्णत्ता पढमस्स णं भन्ते ! अज्झयणस्स सुहविवागाणं के अछे पण्णते? उ. एवं खलु जंबू ! -विपाक. सुय.२,अ.१,सु.१-४ १. मृगापुत्र, २. उज्झितक, ३. अभग्न, ४. शकट, ५.बृहस्पति, ६.नंदी,७. उंबर,८. सौरिकदत्त,९. देवदत्त, १०.अंजू। प्र. भन्ते ! श्रमण भगवान महावीर यावत् सिद्धगति नामक स्थान प्राप्त द्वारा दुःख विपाक के दस अध्ययन कहे गए हैं तो भन्ते ! दुःख विपाक के प्रथम अध्ययन का क्या अर्थ कहा गया है? उ. जम्बू ! (आगे का कथानक धर्मकथानुयोग में देखें।) (ख) द्वितीय श्रुतस्कन्ध का उपोद्घातप्र. भन्ते ! यदि श्रमण भगवान् महावीर यावत् सिद्धगति नामक स्थान प्राप्त द्वारा दुःख विपाक का यह अर्थ कहा है तो भन्ते ! सुख विपाक का क्या अर्थ कहा है? तब सुधर्मा अणगार ने जंबू अणगार से इस प्रकार कहाउ. जम्बू । श्रमण भगवान महावीर यावत् सिद्धगति नामक स्थान प्राप्त द्वारा सुख विपाक के दस अध्ययन कहे हैं, यथा १. सुबाहु, ३. भद्रनन्दी, ३. सुजात, ४. सुवासव, ५. जिनदास, ६. धनपति,७.महाबल,८. भद्रनंदी,९. महाचन्द्र, १०. वरदत्त। प्र. भन्ते ! यदि श्रमण भगवान् महावीर यावत् सिद्धगति नामक स्थान प्राप्त द्वारा सुख विपाक के दस अध्ययन कहे हैं तोभन्ते ! सुख विपाक के प्रथम अध्ययन का क्या अर्थ कहा है? उ. जम्बू ! (आगे का कथानक धर्मकथानुयोग में देखें।)
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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