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________________ । ४०२ अपज्जत्तय-रयणप्पभा-पुढविणेरइय-पंचेंदियवेउव्वियसरीरे वि। एवं जाव अहेसत्तमाए दुगओ भेदो णेयव्यो। द्रव्यानुयोग-(१) अपर्याप्तक रत्नप्रभा पृथ्वी के नैरयिक पंचेंद्रियों के भी वैक्रिय शरीर होता है। इसी प्रकार अधःसप्तम पृथ्वी पर्यंत के (पर्याप्तक और अपर्याप्तक) दोनों भेदों में वैक्रिय शरीर का कथन करना चाहिए। प्र. यदि तिर्यञ्चयोनिक पंचेन्द्रिय के वैक्रिय शरीर होता है, तो क्या सम्मूच्छिम तिर्यञ्चयोनिक पंचेन्द्रियों के वैक्रिय शरीर होता है या गर्भज तिर्यञ्चयोनिक पंचेन्द्रियों के वैक्रिय शरीर होता है? प. जइ तिरिक्खजोणिय-पंचेंदिय-वेउव्वियसरीरे, किं सम्मुच्छिम-तिरिक्खजोणिय-पंचेंदिय-वेउव्वियसरीरे, उ. गौतम ! सम्मूर्छिम तिर्यञ्चयोनिक पंचेंन्द्रियों के वैक्रिय शरीर नहीं होता है किन्तु गर्भज तिर्यञ्चयोनिक पंचेन्द्रियों के वैक्रिय शरीर होता है। प्र. यदि गर्भज तिर्यञ्चयोनिक पंचेन्द्रियों के वैक्रिय शरीर होता है, जव्यवसरार, गब्भवक्कंतिय-तिरिक्खजोणिय-पंचेंदिय वेउव्वियसरीरे? उ. गोयमा ! णो सम्मुच्छिम-तिरिक्खजोणिय-पंचेंदिय वेउव्वियसरीरे गब्भवक्कंतिय-तिरिक्खजोणिय-पंचेंदिय वेउव्वियसरीरे। .प. जइ गब्भवक्कंतिय-तिरिक्खजोणिय-पंचेंदिय वेउव्वियसरीरे, किं संखेज्जवासाउय-गब्भवक्कंतिय-तिरिक्खजोणियपंचेंदिय-वेउव्वियसरीरे, असंखेज्जवासाउय-गब्भवक्कंतिय-तिरिक्खजोणिय पंचेंदिय-वेउव्वियसरीरे?' उ. गोयमा ! संखेज्जवासाउय-गब्भवक्कंतिय तिरिक्खजोणिय-पंचेंदिय-वेउव्वियसरीरे, णो असंखेज्जवासाउय-गब्भवक्कंतिय-तिरिक्खजोणियपंचेंदिय-वेउव्वियसरीरे। प. जइ संखेज्जवासाउय-गब्भवक्कंतिय-तिरिक्खजोणिय पंचेंदिय-वेउव्वियसरीरे, किं पज्जत्तय-संखेज्जवासाउय-गब्भवक्कंतियतिरिक्खजोणिय-पंचेंदिय-वेउव्वियसरीरे, अपज्जत्तय-संखेज्जवासाउय-गब्भवक्कंतियतिरिक्खजोणिय-पंचेंदिय-वेउव्वियसरीरे? उ. गोयमा ! पज्जत्तय-संखेज्जवासाउय-गब्भवक्कंति तिरिक्खजोणिय-पंचेंदिय-वेउव्वियसरीरे, णो अपज्जत्तय-संखेज्जवासाउय-गब्भवक्कंतियतिरिक्खजोणिय-पंचेंदिय-वेउव्वियसरीरे। प. जइ संखेज्जवासाउय गब्भवक्कंतिय-तिरिक्खजोणिय पंचेंदिय- वेउव्वियसरीरे, किं जलयर संखेज्जवासाउय-गब्भवक्कंतियतिरिक्खजोणिय-पंचेंदिय-वेउव्वियसरीरे, थलयर-संखेज्जवासाउ-गब्भवक्कंतिय-तिरिक्खजोणिय-पंचेंदिय-वेउव्वियसरीरे, खहयर-संखेज्जवासाउय-गब्भवक्कं तिय-तिरिक्ख जोणिय-पंचेंदिय-वेउव्वियसरीरे? उ. गोयमा ! जलयर-संखेज्जवासाउय-गब्भवक्कंतिय तिरिक्खजोणिय-पंचेंदिय-वेउव्वियसरीरे वि, तो क्या संख्यात वर्ष की आय वाले गर्भज तिर्यञ्चयोनिक पंचेन्द्रियों के वैक्रिय शरीर होता है या असंख्यात वर्ष की आयु वाले गर्भज तिर्यञ्चयोनिक पंचेन्द्रियों के वैक्रिय शरीर होता है? उ. गौतम ! संख्यात वर्ष की आयु वाले गर्भज तिर्यञ्चयोनिक पंचेन्द्रियों के वैक्रिय शरीर होता है, किन्तु असंख्यात वर्ष की आयु वाले गर्भज तिर्यञ्चयोनिक पंचेन्द्रियों के वैक्रिय शरीर नहीं होता है। प्र. यदि संख्यात वर्ष की आयु वाले गर्भज तिर्यञ्चयोनिक पंचेन्द्रियों के वैक्रिय शरीर होता है तो क्या पर्याप्तक संख्यात वर्षायुष्क गर्भज तिर्यञ्चयोनिक पंचेन्द्रियों के वैक्रिय शरीर होता है या अपर्याप्तक संख्यात वर्षायुष्क गर्भज तिर्यञ्चयोनिक के वैक्रिय शरीर होता है? उ. गौतम ! पर्याप्तक संख्यात वर्षायुष्क गर्भज तिर्यञ्चयोनिक पंचेन्द्रियों के वैक्रिय शरीर होता है, किन्तु अपर्याप्तक संख्यात वर्षायुष्क गर्भज तिर्यञ्चयोनिक पंचेन्द्रियों के वैक्रिय शरीर नहीं होता है। प्र. यदि संख्यात वर्षायुष्क गर्भज तिर्यञ्चयोनिक पंचेन्द्रियों के वैक्रिय शरीर होता है तो क्या जलचर संख्यात वर्षायुष्क गर्भज तिर्यञ्चयोनिक पंचेन्द्रियों के वैक्रिय शरीर होता है, स्थलचर संख्यात वर्षायुष्क गर्भज तिर्यञ्चयोनिक पंचेन्द्रियों के वैक्रिय शरीर होता है, खेचर संख्यात वर्षायुष्क गर्भज तिर्यञ्चयोनिक पंचेन्द्रियों के वैक्रिय शरीर होता है? उ. गौतम ! जलचर संख्यात वर्षायुष्क गर्भज तिर्यञ्चयोनिक पंचेन्द्रियों के भी वैक्रिय शरीर होता है,
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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