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________________ ( १२८ द्रव्यानुयोग-(१) भन्ते ! अनुत्तरोपपातिक दशा के प्रथम वर्ग के कितने अध्ययन कहे गए हैं ? उ. जम्बू ! श्रमण भगवान् महावीर यावत् सिद्धगति नामक स्थान प्राप्त द्वारा अनुत्तरोपपातिक दशा के प्रथम वर्ग के दस अध्ययन कहे गए हैं, यथा१. जालि, २. मयालि, ३. उवयालि, ४. पुरिससेण, ५. वारिसेण ६. दीर्घदन्त, ७. लष्टदन्त, ८. वेहल्ल, ९. वेहायस, १०.अभयकुमार। प्र. भन्ते ! यदि श्रमण भगवान् महावीर यावत् सिद्धगति नामक स्थान प्राप्त द्वारा प्रथम वर्ग के दस अध्ययन कहे गए हैं तो पढमस्स णं भन्ते ! वग्गस्स अणुत्तरोववाइयदसाणं कइ अज्झयणा पण्णत्ता? उ. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव सिद्धिगइणामधेयं ठाणं संपत्तेणं अणुत्तरोववाइयदसाणं पढमस्स वग्गस्स दस अज्झयणा पण्णत्ता,तं जहा१.जालि,२.मयालि,३.उवयालि,४.पुरिससेणे य,५. वारिसेणे य। ६.दीहदंते य,७. लट्ठदंते य, ८. वेहल्ले, ९. वेहायसे, १०.अभये इय कुमारे ॥१॥ प. जइ णं भन्ते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव सिद्धिगइणामधेयं ठाणं संपत्तेणं पढमस्स वग्गस्स दस अज्झयणा पण्णत्ता, पढमस्स णं भन्ते ! अज्झयणस्स अणुत्तरोववाइयदसाणं के अट्ठे पण्णते? उ. एवं खलु जंबू। -अणु.व.१,सु.१-२ (ख) अणुत्तरोववाइयदसांगस्स उवसंहारो अणुत्तरोववाइयदसाणं एगो सुयक्खंधो, तिण्णि वग्गा तिसु चेव दिवसेसु उद्दिसंति। तत्थ पढमे वग्गे दस उद्देसगा, बिइए वग्गे तेरस उद्देसगा, तइए वग्गे दस उद्देसगा। -अणु.व.३,सु.७५ २८.(१०)पण्हावागरणाई प. से किं तं पण्हावागरणाणि? उ. पण्हावागरणेसु अछुत्तरं पसिणसयं, अठुत्तरं अपसिणसयं, अठुत्तरं पसिणापसिणसयं, विज्जाइसया, नागसुवन्नेहि सद्धिं दिव्या संवाया आघविजंति। पण्हावागरणदसासु णं-ससमय-परसमयपण्णवयपत्तेयबुद्धविविहत्थभासाभासियाणं, भन्ते ! अनुत्तरोपपातिक दशा के प्रथम अध्ययन का क्या अर्थ कहा है? उ. जम्बू ! (इसके आगे का कथानक धर्मकथानुयोग में देखें)। (ख) अनुत्तरोपपातिक दशांग सूत्र का उपसंहार अनुत्तरोपपातिक दशा में एक श्रुतस्कन्ध है। तीन वर्ग हैं, तीन ही दिनों में इसका वांचन होता है। उसके प्रथम वर्ग में दस उद्देशक हैं, द्वितीय वर्ग में तेरह उद्देशक हैं, तृतीय वर्ग में दस उद्देशक हैं। २८.(१०) प्रश्नव्याकरण सूत्र प्र. प्रश्नव्याकरण में क्या (वर्णन) है? उ. प्रश्नव्याकरण अंग में एक सौ आठ प्रश्न, एक सौ आठ अप्रश्न, और एक सौ आठ प्रश्नाप्रश्न, अनेक विद्याएं तथा नागसुपर्णों के साथ हुए दिव्य संवाद कहे गए हैं। प्रश्नव्याकरणदशा में स्वसमय-परसमन के प्रज्ञापक प्रत्येकबुद्धों के द्वारा विविध अर्थ वाली भाषाओं द्वारा कथित वचनों कानाना प्रकार के अतिशयों का, ज्ञानादि गुणों और उपशम भाव आदि आचार्य भाषितों का, विस्तार से कहे गए वीर महर्षियों के जगत् हितकारी अनेक प्रकार के विस्तृत सुभाषितों का, आदर्श, अंगुष्ठ, बाहु, असि, मणि, क्षोम और सूर्य आदि (के आश्रय से दिए गए विद्या-देवताओं के उत्तरों) का इस अंग में वर्णन है। अनेक महाप्रश्नविद्याएं वचन से ही प्रश्न करने पर उत्तर देती हैं, अनेक विद्याएं मन से चिन्तित प्रश्नों का उत्तर देती हैं, अनेक विद्याएं अनेक अधिष्ठाता देवताओं के प्रयोग-विशेष की प्रधानता से अनेक अर्थों के संवादक गुणों को प्रकाशित करती है, अइसयगुण-उवसमणाणप्पगार-आयरियभासियाणं, वित्थरेणं वीरमहेसीहिं विविहवित्थरभासियाणं च जगहियाणं अद्दागंगुट्ठ-बाहु-असि-मणि-खोम-आइच्चमाइयाणं विविहमहापसिणाविज्जा मणपसिणाविज्जादेवयपयोगपाहण्णगुणप्पगासियाणं, १. शेष सभी अध्ययनों एवं वर्गों का उपोद्घात और उपसंहार ज्ञातासूत्र के समान ही है।
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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