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________________ ( ४९२ - णवर-एगिंदिय विगलिंदिएसु जस्स जत्तिया इन्दिया तस्स तत्तिया पुरेक्खडा भाणियव्वा। प. एगमेगस्स णं भंते ! मणूसस्स मणूसत्ते केवइया दबिंदिया अतीता? उ. गोयमा ! अणंता। प. केवइया बद्धेल्लगा? उ. गोयमा ! अट्ठ। प. केवइया पुरेक्खडा? उ. गोयमा !कस्सइ अस्थि, कस्सइणत्थि, जस्सऽस्थि अट्ठ वा, सोलस वा, चउवीसा वा, संखेज्जा वा, असंखेज्जावा,अणंता वा। वाणमंतर-जोइसिय जाव गेवेज्जगदेवते जहाणेरइयत्ते। प. एगमेगस्स णं भंते ! मणूसस्स विजय-वेजयंत जयंतऽपराजियदेवत्ते केवइया दबिंदिया अतीता? उ. गोयमा ! कस्सइ अत्थि, कस्सइ णत्थि, जस्सऽत्थि अट्ठ वा, सोलस वा। प. केवइया बद्धेल्लगा? उ. गोयमा !णत्थि। प. केवइया पुरेक्खडा? उ. गोयमा ! कस्सइ अस्थि, कस्सइ णस्थि, जस्सऽस्थि अट्ठ वा,सोलस वा। प. एगमेगस्स णं भंते ! मणूसस्स सव्वट्ठसिद्धगदेवत्ते केवइया दव्विंदिया अतीता? उ. गोयमा ! कस्सइ अस्थि, कस्सइणत्थि,जस्सऽत्थि अट्ठ। द्रव्यानुयोग-(१) विशेष-यह है कि एकेन्द्रिय और विकलेन्द्रियों में जिसकी जितनी इन्द्रियां हैं उसके पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियां उतनी ही कहनी चाहिए। प्र. भन्ते ! मनुष्य की मनुष्य के रूप में अतीत द्रव्येन्द्रियां कितनी हैं? उ. गौतम ! अनन्त हैं। प्र. बद्ध द्रव्येन्द्रियां कितनी है? उ. गौतम ! आठ हैं। प्र. पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियां कितनी हैं ? उ. गौतम ! किसी के होती हैं और किसी के नहीं होती हैं। जिसके होती हैं उसके आठ, सोलह, चौबीस, संख्यात, असंख्यात अथवा अनन्त होती हैं। वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क से ग्रैवेयक देव पर्याय पर्यन्त में नैरयिक के समान समझना चाहिए। प्र. भन्ते ! प्रत्येक मनुष्य की विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित देव के रूप में अतीत द्रव्येन्द्रियां कितनी है? उ. गौतम ! किसी के होती हैं और किसी के नहीं होती हैं। जिसके होती हैं, उसके आठ या सोलह होती हैं। प्र. बद्ध द्रव्येन्द्रियां कितनी है ? उ. गौतम ! नहीं हैं। प्र. पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियां कितनी हैं ? उ. गौतम ! किसी के होती हैं और किसी के नहीं होती हैं। जिसके होती हैं उसके आठ या सोलह होती हैं। प्र. भन्ते ! प्रत्येक मनुष्य की सर्वार्थसिद्धदेव के रूप में अतीत द्रव्येन्द्रियां कितनी हैं ? उ. गौतम ! किसी के होती हैं और किसी के नहीं होती हैं। जिसके होती हैं, उसके आठ होती हैं। प्र. बद्ध द्रव्येन्द्रियां कितनी है? उ. गौतम ! नहीं हैं। प्र. पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियां कितनी हैं ? उ. गौतम ! किसी के होती हैं और किसी के नहीं होती हैं। जिसके होती हैं, उसके आठ होती हैं। वाणव्यन्तर और ज्योतिष्क देव का सम्पूर्ण आलापक नैरयिक के समान कहना चाहिए। सौधर्म कल्प के देवों का आलापक भी नैरयिक के समान है, विशेषप्र. सौधर्म देव की विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित देव के रूप में अतीत द्रव्येन्द्रियां कितनी हैं ? उ. गौतम ! किसी के होती हैं और किसी के नहीं होती हैं। जिसके होती हैं, उसके आठ होती हैं। प्र. बद्ध द्रव्येन्द्रियां कितनी है ? उ. गौतम ! नहीं हैं। प्र. पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियां कितनी हैं ? उ. गौतम ! किसी के होती हैं और किसी के नहीं होती हैं। प. केवइया बद्धेल्लगा? उ. गोयमा !णत्थि। प. केवइया पुरेक्खडा? उ. गोयमा !कस्सइ अस्थि, कस्सइणत्थि, जस्सऽत्थि अट्ठ। वाणमंतर-जोइसिए जहाणेरइए। सोहम्मगदेवे वि जहाणेरइए,णवर प. सोहम्मगदेवस्स विजय-वेजयंत-जयंत-अपराजियत्ते केवइया दबिंदिया अतीता? उ. गोयमा ! कस्सइ अत्थि, कस्सइणत्थि, जस्सऽत्थि अट्ठ। प. केवइया बद्धेल्लगा? उ. गोयमा !णत्थि। प. केवइया पुरेक्खडा? उ. गोयमा ! कस्सइ अस्थि, कस्सइणत्थि,
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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