SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 605
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४९८ सकुमार जाय गेवेज्जगस्स जहा णेरइयस्स । विजय- वैजयंत- जयंत अपराजियदेवस्स अतीता अणता. बलगा पंच पुरेक्खडा पंच वा, दस वा, पण्णरस वा संखेज्जा वा । सव्वट्ठसिद्धगदेवस्स अतीता अणंता, बद्धेल्लगा पंच । प. केवइया पुरेक्खडा ? उ. गोयमा ! पंच। प. दं. १. णेरइयाणं भंते ! केवइया भाविंदिया अतीता ? उ. गोयमा ! अनंता । प. केवइया बद्धेत्लगा ? उ. गोयमा ! असंखेज्जा । प. केवइया पुरेक्खडा ? उ. गोयमा ! अनंता । एवं जहा दव्विंदिएस पोहतेणं दंडओ भणिओ तहा भाविदिए वि पोहणे दंड ओ भाणियव्यो । णवर वणफइकाइयाणं बद्धेल्लगा वि अणता । प. एगमेगस्स णं भंते ! णेरइयस्स णेरइयत्ते केवइया भाविंदिया अतीता ? उ. गोयमा ! अनंता । बल्लगा पंच पुरेक्खडा कस्सइ अल्थि, कस्सइ णत्थि, जस्सऽत्थि पंच वा, दस वा पण्णरस वा संखेज्जा वा, असंखेज्जा था, अनंता वा । 7 " २-११ एवं असुरकुमारत्ते जाव थणियकुमारत्ते, वरं - बद्धे लगा णत्थि । १२-१७. पुढविकाइयते जाय बेदियते जहा दबिंदिया । तेइंदियत्ते तहेव, नवरं पुरेक्खडा तिरिणवा, छ वा णव वा, संखेज्जा वा असंखेज्जा वा अता था। 7 एवं चउरिदियत्ते वि णवरं - पुरेक्खडा चत्तारि वा अट्ठ वा, बारस वा, संखेज्जावा, असंखेज्जा वा, अणंता वा । एवं एए चेव गमा चत्तारि णेयव्वा जे चेव दव्विंदिए । नवरं तइयगमे जाणियव्वा जस्ता जइ इंदिया ते पुरेक्खडे मुणेयब्वा चउत्थगमे जहेब दव्वॆदिया जाब प. सब्बट्ठसिद्धगदेवाणं सब्बट्ठसिद्धगदेवते केवइया भाविदिया अतीता ? द्रव्यानुयोग - (१) सनत्कुमार से ग्रैवेयक पर्यंत का कथन नैरयिक के समान करना चाहिए। 9 विजय, वैजयन्त जयन्त एवं अपराजितदेव की अतीत भावेन्द्रियां अनन्त हैं, बद्ध पांच हैं, पुरस्कृत भावेन्द्रियां पांच, दस, पन्द्रह या संख्यात हैं। सर्वार्थसिद्ध की अतीत भावेन्द्रियां अनन्त हैं, बद्ध पांच हैं, प्र. पुरस्कृत भावेन्द्रियां कितनी हैं ? उ. गौतम ! वे पांच हैं। प्र. नं. १. भन्ते नैरयिकों की अतीत भावेन्द्रियां कितनी है? उ. गौतम ! वे अनन्त हैं। प्र. बद्ध भावेन्द्रियां कितनी है ? उ. गौतम ! असंख्यात हैं। प्र. पुरस्कृत भाषेन्द्रियां कितनी है? उ. गौतम ! वे अनन्त हैं। इसी प्रकार जैसे द्रव्येन्द्रियों में पृथक्त्व दण्डक कहा है, उसी प्रकार भावेन्द्रियों में भी पृथक्त्व - (बहुवचन से) दण्डक कहना चाहिए। विशेष-वनस्पतिकायिकों की बद्ध भावेन्द्रियां अनन्त हैं। प्र. भन्ते ! एक-एक नैरथिक की नैरयिक के रूप में कितनी अतीत भावेन्द्रियां है? उ. गौतम ! वे अनन्त हैं। इसकी बद्ध भावेन्द्रियां पांच हैं, पुरस्कृत भावेन्द्रियां किसी के होती हैं और किसी के नहीं होती हैं। जिसके होती है, उसकी पांच, दस, पन्द्रह संख्यात, असंख्यात या अनन्त होती हैं। दं. २ ११, इसी प्रकार असुरकुमार पर्याय से स्तनितकुमार पर्याय पर्यन्त कहना चाहिए। विशेष- इनके बद्ध भावेन्द्रियां नहीं है। १२-१७. पृथ्वीका से डीन्द्रिय पर्याय पर्यन्त द्रव्येन्द्रियों की तरह भावेन्द्रियां कहना चाहिए। त्रीन्द्रिय पर्याय के लिए भी इसी प्रकार कहना चाहिए। 7 विशेष पुरस्कृत भावेन्द्रियां तीन छह नौ संख्यात, असंख्यात या अनन्त होती हैं। इसी तरह चतुरिन्द्रिय पर्याय के विषय में भी कहना चाहिए। विशेष पुरस्कृत भावेन्द्रियां चार, आठ, बारह संख्यात, असंख्यात या अनन्त हैं । " इसी प्रकार द्रव्येन्द्रियों के चार गमक के समान यहां भी चार गमक समझने चाहिए। विशेष - तृतीय गमक में जितनी इन्द्रियां हों, उसके अनुसार योग करते हुए पुरस्कृत भावेन्द्रियां समझनी चाहिए। चतुर्थ गमक में द्रव्येन्द्रिय के समान आलापक है यावत्प्र. सर्वार्थसिद्ध देयों का सर्वार्थसिद्धत्य के रूप में अतीत भावेन्द्रियां कितनी हैं ?
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy