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________________ ४२६ द्रव्यानुयोग-(१) सम्मुच्छिम-खहयराणं जहा भुयपरिसप्प-सम्मुच्छिमाणं तिसु विगमेसुतहा भाणियव्वं। प. गब्भवक्कंतियखहयराणं भंते ! के महालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेण अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेण ___धणुपुहत्तं। प. अपज्जत्तयाणं भंते ! के महालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेण अंगुलस्स असंखेज्जइभाग, उक्कोसेण अंगुलस्स असंखेज्जइभाग। प. पज्जत्तयाणं भंते ! के महालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेण अंगुलस्स असंखेज्जइभाग, उक्कोसेण धणुपुहत्तं। एत्थ संगहणिगाहाओ भवंति,तंजहाजोयणसहस्स गाउयपुहत्त तत्तो य जोयणपुहत्तं। दोण्हं तु धणुपुहत्तं सम्मुच्छिम होइ उच्चत्तं ॥ ११॥ सम्मूर्छिम खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यच जीवों की जघन्य और उत्कृष्ट शरीरावगाहना सम्मूर्छिम भुजपरिसर्प पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों के तीन अवगाहना स्थानों के बराबर समझ लेना चाहिए। प्र. भन्ते ! गर्भव्युत्क्रान्तिक खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों जीवों की शरीरावगाहना कितनी कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण और उत्कृष्ट धनुषपृथक्त्व प्रमाण है। प्र. भन्ते ! अपर्याप्त गर्भव्युत्क्रान्तिक खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों की शरीरावगाहना कितनी कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण और उत्कृष्ट भी अंगुल के असंख्यातवें भाग है। प्र. भन्ते ! पर्याप्त गर्भव्युत्क्रान्तिक खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों की शरीरावगाहना कितनी कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण और उत्कृष्ट धनुषपृथक्त्व है। उक्त समग्र कथन की संग्राहक गाथाएं इस प्रकार है, यथासम्मूर्छिम जलचर तिर्यञ्चपंचेन्द्रिय जीवों की उत्कृष्ट अवगाहना एक हजार योजन, चतुष्पद स्थलचर की गाउपृथक्त्व, उरपरिसर्प स्थलचर की योजनपृथक्त्व, भुजपरिसर्प स्थलचर की एवं खेचर तिर्यञ्च पंचेन्द्रियों की धनुषपृथक्त्व प्रमाण है। गर्भज तिर्यञ्च पंचेन्द्रिय जलचरों की एक हजार योजन, चतुष्पद स्थलचरों की छह गाउ, उरपरिसर्प स्थलचरों की एक हजार योजन, भुजपरिसर्प स्थलचरों की गाउपृथक्त्व और पक्षियों की धनुषपृथक्त्व प्रमाण उत्कृष्ट शरीरावगाहना जाननी चाहिए। प्र. भन्ते ! मनुष्यों की शरीरावगाहना कितनी कही गई है? उ. गौतम ! मनुष्यों की अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवाँ भाग और उत्कृष्ट तीन गाउ है। प्र. भन्ते ! सम्मूर्छिम मनुष्यों की शरीरावगाहना कितनी कही जोयणसहस्स छग्गाउयाई तत्तो य जोयणसहस्स। गाउयपुहत्त भुयगे पक्खीसु भवे धणुपुहत्तं॥१०२॥ प. मणुस्साणं भंते ! के महालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेण अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेण तिण्णि गाउयाई। प. सम्मुच्छिम-मणुस्साणं भंते ! के महालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेण अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेण वि अंगुलस्स असंखेज्जइभाग३। प. गब्भवक्कंतिय-मणुस्साणं भंते ! के महालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेण अंगुलस्स असंखेज्जइभाग, उक्कोसेण तिण्णि गाउयाई। प. अपज्जत्तय-गब्भवक्कंतिय-मणुस्साणं भंते ! के महालिया ___ सरीरोगाहणा पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेण अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेण वि असंखेज्जइभाग। उ. गौतम ! सम्मूर्छिम मनुष्यों की जघन्य और उत्कृष्ट अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण है। प्र. भन्ते ! गर्भव्युत्क्रान्तिक मनुष्यों की शरीरावगाहना कितनी कही गई है? उ. गौतम ! गर्भज मनुष्यों की जघन्य अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट तीन गाउ प्रमाण है। प्र. भन्ते ! अपर्याप्त गर्भव्युत्क्रान्तिक मनुष्यों की शरीरावगाहना कितनी कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य और उत्कृष्ट शरीरावगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण है। १. जीवा.पडि.१ सु.४० २. सम.सु.१५२ ३. जीवा. पडि.१ सु.४१ ४. जीवा.पडि.१सु.४१
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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