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________________ ४५६ पभू णं गोयमा ! चमरे असुरिंदे असुरराया केवलकप्पं जंबुद्दीवं दीवं बहूहिं असुरकुमारेहिं देवेहिं देवीहिं य आइण्णे विइकिण्णं उवत्थडं संथडं फुडं अवगाढावगाढं करेत्तए। अदुत्तरं च णं गोयमा ! पभू चमरे असुरिंदे असुरराया तिरियमसंखेज्जे दीवसमुद्दे बहूहिं असुरकुमारेहिं देवेहि देवीहि य आइण्णे विइकिण्णे उवत्थडे संथडे फुडे अवगाढावगाढे करेत्तए। एस णं गोयमा ! चमरस्स असुरिंदस्स असुररण्णो अयमेयारूवे विसए विसयमेत्ते वुइए, णो चेव णं संपत्तीए विकुव्विंसु वा, विकुव्वइ वा, विकुव्विस्सइ वा। प. जइ णं भंते ! चमरे असुरिंदे असुरराया एमहिड्ढीए जाव एवइयं च णं पभू विकुव्वित्तए, चमरस्स णं भंते ! असुरिंदस्स असुररण्णो सामाणिया देवा के महिड्ढीया जाव केवइयं च णं पभू विकुवित्तए? उ. गोयमा ! चमरस्स असुरिंदस्स असुररण्णो सामाणिया देवा महिड्ढीया जाव महाणुभागा। ते णं तत्थ साणं-साणं भवणाणं, साणं-साणं सामाणियाणं, साणं-साणं अग्गमहिसीणं जाव दिव्वाई भोगभोगाई भुंजमाणा विहरंति। एमहिड्ढीया जाव एवइयं च णं पभू विकुव्वित्तए [ द्रव्यानुयोग-(१) हे गौतम ! वह असुरेन्द्र असुरराज चमर, बहुत से असुरकुमार देवों और देवियों द्वारा परिपूर्ण जम्बूद्वीप नामक द्वीप को आकीर्ण व्यतिकीर्ण उपस्तीर्ण, संस्तीर्ण, स्पृष्ट और गाढ़ावगाढ करने में समर्थ है। अथवा हे गौतम ! वह असुरेन्द्र असुरराज चमर, अनेक असुरकुमार देव देवियों द्वारा इस तिर्यग्लोक में भी असंख्यात . द्वीपों और समुद्रों तक के स्थल को आकीर्ण व्यतिकीर्ण, उपस्तीर्ण, संस्तीर्ण, स्पृष्ट और गाढावगाढ करने में समर्थ है। हे गौतम ! असुरेन्द्र असुरराज चमर की ऐसी शक्ति का विषय और विषयमात्र बताया गया है परन्तु चमरेन्द्र ने ऐसी शक्ति के रहते हुए भी कभी विकुर्वणा की नहीं, करता नहीं और करेगा भी नहीं। प्र. भंते ! असुरेन्द्र असुरराज चमर जब ऐसी बड़ी ऋद्धि वाला है यावत् इतनी विकुर्वणा करने में समर्थ है तब भंते ! उस असुरराज असुरेन्द्र चमर के सामानिक देव कितनी बड़ी ऋद्धि वाले हैं यावत् कितनी विकुर्वणा करने में समर्थ हैं ? उ. गौतम ! असुरेन्द्र असुरराज चमर के सामानिक देव, महती ऋद्धि वाले हैं यावत् महाप्रभावशाली हैं। वे वहां अपने-अपने भवनों पर, अपने अपने सामानिक देवों पर तथा अपनी अपनी अग्रमहिषियों (पटरानियों) पर आधिपत्य करते हुए यावत् दिव्य भोगों का उपभोग करते हुए विचरते हैं। ये इस प्रकार की बड़ी ऋद्धि वाले हैं यावत् इतनी विकुर्वणा करने में समर्थ हैं। हे गौतम ! जैसे कोई युवा पुरुष अपने हाथ से युवती स्त्री के हाथ को पकड़ता है। अथवा जैसे गाड़ी के पहिये की धुरी आरों से सुसम्बद्ध होती है। इसी प्रकार हे गौतम ! विकुर्वणा करने के लिए असुरेन्द्र असुरराज चमर का एक एक सामानिक देव वैक्रिय समुद्घात द्वारा समवहत होता है यावत् दूसरी बार भी वैक्रिय समुद्घात द्वारा समवहत होता है और समवहत होकरगौतम ! असुरेन्द्र असुरराज चमर का प्रत्येक सामानिक देव इस सम्पूर्ण जम्बूद्वीप नामक द्वीप को बहुत से असुरकुमार देवों और देवियों से आकीर्ण, व्यतिकीर्ण, उपस्तीर्ण, संस्तीर्ण, स्पृष्ट और गाढावगाढ कर सकता है। इसके उपरान्त हे गौतम ! असुरेन्द्र असुरराज चमर का एक-एक सामानिक देव, इस तिर्यग्लोक के असंख्य द्वीपों और समुद्रों तक के स्थल को बहुत से असुरकुमार देवों और देवियों से आकीर्ण, व्यतिकीर्ण, उपस्तीर्ण, संस्तीर्ण, स्पृष्ट और गाढावगाढ कर सकता है। हे गौतम ! असुरेन्द्र असुरराज चमर के प्रत्येक सामानिक देव में इस प्रकार की विकर्वणा करने की शक्ति का विषय और विषयमात्र बताया गया है परन्तु चमरेन्द्र के किसी भी सामानिक देव ने ऐसी शक्ति के रहते हुए भी न कभी विकुर्वणा की है, न ही करता है और न ही करेगा। से जहानामए जुवइं जुवाणे हत्थेणं हत्थे गेण्हेज्जा चक्कस्स वा नाभी अरयाउत्ता सिया, एवामेव गोयमा ! चमरस्स असुरिंदस्स असुररण्णो एगमेगे सामाणिए देवे वेउव्वियसमुग्घाएणं समोहण्णइ, समोहण्णित्ता जाव दोच्चं पि वेउव्वियसमुग्धाएणं समोहण्णइ समोहण्णित्ता पभू णं गोयमा ! चमरस्स असुरिंदस्स असुररण्णो एगमेगे सामाणिए देवे केवलकप्पं जंबुद्दीवं दीवं बहूहिं असुरकुमारेहिं देवेहिं देवीहि य आइण्णं विइकिण्णं उवत्थडं संथडं फुडं अवगाढावगाढं करेत्तए। अदुत्तरं च णं गोयमा ! पभू चमरस्स असुरिंदस्स असुररण्णो एगमेगे सामाणियदेवे तिरियमसंखेज्जे दीव-समुद्दे बहूहिं असुरकुमारेहिं देवेहिं देवीहि य आइण्णे विइकिण्णे उवत्थडे संथडे फुडे अवगाढावगाढे करेत्तए। एस णं गोयमा ! चमरस्स असुरिंदस्स असुररण्णो एगमेगस्स सामाणियदेवस्स अयमेयारूवे विसए विसयमेत्ते वुइए, णो चेव णं संपत्तीए विकुव्विंसु वा, विकुव्वइ वा, विकुव्विस्सइ वा।
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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