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________________ ४२४ प. सम्मुच्छिम-चउप्पय-थलयराणं भंते ! के महालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेण अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेण गाउयपुहत्तं प. अपज्जत्तय-सम्मुच्छिम-चउप्पय-थलयराणं भंते ! के महालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेण अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेण अंगुलस्स असंखेज्जइभागं। प. पज्जत्तय-सम्मुच्छिम-चउप्पय-थलयराणं भंते ! के महालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेण अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेण गाउयपुहत्तं। प. गब्भवक्कंतिय-चउप्पय-थलयर-पंचेंदियाणं भंते ! के महालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेण अंगुलस्स असंखेज्जइभाग, उक्कोसेण छ गाउयाई प. अपज्जत्तय-गब्भवक्कंतिय-चउप्पय-थलयर-पंचेंदियाणं भंते ! के महालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेण अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेण अंगुलस्स असंखेज्जइभाग। प. पज्जत्तयगब्भवक्कंतिय चउप्पय थलयर पंचेंदियाणं भंते ! के महालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेण अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेण छ गाउयाई। प. उरपरिसप्प-थलयर-पंचेंदियाणं भंते ! के महालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेण अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेण जोयणसहस्स। प. सम्मुच्छिम-उरपरिसप्प-थलयर-पंचेंदियाणं भंते ! के महालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेण अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेण जोयणपुहत्त। प. अपज्जत्तयाणं भंते ! के महालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेण अंगुलस्स असंखेज्जइभाग, उक्कोसेण ___अंगुलस्स असंखेज्जइभाग। प. पज्जत्तयाणं भंते ! के महालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता? द्रव्यानुयोग-(१) प्र. भन्ते ! सम्मूर्छिम चतुष्पद स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिकों की शरीरावगाहना कितनी कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट गाउपृथक्त्व प्रमाण है। प्र. भन्ते ! अपर्याप्त सम्मूर्छिम चतुष्पद स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों की शरीरावगाहना कितनी कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट भी अंगुल के असंख्यातवें भाग है। प्र. भन्ते ! पर्याप्त सम्मूर्छिम चतुष्पद स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों की शरीरावगाहना कितनी कही गई है ? उ. गौतम ! जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट गाउपृथक्त्व की है। प्र. भन्ते ! गर्भव्युत्क्रान्तिक चतुष्पद स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों की शरीरावगाहना कितनी कही गई है ? उ. गौतम ! जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट छह गाउ प्रमाण है। प्र. भन्ते ! अपर्याप्त गर्भव्युत्क्रान्तिक चतुष्पद स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों की शरीरावगाहना कितनी कही गई है ? उ. गौतम ! जघन्य अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग और ___उत्कृष्ट भी अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण है। प्र. भन्ते ! पर्याप्तक गर्भव्युत्क्रान्तिक चतुष्पद स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों की शरीरावगाहना कितनी कही गई है ? उ. गौतम ! जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण और ___उत्कृष्ट छह गाउ प्रमाण है। प्र. भन्ते ! उरपरिसर्प स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों की शरीरावगाहना कितनी कही गई है ? उ. गौतम ! जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट एक हजार योजन की है। प्र. भन्ते ! सम्मूर्छिम उरपरिसर्प स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों की शरीरावगाहना कितनी कही गई है ? उ. गौतम ! जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण और उत्कृष्ट योजन पृथक्त्व है। प्र. भन्ते ! अपर्याप्त सम्मूर्छिम उरपरिसर्प स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों की शरीरावगाहना कितनी कही गई है ? उ. गौतम ! जघन्य अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट भी असंख्यातवें भाग प्रमाण है। प्र. भन्ते ! पर्याप्त सम्मूर्छिम उरपरिसर्प स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों की शरीरावगाहना कितनी कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट योजन पृथक्त्व है। प्र. भन्ते ! गर्भव्युत्क्रान्तिक उरपरिसर्प स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों की शरीरावगाहना कितनी कही गई है ? उ . उ. गोयमा ! जहण्णेण अंगुलस्स असंखेज्जइभाग, उक्कोसेण जोयणपुहत्तं। प. गब्भवक्कंतिय-उरपरिसप्प-थलयर-पंचेंदियाणं भंते ! के महालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता? १. जीवा.पडि.सु.३६ २. जीवा.पडि.१सु.३९ ३. (क) ठाणं अ. १० सु.७२८ (ख) जीवा.पडि. सु.३९ ४. जीवा. पडि.१ सु.३६
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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