________________
६१७
ज्ञान अध्ययन
उच्छूढसरीरे, संखित्त-विउलतेयलेस्से, अज्जसुहम्मस्स थेरस्स अदूरसामंते उड्ढं जाणू अहोसिरे झाणकोट्ठोवगए संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। तए णं से अज्ज जंबू नामे अणगारे जायसड्ढे जायसंसए जायकोउहल्ले जाव अज्ज सुहम्मस्स थेरस्स नच्चासण्णे नाइदूरे सुस्सूसमाणे नमसमाणे अभिमुहे पंजलिउडे विणएणं पज्जुवासमाणे एवं वयासी
प. “जइणं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं
आइगरेणं तित्थयरेणं सयंसंबुद्धणं पुरिसुत्तमेणं पुरिससीहेणं पुरिसवरपुंडरीएणं पुरिसवर गंध हत्थिणं लोगत्तमेणं लोगनाहेणं लोगहिएणं लोगपईवेणं लोगपज्जोयगरेणं अभयदएणं चक्खुदएणं मग्गदएणं सरणदएणं जीवदएणं बोहीदएणं धम्मदएणं धम्मदेसएणं धम्मनायगेणं धम्मसारहिणं धम्मवरचाउरंतचक्कवट्टिणं दीवोत्ताणं सरणगइपइट्ठाणेणं अप्पडिहयवरनाणदसणधरेणं विअट्टछउमेणं । जिणेणं जावएणं तिण्णेणं तारएणं बुद्धेणं बोहएणं मुत्तेणं मोयगेणं सव्वण्णूणं, सव्वदरिसिणं सिव-मयल-मरुय-मणंतमक्खयव्वाबाह मपुणरावित्तियं सिद्धिगइनामधेयं ठाणं संपत्तेणं पंचमस्स अंगस्स अयमढे पण्णत्ते, छट्ठस्स णं भंते ! अंगस्स नायाधम्मकहाणं के अट्ठे पण्णते? जंबू ति अज्जसुहम्मे थेरे अज्जजंबूनामं अणगारं एवं
वयासीउ. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव • सिद्धिगइनामधेयं ठाणं संपत्तेणं छट्ठस्स अंगस्स दो सुयक्खंधा पण्णत्ता, तं जहा
१. नायाणि य, २. धम्मकहाओ य। प. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव
सिद्धिगइनामधेयं ठाणं संपत्तेणं छट्ठस्स अंगस्स दो
सुयक्खंधा पण्णत्ता, १. (क) उवा.अ १ सु.१-५ (क)
(ख) अंत अ. १,सु.१-३ (ग) अणु.अ.१.सु.१
उनका शरीर प्रमाणोपेत ऊँचाई वाला था। बहुत बड़ी तेजोलब्धि को अन्दर धारण किए हुए थे। वे आर्य सुधर्मा स्थविर से थोड़ी दूरी पर ऊँचे जानु और नीचा सिर करके ध्यान करते हुए संयम और तप से अपनी आत्मा को साधते थे। उस समय आर्य जम्बू नाम के अणगार को श्रद्धापूर्वक अपने संशय का समाधान प्राप्त करने के लिए सामान्य उत्सुकता हुई यावत् आर्य सुधर्मा स्थविर से थोड़ी दूर बैठकर उनकी ओर मुँह करके विनयपूर्वक सूचन करते हुए और हाथ जोड़कर
उपासना करते हुए इस प्रकार बोलेप्र. “भन्ते ! आदिकर्ता तीर्थकर सहज संबुद्ध श्रमण भगवान
महावीर जो, पुरुषों में उत्तम, पुरुषों में सिंह सम, पुरुषों में पुंडरीक सम, पुरुषों में गन्धहस्ति सम, (मनुष्य) लोक में उत्तम, लोक के नाथ, लोक के हितैषी, लोक में दीपक सम, लोक में प्रकाशकर्ता, अभयदाता, ज्ञान चक्षु के दाता, मोक्ष मार्ग दाता, शरण दाता (लोकोत्तर) जीवन दाता (आत्म) बोध दाता, धर्मदाता, धर्मोपदेशक, धर्म के नायक, धर्म के सारथी, चारों गतियों का अन्त करने वाले धर्म के चक्रवर्ती, द्वीप रूप रक्षक, शरण योग्य, शिवगति दाता, आधार रूप अविनाशी ज्ञान-दर्शनधारक छद्मस्थता रहित, राग-द्वेष विजेता, विजय बोधक भवोदधि तीर्ण, भव्यजन तारक स्वयं बुद्ध, भव्यजन बोधक कर्म बन्धन मुक्त, मुमुक्षुजन मोचक सर्वज्ञ सर्वदर्शी, शिव अचल अरुज (रोगरहित) अनन्त अक्षय अव्याबाध अपुनरावर्त सिद्धगति नामक स्थान प्राप्त ने यदि पाँचवें अंग का यह अर्थ कहा तो है भन्ते ! छठे अंग ज्ञाताधर्मकथा का क्या अर्थ कहा है?
आर्य सुधर्मा नामक स्थविर ने आर्य जम्बू अणगार को इस
प्रकार कहाउ. जम्बू ! श्रमण भगवान् महावीर यावत् सिद्धगति नामक
शाश्वत स्थान प्राप्त द्वारा छठे अंग के दो श्रतस्कन्ध कहे गए हैं,यथा१. ज्ञात,
२. धर्मकथाएं। प्र. भन्ते ! यदि श्रमण भगवान् महावीर यावत् सिद्धगति
नामक शाश्वत स्थान प्राप्त द्वारा छठे अंग के दो श्रुतस्कन्ध कहे हैं तो
(घ) विपा.सुय.१,अ.१.सु.१-४ (च) निरीय वग्ग.१,अ.१.सु.१ (छ) विपा. सुय.२,अ.१,सु.१