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________________ ५६६ १. आभिणिबोहियणाणसागारोवओगे, २. सुयणाणसागारोवओगे, ३. मइ अण्णाणसागारोवओगे, ४. सुयअण्णाणसांगारोवओगे। प. बेइंदियाणं भंते ! अणागारोवओगे कइविहे पण्णत्ते ? उ. गोयमा ! एगे अचक्खुदंसण अणागारोवओगे। ६. १८ एवं इंदियाण वि' । दं. १९. चउरिंदियाण वि एवं चेवरे । णवरं - अणागारोवओगे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा १. चक्खुदंसणअणागारोवओगे य, २. अचक्खुदंसण अणागारोचओगे य दं. २०. पंचेंद्रिय - तिरियक्खजोणियाणं जहा णेरइयाणं ३ । दं. २१. मणुस्साणं जहा ओहिए उबओगे भणियं तहेब भाणियव्वं ४ । दं. २२-२४ वाणमंतर - जोइसिय-वेमाणियाणं जहा इयाणं । - पण्ण. प. २९, सु. १९१२-१९२७ ७. जीव- चउवीसदंडएसु सागाराणागारोवउत्तत्त परूवणं प. जीवा णं भंते! किं सागारोवउत्ता अणागारोवउत्ता ? उ. गोयमा ! सागारोवउत्ता वि, अणागारोवउत्ता वि। प. से केणट्टेणं भंते ! एवं वुच्चइ "जीवा सागारोयउत्ता वि, अणागारोवउत्ता वि?" उ. गोयमा ! जे णं जीवा आभिणिबोहियणाण-सुयणाणओहिणाण-मण- केवल मइअण्णाण सुयअण्णाणविभंगणाणोवउत्ता, ते णं जीवा सागारोवउत्ता, जेणं जीवा चक्खुदंसण- अचक्खुदंसण - ओहिदंसणकेवलदंसणोवउत्ता, ते णं जीवा अणागारोवउत्ता, से तेणट्टेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ “जीवा सागारोवउत्ता वि, अणागारोवउत्ता वि।” प. दं. १ णेरइयाणं भंते । किं सागारोयउत्ता ! अणागारोवउत्ता ? उ. गोयमा ! णेरइया सागारोवउत्ता वि, अणागारोवउत्ता वि। १. जीवा. पडि. १, सु. २९ २. जीवा. पडि. १, सु. ३० ३. (क) जीवा. पडि. ३ सु. ९७ (१) (ख) जीवा. पडि. १, सु. ३५-४० १. आभिनिबोधिकज्ञान-साकारोपयोग, २. श्रुतज्ञान- साकारोपयोग, ३. मतिअज्ञान साकारोपयोग, ४. श्रुतअज्ञान साकारोपयोग प्र. भन्ते ! द्वीन्द्रियों का अनाकारोपयोग कितनें प्रकार का कहा गया है? द्रव्यानुयोग - (१) उ. गौतम (उनका एक अचक्षुदर्शन अनाकारोपयोग कहा गया है। दं. १८. इसी प्रकार त्रीन्द्रियों के उपयोग हैं। ६. १९. चतुरिन्द्रियों के उपयोग भी इसी प्रकार हैं। विशेष - ( उनका ) अनाकारोपयोग दो प्रकार का कहा गया है, यथा १. चक्षुदर्शन- अनाकारोपयोग, २. अचक्षुदर्शन अनाकारोपयोग दं. २०. पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिकों का (साकारोपयोग तथा अनाकारोपयोग ) कथन नैरयिकों के समान है। दं. २१. औधिक उपयोग जितने कहे हैं उतने ही मनुष्यों के उपयोग कहने चाहिए। दं. २२-२४ वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिकों के उपयोग नैरयिकों के समान हैं। ७. जीव- चौबीस दंडकों में साकार अनाकारोपयुक्तत्व का प्ररूपण प्र. भन्ते ! जीव साकारोपयोग युक्त हैं या अनाकारोपयोगयुक्त हैं ? उ. गौतम ! जीव साकारोपयोग युक्त भी है और अनाकारोपयोग युक्त भी है। प्र. भन्ते ! किस कारण से ऐसा कहते हैं कि "जीव साकारोपयोग युक्त भी है और अनाकारोपयोग युक्त भी हैं ?" उ. गौतम ! जो जीव आभिनिबोधिकज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनः पर्यवज्ञान, केवलज्ञान, मति अज्ञान, श्रुत अज्ञान एवं विभंगज्ञानोपयोग वाले हैं, ये जीव साकारोपयोग युक्त कहे जाते हैं, जो जीव चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन अवधिदर्शन और केवलदर्शन के उपयोग से युक्त हैं, वे जीव अनाकारोपयोग युक्त कहे जाते हैं। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि 'जीव साकारोपयोगयुक्त भी हैं और अनाकारोपयोग युक्त भी हैं।' प्र. दं. १ . भन्ते ! नैरयिक साकारोपयोगयुक्त हैं या अनाकारोपयोगयुक्त है? उ. गौतम ! नैरयिक साकारोपयोगयुक्त भी है और अनाकारोपयोगयुक्त भी हैं। ४. जीवा. पडि. १, सु. ४१ ५. (क) जीवा. पडि. ३ सु. २०१ई (ख) जीवा. पडि. १, सु. ४२
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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