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________________ ५७० थलयरा खहयरा एवं चेव । प. गब्भवक्कंतिय पंचेंदिय तिरिक्खजोणिय जलयराणं भंते ! किं चक्खुदंसणी जाय केवलदंसणी ? उ. गोयमा ! चक्खुदंसणी वि, अचक्खुदंसणी वि ओहिदंसणी वि णो केवलदंसणी । थलयरा खहयरा एवं चेव । - जीवा. पडि. १, सु. ३५-४० प सम्मुच्छिम मणुस्सा णं भंते । किं चक्बुदंसणी जाव केवलसणी ? उ. गोयमा ! णो चक्खुदंसणी, अचक्खुदंसणी, णो ओहिदंसणी णो केवलदंसणी । प. गब्भवक्कतिय मणुस्साणं भंते! किं चक्खुदंसणी जाव केवलदंसणी ? उ. गोयमा ! चक्खुदंसणी वि जाय केवलदंसणी वि - जीवा. पडि. १, सु. ४१ प. देवाणं भंते! किं चक्खुदंसणी जाव केवलदंसणी ? उ. गोयमा ! चक्खुदंसणी वि, अचक्खुदंसणी वि, ओहिदंसणी वि णी केवलदंसणी जीवा. डि. १. सु. ४२ 2 १३. दंसणस्स अगरुयल हुयत परुवर्ण प. दंसणे णं भते किं गरुया? लहुया ? गरुयलहुया ? अगरुयलहुया ? उ. गोयमाणो गरुया, णो लहुया, जो गरुयलया, अगरुयलहुया । -विया. स. १, उ. ९, सु. ११ १४. चक्खुदंसणी आईण कार्यट्ठिई परूवणं प. चक्सुदंसणी णं भंते! चक्खुदंसणी ति कालओ केवचिर होइ ? उ. गोयमा ! जहणणेणं अंतोमुहुर्त, उक्कोसेणं सागरोवमसहस्स साइरेगे। प. अचक्खुदंसणी णं भंते ! अचक्खुदसंणीत्ति कालओ केवचिरे होइ ? उ. गोयमा! अचक्खुदंसणी दुविहे पण्णत्ते, तं जहा १. अणाईए वा अपज्जवसिए, २. अणाईए वा सपज्जवसिए । प. ओहिदंसणी णं भंते ! ओहिदंसणीत्ति कालओ केवचिरं होइ ? उ. गोयमा ! जहण्णेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं दो छावट्ठीओ सागरोवमाण साइरेगाओ। प. केवलदंसणी णं भंते ! केवलदंसणीत्ति कालओ केवचिरं होइ ? उ. गोयमा ! साईए अपज्जवसिए । ' - पंण्ण. प. १८, सु. १३४६-१३५७ १५. चक्खुणी आईणं अंतरकाल परूवणं चक्खुदंसणिस्स अंतर-जहन्नेणं अतोमुहुत्त उक्कोसेण वणस्सकालो। १. जीवा. पडि. ९, सु. २४६ द्रव्यानुयोग - (१) इसी प्रकार ( सम्मूर्च्छिम) स्थलचर खेचर जीवों के लिए भी जानना चाहिए। प्र. भन्ते ! गर्भजपंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जलचर क्या चक्षुदर्शनी यावत् केवलदर्शनी है? उ. गौतम ! चक्षुदर्शनी, अचक्षुदर्शनी और अवधिदर्शनी है किन्तु केवलदर्शनी नहीं है। इसी प्रकार गर्भज स्थलचर खेचर जीवों के लिए भी जानना चाहिए। प्र. भन्ते ! सम्मूर्च्छिम मनुष्य क्या चक्षुदर्शनी यावत् केवलदर्शनी है? उ. गौतम चसुदर्शनी अवधिदर्शनी और केवलदर्शनी नहीं है किन्तु अचक्षुदर्शनी है। प्र. भन्ते ! गर्भज मनुष्य क्या चक्षुदर्शनी यावत् केवलदर्शनी है ? उ. गौतम ! चक्षुदर्शनी भी है यावत् केवलदर्शनी भी है। प्र. भन्ते ! देव क्या चक्षुदर्शनी यावत् केवलदर्शनी है? उ. गौतम ! चक्षुदर्शनी, अचक्षुदर्शनी और अवधिदर्शनी है किन्तु केवलदर्शनी नहीं है। १३. दर्शन के अगुरुलघुत्व का प्ररूपण प्र. भन्ते ! दर्शन क्या गुरु है, लघु है, गुरुलघु है या अगुरुलघु है ? उ. गौतम ! दर्शन गुरु नहीं है, लघु नहीं है और गुरुलघु भी नहीं है किन्तु अगुरुलघु है। १४. चक्षुदर्शनी आदि की कायस्थिति का प्ररूपण प्र. भन्ते चक्षुदर्शनी चक्षुदर्शनी के रूप में कितने काल तक रहता है ? उ. गौतम जघन्य अन्तर्मुहूर्त तक, " उत्कृष्ट कुछ अधिक हजार सागरोपम तक रहता है। प्र. भन्ते ! अचक्षुदर्शनी, अचक्षुदर्शनी के रूप में कितने काल तक रहता है ? उ. गौतम ! अचक्षुदर्शनी दो प्रकार का कहा गया है, यथा १. अनादि अपर्यवसित, २. अनादि सपर्यवसित । प्र. भन्ते! अवधिदर्शनी, अवधिदर्शनी के रूप में कितने काल तक रहता है ? उ. गौतम ! जघन्य एक समय तक, उत्कृष्ट कुछ अधिक दो छियासठ सागरोपम तक रहता है। प्र. भन्ते केवलदर्शनी, केवलदर्शनीकरूप में कितने काल तक रहता है ? उ. गौतम ! केवलदर्शनी सादि अपर्यवसित होता है। १५. चक्षुदर्शनी आदि के अंतरकाल का प्ररूपण चक्षुदर्शनी का अन्तर- जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल है।
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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