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________________ ४६२ उ. गोयमा ! एवं तहेव। णवरं-साहिए दो केवलकप्पे जंबुद्दीवे दीवे, अवसेसं तहेव। जइ णं भंते ! ईसाणे देविंदे देवराया एमहिड्ढीए जाव एवइयं च णं पभू विउव्वित्तए एवं खलु देवाणुप्पियाणं अंतेवासी कुरुदत्तपुत्ते नाम पगइभद्दए जाव विणीए अट्ठमंअट्ठमेणं अणिक्खित्तेणं पारणए आयंबिलपरिग्गहिएणं तवोकम्मेणं उड्ढं बाहाओ पगिब्भिय-पगिब्भिय सूराभिमुहे आयावणभूमीए आयावेमाणं बहुपडिपुण्णे छम्मासे सामण्णपरियागं पाउणित्ता अद्धमासियाए संलेहणाए अत्ताणं झोसित्ता तीसं भत्ताई अणसणाए छेदित्ता आलोइयपडिक्कते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा ईसाणे कप्पे सयंसि विमाणंसि जा चेव तीसाए वत्तव्वया सच्चेव अपरिसेसा कुरुदत्तपुत्ते वि। णवर-साइरेगे दो केवलकप्पे जंबुद्दीवे दीवे, अवसेसं तं चेव। एवं सामाणिय तायत्तीस-लोगपाल-अग्गमहिसीणं जाव एस णं गोयमा ! ईसाणस्स देविंदस्स देवरण्णो एवं एगमेगाए अग्गमहिसीए देवीए अयमेयारूवे विसए विसयमेते वुइए, नो चेव णं संपत्तीए विकुव्विंसु वा, विकुव्वंति वा, विकुविस्संति वा। द्रव्यानुयोग-(१) उ. गौतम ! जैसा शक्रेन्द्र के विषय में कहा था वैसा ही सारा वर्णन ईशानेन्द्र के विषय में जानना चाहिए। विशेष-वह (अपने वैक्रियकृत) रूपों से कुछ अधिक सम्पूर्ण दो जम्बूद्वीपों को भरने में समर्थ है शेष सारा वर्णन पूर्ववत् जानना चाहिए। भंते ! यदि देवेन्द्र देवराज ईशान इतनी बड़ी ऋद्धि से युक्त है यावत् वह इतनी विकुर्वणा शक्ति रखता है तो प्रकृति से भद्र यावत् विनीत तथा निरन्तर अट्ठम-अट्ठम (तेले-तेले) की तपस्या और पारणे में आयम्बिल, ऐसी कठोर तपश्चर्या से आत्मा को भावित करता हुआ दोनों हाथ ऊंचे रखकर सूर्य की ओर मुख करके आतापना भूमि में आतापना लेने वाला आप देवानुप्रिय का अन्तेवासी (शिष्य) कुरुदत्तपुत्र अनगार पूरे छह महीने तक श्रामण्यपर्याय का पालन करके अर्द्धमासिक (१५ दिन के) संलेखना से अपनी आत्मा को शुद्ध करके तीस भक्तों (३० टंक) का अनशन से छेदन करके आलोचना प्रतिक्रमण पूर्वक समाधि प्राप्त कर काल का अवसर आने पर काल करके ईशानकल्प में अपने विमान में ईशानेन्द्र के सामानिक देव के रूप में उत्पन्न हुआ है इत्यादि समग्र कथन तिष्यक देव की तरह कुरुदत्तपुत्र देव के लिए भी कहना चाहिए। विशेष-कुरुदत्तपुत्र देव अपने विकुर्वित रूपों से कुछ अधिक दो जम्बूद्वीपों को भरने में समर्थ है। शेष समस्त वर्णन उसी तरह ही समझना चाहिए। इसी तरह (ईशानेन्द्र के अन्य) सामानिक देव, त्रायस्त्रिंशक देव एवं लोकपाल तथा अग्रमहिषियों की ऋद्धि विकुर्वणा शक्ति आदि (के विषय में) जानना चाहिए यावत् हे गौतम ! देवेन्द्र देवराज ईशान और एक एक अग्रमहिषी देवी का यह और इस प्रकार का विषय और विषयमात्र बताया है किन्तु शक्ति के रहते हुए भी कभी इतनी विकुर्वणा की नहीं, करते नहीं और करेंगे भी नहीं। इसी प्रकार सनत्कुमार देवलोक के देवेन्द्र के विषय में भी समझना चाहिए। विशेष-सनत्कुमारेन्द्र की विकुर्वणा शक्ति सम्पूर्ण चार जम्बूद्वीपों जितने स्थल को भरने की है और तिरछे उसकी विकुर्वणाशक्ति असंख्यात द्वीप समुद्रों जितने स्थल को भरने की है। इसी तरह (सनत्कुमारेन्द्र के) सामानिक देव त्रायस्त्रिंशक लोकपाल एवं अग्रमहिषियों की विकुर्वणाशक्ति असंख्यात द्वीप समुद्रों जितने स्थल को भरने की है। सनत्कुमार से लेकर ऊपर के (देवलोकों के) सब लोकपाल असंख्यातद्वीप समुद्रों को भरने की वैक्रियशक्ति वाले हैं। इसी तरह माहेन्द्र के विषय में भी समझ लेना चाहिए। विशेष-कुछ अधिक चार जम्बूद्वीपों जितने स्थल को भरने की विकुर्वणाशक्ति वाले हैं। इसी प्रकार ब्रह्मलोक के विषय में भी जानना चाहिए। विशेष-वे सम्पूर्ण आठ जम्बूद्वीपों (को भरने) की वैक्रियशक्ति वाले हैं। एवं सणंकुमारे वि, णवरं-चत्तारि केवलकप्पे जंबुद्दीवे दीवे, अदुत्तरं च णं तिरियमसंखेज्जे। एवं सामाणिय-तायत्तीस-लोगपाल-अग्गमहिसीणं असंखेज्जे दीव-समुद्दे सव्वे विउव्वंति। सणंकुमाराओ आरद्धा उवरिल्ला लोगपाला सव्वे वि असंखेज्जे दीव समुद्दे विउव्वंति। एवं माहिदे वि। णवरं-साइरेगे चत्तारि केवलकप्पे जंबुद्दीवे दीवे। एवं बंभलोए वि, नवरं-अट्ठ केवलकप्पे जंबुद्दीवे दीवे।
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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