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________________ ( ५०० । उ. गोयमा !सईदिए दुविहे पण्णत्ते,तं जहा १. अणाईए वा अपज्जवसिए, २. अणाईए वा सपज्जवसिए। प. एगिदिए णं भंते ! एगिदिए त्ति कालओ केवचिर होइ ? द्रव्यानुयोग-(१)) उ. गौतम ! सेन्द्रिय जीव दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा १. अनादि अनन्त २. अनादि सान्त। उ. गोयमा !जहण्णेण अंतोमुहत्तं, उक्कोसेण अणंत कालं वणप्फइकालो। प. बेइंदिए णं भंते ! बेइंदिए त्ति कालओ केवचिरं होइ? उ. गोयमा !जहण्णेण अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेण संखेज्जं कालं। एवं तेइंदिय चउरिदिए वि। प. पंचेंदिए णं भंते ! पंचेंदिए त्ति कालओ केवचिरं होइ ? उ. गोयमा !जहण्णेण अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेण सागरोवमसहस्सं साइरेगं'। प. अणिदिएणं भंते ! अणिदिए त्ति कालओ केवचिरं होइ? उ. गोयमा ! साईए अपज्जवसिए। प. सइंदियअपज्जत्तए भंते ! सइंदियअपज्जत्तए त्ति कालओ __केवचिरं होइ? उ. गोयमा !जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं। प्र. भंते ! एकेन्द्रिय जीव एकेन्द्रिय रूप में कितने काल तक रहता है? उ. गौतम !(वह) जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट अनन्तकाल अर्थात् वनस्पतिकाल पर्यन्त रहता है। प्र. भंते ! द्वीन्द्रिय जीव द्वीन्द्रिय रूप में कितने काल तक रहता है? उ. गौतम !(वह) जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट संख्यातकाल। इसी प्रकार त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय की अवस्थिति के लिए भी समझना चाहिए। प्र. भंते ! पंचेन्द्रिय जीव पंचेन्द्रिय के रूप में कितने काल तक रहता है? उ. गौतम ! (वह) जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट सहस्रसागरोपम से कुछ अधिक काल। प्र. भंते ! अनिन्द्रिय (सिद्ध)जीव कितने काल तक अनिन्द्रिय रूप में रहता है? उ. गौतम ! (अनिन्द्रिय) सादि अनन्तकाल तक अनिन्द्रिय रूप में रहता है। प्र. भंते ! सेन्द्रिय अपर्याप्तक कितने काल तक सेन्द्रिय अपर्याप्तक रूप में रहता है? उ. गौतम ! (वह) जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त तक रहता है। इसी प्रकार पंचेन्द्रिय अपर्याप्तक पर्यन्त जानना चाहिए। प्र. भंते ! सेन्द्रिय पर्याप्तक पर्याप्तक रूप में कितने काल तक रहता है? उ. गौतम !(वह) जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट सौ पृथक्त्व सागरोपम के कुछ अधिक काल तक। प्र. भंते ! एकेन्द्रिय पर्याप्तक एकेन्द्रिय पर्याप्त रूप में कितने काल तक रहता है? उ. गौतम ! (वह) जघन्य अन्तर्मुहूर्त, ___उत्कृष्ट संख्यात हजार वर्षों तक। प्र. भंते ! द्वीन्द्रिय पर्याप्तक द्वीन्द्रिय पर्याप्त रूप में कितने काल तक रहता है? उ. गौतम ! (वह) जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट संख्यात वर्षों तक। प्र. भंते ! त्रीन्द्रिय पर्याप्तक त्रीन्द्रिय पर्याप्तरूप में कितने काल तक रहता है ? उ. गौतम ! (वह) जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट संख्यात रात्रि दिन। प्र. भंते ! चतुरिन्द्रिय पर्याप्तक चतुरिन्द्रिय पर्याप्तरूप में कितने काल तक रहता है? एवं जाव पंचेंदियअपज्जत्तए। प. सइंदियपज्जत्तए णं भंते ! सइंदियपज्जत्तए त्ति कालओ केवचिर होइ? उ. गोयमा !जहण्णेण अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेण सागरोवमसयपुहत्तं साइरेगं। प. एगिंदियपज्जत्तए णं भंते ! एगिंदियपज्जत्तए त्ति कालओ केबचिरं होइ? उ. गोयमा !जहण्णेण अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेण संखेज्जाई वाससहस्साई। प. बेइंदियपज्जत्तए णं भंते ! बेइंदियपज्जत्तए त्ति कालओ केवचिरं होइ? उ. गोयमा !जहण्णेण अंतोमुहत्तं, ___ उक्कोसेण संखेज्जाई वासाई। प. तेइंदियपज्जत्तए णं भंते ! तेइंदियपज्जत्तए त्ति कालओ केवचिरं होइ? उ. गोयमा ! जहण्णेण अंतोमुहत्तं, उक्कोसेण संखेज्जाइं राइंदियाईं। प. चउरिंदियपज्जत्तए णं भंते ! चरिंदियपज्जत्तए ति कालओ केवचिरं होइ? }. जीवा. पडि.८,सु.२२८ २. जीवा.पडि.९,सु.२५८
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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