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________________ योग अध्ययन ५३७ १९. जोगऽज्झयणं १९. योग अध्ययन सूत्र पत्र १. विविध विवक्षा से योगों के भेद प्र. भंते ! योग कितने प्रकार का कहा गया है? उ. गौतम ! योग तीन प्रकार का कहा गया है, यथा १. मनोयोग, २. वचन योग, ३. काय योग। १. विविह-विवक्खया जोगाणं भेया प. कइविहे णं भंते ! जोए पण्णत्ते? उ. गोयमा !तिविहे जोए पण्णत्ते,तं जहा१. मणजोए, २. वइजोए,३.कायजोए। -विया.स.१७, उ.१.सु.१७ प. कइविहे णं भंते ! जोए पण्णत्ते? उ. गोयमा ! पण्णरसविहे जोए पण्णत्ते, तं जहा १. सच्चमणजोए, २. मोसमणजोए, ३. सच्चामोसमणजोए, ४. असच्चामोसमणजोए, ५. सच्चवइजोए, ६. मोसवइजोए, ७. सच्चामोसवइजोए, ८. असच्चामोसवइजोए, ९. ओरालियसरीरकायजोए, १०. ओरालियमीसासरीरकायजोए, ११. वेउव्वियसरीरकायजोए, १२. वेउव्वियमीसासरीरकायजोए, १३. आहारकसरीरकायजोए, १४. आहारगमीसासरीरकायजोए, १५. कम्मासरीरकायजोए। -विया. स. २५, उ.१.सु.८ २. जोगाणं गरुयलहुयत्ताइ परवणं मणजोगो वइजोगो चउत्थपएणं (अगरु-लहुयपएणं), कायजोगो तईय पएणं (गरुय-लहुयपएणं) नेयव्यं । -विया. स.१, उ.९,सु.१३ ३. सच्चस्स मोसस्स य उप्पत्तिकारणाणि चउविहे सच्चे पण्णत्ते,तं जहा१. काउज्जुयया, २. भासुज्जुयया, ३. भावुज्जुयया, ४. अविसंवायणाजोगे। चउव्विहे मोसे पण्णत्ते,तं जहा१. कायअणुज्जुयया, २. भासअणुज्जुयया, ३. भावअणुज्जुयया, ४. विसंवादणाजोगे। -ठाणं.अ.४, उ.१,सु.२५४ ४. चउगईसुजोगित्ताजोगित्त परूवणं प. णेरइयाणं णं भंते ! मणजोगी, वयजोगी, कायजोगी? प्र. भन्ते ! योग कितने प्रकार का कहा गया है? उ. गौतम ! योग पन्द्रह प्रकार का कहा गया है, यथा १. सत्य-मनोयोग, २. मृषा-मनोयोग, ३. सत्यमृषा-मनोयोग, ४. असत्यामृषा-मनोयोग, ५. सत्य-वचनयोग, ६. मृषा-वचनयोग, ७. सत्यमृषा-वचनयोग, ८. असत्यामृषा-वचनयोग ९. औदारिकशरीर काययोग. १०. औदारिकमिश्रशरीर-काययोग, ११. वैक्रियशरीर-काययोग, १२. वैक्रिय-मिश्र-शरीर-काययोग, १३. आहारकशरीर-काययोग, १४. आहारकमिश्रशरीर-काययोग, १५. कार्मण-शरीर-काययोग। २. योगों के गुरुलघुत्वादि का प्ररूपण मनोयोग और वचन योग चतुर्थ पद (अगुरु-लघु) वाले हैं। काययोग तृतीय पद (गुरु-लघु) वाला है। ३. सत्य और मृषा की उत्पत्ति के कारण सत्य चार प्रकार का कहा गया है, यथा१. कायऋजुता-काया की सरलता, २. भाषाऋजुता-भाषा की सरलता, ३. भावऋजुता-भाव की सरलता, ४. अविसंवादनायोग-यथार्थ प्रवृत्ति, असत्य चार प्रकार का कहा है, यथा१. काया की कुटिलता, २. भाषा की कुटिलता, ३. भाव की कुटिलता, .४. विसंवादनायोग-अयथार्थ प्रवृत्ति। ४. चार गतियों में योगित्व-अयोगित्व का प्ररूपणप्र. भंते ! क्या नैरयिक मनोयोगी हैं, वचनयोगी है या काययोगी हैं ? उ. गौतम ! तीनों योग वाले हैं। उ. गोयमा ! तिन्नि वि। --जीया. पडि. १, सु. ३२
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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