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________________ ५७८ सूत्र २३. दिट्ठी अज्झयणं १. जीव- चउवीसदंडएसु सिद्धेसु य दिट्ठी भेय परूवणं प. जीवा णं भंते ! किं सम्मदिडी मिच्छाविडी सम्मामिच्छादिङ्गी ? उ. गोयमा ! जीवा सम्मदिट्ठी वि मिच्छादिट्टी वि, सम्मामिच्छादिट्ठी वि' । दं. १. एवं रइया विरे । दं. २ ११. असुरकुमारा वि एवं चैव जाय धणियकुमारा। प. . १२. पुढविक्काइयाणं भते किं सम्मदिट्ठी मिच्छादिट्टी सम्मामिच्छाविडी ? 7 णो उ. गोयमा ! पुढविक्काइया णो सम्मदिट्ठी मिच्छादिट्ठी, सम्मामिच्छादिट्ठी ३ । दं. १३-१६. एवं जाव वणफइकाइया * । प. दं. १७. बेइंदियाणं भंते ! किं सम्मदिट्ठी मिच्छादिट्ठी, सम्मामिच्छादिट्ठी ? उ. गोयमा बेदिया सम्मदिट्टी वि मिच्छादिट्टी वि, णो सम्मामिच्छादिट्टी | दं. १८-१९. एवं इंदिया चउरिदिया वि दं. २०-२४. पंचेंद्रिय - तिरिक्खजोणिय मणुस्सा', बाणमंतर - जोइसिय- वैमाणिया य सम्मदिट्ठी मिच्छादिट्ठी वि, सम्मामिच्छादिट्ठी वि९ । वि. प. सिद्धा णं भंते किं सम्मदिनी मिच्छादिडी ! सम्मामिच्छादिट्ठी ? 2 उ. गोयमा सिद्धा णं सम्मदिडी णो मिच्छादिट्टी णो सम्मामिच्छादिट्ठी । - पण्ण. प. १९, सु. १३९९-१४०५ , १. ठाणं अ. ३, उ. ३, सु. १८७ २. (क) जीवा पडि. ३, उ. ३, सु. ८८ (२) (ख) जीवा. पडि. १, सु. ३२ २. दिट्ठिस्स अगरुयलहुयत्त परूवणं प. दिट्ठी णं भंते ! किं गरुया ? लहुया ? गरुयलहुया ? अगरुयलहुया ? उ. गोयमा ! णो गरुया णो लहुया णो गरुयलहुया, -विया. स. १, उ. ९, सु. ११ अगरुयलहुया । ३. दिट्ठी निव्वत्ती भेया चउवीसदंडएसु य परूवणंप. कइविहाणं भंते! दिदी निव्वत्ती पण्णत्ता ? ३. (क) जीवा. पडि. १, सु. (१३/१३) (ख) विया. स. १९, उ. ३, सु. ४ (ग) विया. स. २४, उ. १२, सु. ३ ४. ५. , सूत्र १. जीव चौबीसदंडकों और सिद्धों में दृष्टि के भेदों का प्ररूपणप्र. भन्ते ! क्या जीव सम्यग्दृष्टि हैं, मिथ्यादृष्टि हैं या सम्यग्मिथ्यादृष्टि हैं ? द्रव्यानुयोग - (१) २३. दृष्टि अध्ययन उ. गौतम जीव सम्यगदृष्टि भी है, मिथ्यादृष्टि भी हैं और सम्यग्मिथ्यादृष्टि भी हैं। दं. 9. इसी प्रकार नैरधिक भी तीनों दृष्टि वाले हैं। ६. जीवा. पडि. १, सु. २९-३० ७. प्र. दं. १२. भन्ते ! पृथ्वीकायिक जीव क्या सम्यग्दृष्टि हैं, मिथ्यादृष्टि हैं या सम्यग्मिथ्यादृष्टि हैं ? दं. २- ११. असुरकुमारों से स्तनितकुमारों पर्यन्त के भी तीनों दृष्टिपी पाई जाती है। उ. गौतम ! पृथ्वीकाधिक जीव सम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिध्यादृष्टि नहीं हैं, किन्तु मिथ्यादृष्टि हैं। दं. १३-१६. इसी प्रकार वनस्पतिकायिकों पर्यन्त जानना चाहिए। प्र. ६. १७. भन्ते डीन्द्रिय जीव सम्यग्दृष्टि हैं, मिध्यादृष्टि है या सम्यग्मिथ्यादृष्टि हैं ? उ. गौतम ! द्वीन्द्रिय जीव सम्यग्दृष्टि भी हैं, मिथ्यादृष्टि भी हैं। किन्तु सम्यग्मिथ्यादृष्टि नहीं है। दं. २०-२४. पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक, मनुष्य, वाणव्यन्तर ज्योतिष्क और वैमानिक देव सम्यग्दृष्टि भी होते हैं, मिथ्यादृष्टि भी होते हैं और सम्यग्मिध्यादृष्टि भी होते हैं। , प्र. भन्ते क्या सिद्ध जीव सम्यग्दृष्टि हैं मिथ्यादृष्टि है या सम्यग्मिथ्यादृष्टि हैं? जीवा. पडि. १, सु. १६-२६ (क) जीवा. पडि. १, सु. २८ (ख) विया. स. २०, उ. १, सु. ४ दं. १८-१९. इसी प्रकार त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय की भी दृष्टियाँ जाननी चाहिए। उ. गौतम सिद्ध जीव सम्यग्दृष्टि होते हैं, वे मिथ्यादृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि नहीं होते हैं। २. दृष्टि के अगुरुलघुत्व का प्ररूपण प्र. भंते! दृष्टि क्या गुरु है, लघु है, गुरुलघु है या अगुरुलघु है? (क) विया. स. १, उ. २, सु. ९/२ (ख) विया, स. २०, उ. १, सु. ७ उ. गौतम ! दृष्टि गुरु नहीं है, लघु नहीं है और गुरुलघु भी नहीं है किन्तु अगुरुलघु है। ३. दृष्टि निर्वृति के भेद और चौवीसदंडकों में प्ररूपणप्र. भंते! दृष्टि निर्वृत्ति कितने प्रकार की कही गई है ? ८. ९. विया. स. १, उ. २, सु. १०/२ (क) ठाणं. अ. ३, उ. ३, सु. १८७ (ख) जीवा. पडि. ३, सु. ९७ (१) (ग) जीवा. पडि. १, सु. ४२
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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