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________________ ( ६०८) वियाहस्स णं परित्ता वायणा जाव संखेज्जाओ संगहणीओ। से णं अंगठ्ठयाए पंचमे अंगे, एगे सुयक्खंधे, एगे साइरेगे अज्झयणसए, दस उद्देसगसहस्साई, दस समुद्देसगसहस्साई, छत्तीसं वागरणसहस्साई, चउरासीई पयसहस्साइं पयग्गेणं पण्णत्ताई। संखेज्जा अक्खरा जाव उवदंसिज्जति। से एवं आया, एवं णाया, एवं विण्णाया, एवं चरणकरण परूवणा आघविज्जइ जाव उवदंसिज्जइ। सेतं वियाहे। -सम. सु.१४० (क) वियाहपण्णत्तीए उद्देसण विही पण्णत्तीए आइमाणं अट्ठण्हं सयाणं दो-दो उद्देसगा उद्दिसिज्जति। णवरं-चउत्थसए पढमदिवसे अट्ठ, बिइयदिवसे दो उद्देसगा उद्दिसिज्जति। नवमाओ सयाओ आरद्धं जावइयं जावइयं ठाइ तावइयं तावइयं उद्दिसिज्जइ, द्रव्यानुयोग-(१) व्याख्याप्रज्ञप्ति की वाचनाएं परिमित हैं यावत् संग्रहणियां संख्यात हैं। अंगों में यह पांचवां अंग है, इसमें एक श्रुतस्कन्ध है, सौ से कुछ अधिक अध्ययन है, दस हजार उद्देशन-काल है, दस हजार समुद्देशन-काल है, छत्तीस हजार प्रश्नों के उत्तर हैं। पद-गणना की अपेक्षा चौरासी हजार पद हैं। संख्यात अक्षर हैं यावत् उदाहरण देकर समझाए गए हैं। इसका अध्ययन करने वाला तदात्मरूप एवं ज्ञाता-विज्ञाता बन जाता है। इस प्रकार इसमें चरण-करण की प्ररूपणा की गई है यावत् उपदर्शन किया गया है। यह व्याख्याप्रज्ञप्ति का वर्णन है। (क) व्याख्याप्रज्ञप्ति की अध्ययन विधि व्याख्याप्रज्ञप्ति के प्रारम्भ के आठ शतकों के दो-दो उद्देशकों का उद्देश (वांचन) एक-एक दिन में किया जाता है। विशेष-चतुर्थ शतक के आठ उद्देशकों का वांचन पहले दिन और दूसरे दिन शेष दो उद्देशकों का वाचन किया जाता है। नौवें शतक से लेकर बीसवें शतक तक जितना-जितना शिष्य की बुद्धि में स्थिर हो सके, उतना-उतना एक-एक दिन में वांचन किया जाता है। उत्कृष्ट एक दिन में एक शतक का भी वांचन किया जा सकता है, मध्यम दो दिन में और जघन्य तीन दिन में एक शतक का पाठ वांचन किया जा सकता है। इस प्रकार बीसवें शतक तक जानना चाहिए। विशेष-पन्द्रहवें गोशालक शतक का एक ही दिन में वांचन करना चाहिए। यदि शेष रह जाए तो दूसरे दिन आयम्बिल करके वांचन करना चाहिए। फिर भी शेष रह जाए तो तीसरे दिन आयम्बिल (षष्ठ भक्त अर्थात् दो आयंबिल) करके वांचन करना चाहिए। इक्कीसवें, बाईसवें और तेईसवें शतक का एक-एक दिन में वांचन करना चाहिए। चौबीसवें शतक के छह-छह उद्देशकों का वांचन करके चार दिनों में पूर्ण करना चाहिए। पच्चीसवें शतक के प्रतिदिन छह-छह उद्देशकों का वाचन करके दो दिनों में पूर्ण करना चाहिए। उक्कोसेणं सयं पि एगदिवसेणं उद्दिसिज्जइ, मज्झिमेणं दोहिं दिवसेहिं सयं, जहण्णेणं तिहिं दिवसेहिं सयं। एवं जाव वीसइमं सयं। णवर-गोसालो एगदिवसेणं उद्दिसिज्जइ, जइ ठिओ एगेण चेव आयंबिलेणं अणुण्णव्वइ, अहण्णं ठिओ आयंबिल छठेणं अणुण्णव्वइ। एक्कवीस-बावीस-तेवीसइमाई सयाई एक्केक्कदिवसेणं उद्दिसिज्जति। चउवीसइमं चउहि दिवसेहिं -छछ उद्देसगा उद्दिसिज्जंति। पंचवीसइमं दोहिं दिवसेहिं-छछ उद्देसगा उद्दिसिज्जति। १. (क) समवायांग में ८४ हजार पद प्रमाण बताया गया है जबकि नंदी सूत्र में दो लाख अट्ठासी हजार पद प्रमाण है। (ख) सम. सम.८४ सु.१० २. प. से किं तं वियाहे ? उ. वियाहे णं जीवा वियाहिज्जति, अजीवा वियाहिज्जंति, जीवाजीवा वियाहिज्जंति। लोए वियाहिज्जइ, अलोए वियाहिज्जइ, लोयालोए वियाहिज्जइ। ससमए वियाहिज्जइ, परसमए वियाहिज्जइ, ससमयपरसमए वियाहिज्जइ। वियाहे णं परित्ता वायणा जावसंखेज्जाओ संगहणीओ, से णं अंगठ्ठयाए पंचमे अंगे, एगे सुयक्वंधे, एगे साइरेगे अज्झयणसए, दस उद्देसगसहस्साईं, दस समुद्देसगसहस्साई, छत्तीस वागरणसहस्साई, दो लक्खा अट्ठासीतिं पयसहस्साई पयग्गेणं, संखेज्जा अक्खरा जाव उवदंसिज्जति। से एवं आया, एवं नाया, एवं विण्णाया, एवं चरणकरण परूवण आघविज्जइ से तं वियाहे। -नंदी., सु.८८
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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