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________________ ४२८ प. रयणप्पभा-पुढविणेरइयाणं भंते ! के महालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता? उ. गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता,तं जहा १. भवधारणिज्जा य २.उत्तर वेउव्विया य। १. तत्थ णं जा सा भवधारिणज्जा सा जहण्णेण अंगुलस्स असंखेज्जइभाग, उक्कोसेण सत्त धणूई तिण्णि रयणीओ छच्च अंगुलाई। २. तत्थ णं जा सा उत्तरवेउब्विया सा जहण्णेण अंगुलस्स संखेज्जइभागं, उक्कोसेण पण्णरस धणूई अड्ढाइज्जाओ रयणीओ। प. सक्करप्पभाए णं भंते ! के महालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता? उ. गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता,तं जहा १. भवधारणिज्जा य २.उत्तर वेउव्विया य। १. तत्थ णं जा सा भवधारिणज्जा सा जहण्णेण अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेण पण्णरस धणूई अड्ढाइज्जाओ रयणीओ। २. तत्थ णं जा सा उत्तरवेउब्विया सा जहण्णेण अंगुलस्स संखेज्जइभाग, उक्कोंसेण एक्कतीसं धणूई एक्का य रयणी -पण्ण.प.२१,सु.१५२७-१५२९ प. वालुयप्पभा पुढवीए णेरइयाणं भंते ! के महालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता? उ. गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता,तं जहा १.भवधारणिज्जा य २.उत्तर वेउव्विया य। १. तत्थ णंजा सा भवधारिणज्जा सा जहण्णेण अंगुलस्स असंखेज्जइभाग, उक्कोसेण एक्कत्तीसं धणूई रयणी द्रव्यानुयोग-(१) प्र. भंते ! रत्नप्रभा पृथ्वी के नारकों की शरीरावगाहना कितनी कही गई है? उ. गौतम ! वह दो प्रकार की कही गई है, यथा १. भवधारणीया, २. उत्तरवैक्रिया। १. उनमें से भवधारणीया शरीरावगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग की और उत्कृष्ट सात धनुष, तीन रनि (मुड़ा हुआ हाथ) और छह अंगुल की है। २. उनमें से उत्तरवैक्रिय अवगाहना जघन्य अंगुल के संख्यातवें भाग की और उत्कृष्ट पन्द्रह धनुष, ढाई रनि की है। प्र. भंते ! शर्कराप्रभा पृथ्वी के नारकों की शरीरावगाहना कितनी कही गई है? उ. गौतम ! वह दो प्रकार की कही गई है, यथा १. भवधारणीया, २. उत्तरवैक्रिया। १. उनमें से भवधारणीया जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग की और उत्कृष्ट पन्द्रह धनुष, ढाई रनि की है। २. उनमें से उत्तरवैक्रिय जघन्य अंगुल के संख्यातवें भाग की और उत्कृष्ट इकत्तीस धनुष, एक रत्नि की है। या २. तत्थ णं जा सा उत्तर वेउव्विया सा जहण्णेण अंगुलस्स संखेज्जइभाग, उक्कोसेण बासट्ठि धणूइं दो रयणीओ य। एवं सव्वासिं पुढवीणं पुच्छा भाणियव्या। प्र. भंते ! वालुकाप्रभापृथ्वी के नारकों की शरीरावगाहना कितनी कही गई है? उ. गौतम ! वह दो प्रकार की कही गई है, यथा १. भवधारणीया, २. उत्तरवैक्रिया। १. उनमें से भवधारणीय शरीरावगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट इकत्तीस धनुष तथा एक - रलि प्रमाण है। २. उनमें से उत्तरवैक्रिया शरीरावगाहना जघन्य अंगुल के संख्यातवें भाग और उत्कृष्ट बासठ धनुष और दो रनि प्रमाण है। इसी प्रकार समस्त पृथ्वियों के विषय में अवगाहना सम्बन्धी प्रश्न करना चाहिए। प्रकप्रभापृथ्वी में भवधारणीया शरीरावगाहना जघन्य अंगुल का असंख्यातवां भाग और उत्कृष्ट बासठ धनुष और दो रलि प्रमाण है। उत्तरवैक्रिया शरीरावगाहना जघन्य अंगुल के संख्यातवें भाग एवं उत्कृष्ट एक सौ पच्चीस धनुष प्रमाण है। धूमप्रभापृथ्वी में भवधारणीया शरीरावगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग तथा उत्कृष्ट एक सौ पच्चीस धनुष प्रमाण है। उत्तरवैक्रिया शरीरावगाहना जघन्य अंगुल के संख्यातवें भाग और उत्कृष्ट ढाई सौ धनुष प्रमाण है। पंकप्पभाए भवधारणिज्जा जहण्णेण अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेण बासठिं धणूइं दो रयणीओ य, उत्तरवेउव्विया जहण्णेण अंगुलस्स संखेज्जइभागं उक्कोसेण पणुवीसं धणुसयं। धूमप्पभाए. भवधारणिज्जा जहण्णेण अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेण पणुवीसं धणूसयं, उत्तरवेउव्विया जहण्णेण अंगुलस्स संखेज्जइभागं उक्कोसेण अड्ढाइज्जाइंधणूसयाई। १. जीवा. पडि.३,सु.८६
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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