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________________ द्रव्यानुयोग-(१) ( ६१२ । किमिदं रायगिहं ति य, उज्जोए अंधकारे समए य। पासंतिवासिपुच्छा राइंदिय देवलोगा य॥१॥ -विया. स. ५,उ,९,सु. १८ महावेदणे य वत्थे कद्दम खंजणमए य अहिकरणी। तणहत्थे यकवल्ले करण महावेयणा जीवा ॥ -विया. स.६,उ.१.स.१४ १ बहुकम्म २ वत्थपोग्गल पयोगसा वीससा य ३ सादीए। ४-५ कम्मट्ठिई-त्थि ६ संजय ७ सम्मदिट्ठी य ८ सण्णी य॥१॥ ९ भविए १० दसण ११ पज्जत्त १२ भासए १३ परित्त १४ नाण १५ जोगे य। १६-१७ उवओगाऽहारग १८ सुहुम १९ चरिम बंधे य,२० अप्पबहुयं ॥२॥ -विया. स.६,उ.३, सु.१ तमुकाए कप्पपणए, अगणी, पुढवी य, अगणि पुढवीसु। आउ-तेउ-वणस्सइ, कप्पुवरिम कण्हराईसु॥१॥ -विया.स.६,उ.८,सु.२६ जीवाणं सुहं दुक्खं,जीवे जीवइ तहेव भविया य। एगंतदुक्खवेदेण, अत्तमायाय केवली ॥१॥ -विया. स. ६, उ. १०, सु.१५ १ नेरइय २ फास ३ पणिही, ४ निरयंते चेव ५ लोयमज्झेय। ६ दिसि दिसाण य पवहा ७ पवत्तणं अत्थिकाएहिं॥ ८ अस्थि पएसफुसणा ९ ओगाहणा य १० जीव मोगाढा। ११. अत्थि पएस निसीयण १२ बहुस्समे १३ लोग संठाणे॥ -विया. स. १३, उ. ४, सु.१ महक्काए सक्कारे सत्थेणं वीवयंति देवा उ। वासं चेव य वाणा नेरइयाणं तु परिणामे ।। -विया. स. १४, उ.३,सु.१ राजगृह नगर क्या है? उद्योत, अन्धकार समय सम्बन्धी जिज्ञासा, रात्रि-दिवस के विषय में पार्वजिनशिष्यों के प्रश्नोत्तर और देवलोक विषयक प्रश्नोत्तर इस उद्देशक में है। महावेदना, कर्दम और खंजन के रंग से रंगे हुए वस्त्र, अधिकरणी (एरण) घास का पूला (तृणहस्तक) लोहे का तवा या कड़ाह करण और महावेदना वाले जीव इन विषयों का इस उद्देशक में वर्णन किया गया है। १. बहुकर्म, २. वस्त्र में प्रयोग से और स्वाभाविक रूप से पुद्गल, ३. सादि, ४. कर्मस्थिति, ५. स्त्री, ६. संयत, ७. सम्यग्दृष्टि, ८. संज्ञी तथा९. भव्य, १०. दर्शन, ११. पर्याप्त, १२. भाषक, १३. परित्त, १४. ज्ञान, १५. योग, १६. उपयोग, १७. आहारक, १८. सूक्ष्म, १९. चरम-बन्ध, २०. अल्पबहुत्व का इस उद्देशक में वर्णन किया है। तमस्काय और पांच देव-लोकों में अग्निकाय और पृथ्वीकाय सम्बन्धी प्रश्नोत्तर पृच्छा, नरकपृथ्वियों में अग्निकाय सम्बन्धी प्रश्नोत्तर, पंचम देवलोक से ऊपर सब स्थानों में तथा कृष्णराजियों में अप्काय, तेजस्काय और वनस्पतिकाय के प्रश्नोत्तरों का वर्णन किया गया है। जीवों के सुख-दुःख, जीवों का प्राणधारण, भव्यत्व, एकान्त, दुःख वेदन, आत्मा द्वारा पुद्गलों का ग्रहण और केवली के जानने देखने का वर्णन इस उद्देशक में हैं। १. नैरयिक, २. स्पर्श, ३. प्रणिधि, ४. निर्यात और ५.लोकमध्य, ६. दिशा-विदिशा प्रवह,७.अस्तिकाय प्रवर्तन, ८. अस्ति प्रदेश स्पर्शन, ९. अवगाहना, १०. जीवावगाढ़, ११. अस्ति प्रदेश निषीदन, १२. बहुःश्रम और १३. लोक संस्थान इस उद्देशक में ये तेरह द्वार हैं। १. महाकाल, २. सत्कार, ३. देवों द्वारा व्यतिक्रमण, ४. शस्त्र द्वारा अवक्रमण ५. नैरयिकों द्वारा पुद्गल परिणामानुभव, ६. वेदनापरिणामानुभव और, ७. परिग्रहसंज्ञानुभव। इस उद्देशक में इनका वर्णन किया है। १. पुद्गल, २. स्कन्ध, ३. जीव, ४. परमाणु, ५. शाश्वत। ६. चरम तथा द्विविध परिणाम जीव और अजीवपरिणाम इनका इस उद्देशक में वर्णन है। १. नैरयिकादि का अग्नि में से होकर गमन, २. (चौवीस दण्डकों में) दस स्थानों के इष्टानिष्ट अनुभव और, ३. देव द्वारा बाह्यपुद्गलग्रहणपूर्वक तिरछे पर्वतादि के उल्लंघन प्रलंघन का सामर्थ्य , इन विषयों का इस उद्देशक में वर्णन है। १.प्रतिसेवना, २. दोषालोचना, ३. आलोचना, ४. समाचारी, ५. प्रायश्चित्त और ६. तप का यहाँ वर्णन किया गया है। १-पोग्गल २-खंधे ३-जीवे ४-परमाणु ५-सासए य ६-चरमे या दुविहे खलु परिणामे, अजीवाण य जीवाणं। -विया. स. १४, उ.४, सु.१ नेरइयं अगणिमज्झे दस ठाणा तिरिय पोग्गले देव। पव्यय भित्ती उल्लंघणा य, पल्लंघणा चेव ॥ -विया.स.१४, उ.५,सु.१ पडिसेवण दोसालोयणा य,आलोयणारिहे चेव। तत्तो सामायारी, पायच्छित्ते तवे चेव ॥१॥ -विया. स.२५, उ.७,सु. १८९ (छ) एएसु-उद्देसेसु य उक्खेव पाठाणं परूवणं तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नाम नगरे होत्था, वण्णओ। (छ) शतकों और उद्देशकों में उत्क्षेप पाठों का प्ररूपण उस काल और उस समय में राजगृह नामक नगर था, (उसकी समृद्धि आदि का) वर्णन करना चाहिए,
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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