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________________ आहार अध्ययन णवर-देवेसु छब्भंगा। माणकसाईसु मायाकसाईसु य देव-णेरइएसुछब्भंगा। अवसेसाणं जीवेगिंदियवज्जो तियभंगो। लोभकसाईसुणेरइएसु छब्भंगा। अवसेसेसु जीवेगिंदियवज्जो तियभंगो। अकसाई जहा णोसण्णी-णोअसण्णी। ८. णाणदारं णाणी जहा सम्मदिट्ठी। आभिणिबोहियाणाणि-सुयणाणिसु बेइंदिय-तेइंदियचउरिदिएसु छब्भंगा। अवसेसेसु जीवादीओ तियभंगो जेसिं अत्थि। ओहिणाणी पंचेंदिय-तिरिक्खजोणिया आहारगा, णो अणाहारगा। अवसेसेसु जीवादीओ तियभंगोजेसिं अत्थि ओहिणाणं। मणपज्जवणाणी जीवा मणूसा य एगत्तेण वि पुहत्तेण वि आहारगा,णो अणाहारगा। केवलणाणी जहाणो सण्णी-णोअसण्णी। ३८१ विशेष-देवों में छह भंग कहने चाहिए। मानकषायी और मायाकषायी देवों और नारकों में छह भंग पाए जाते हैं। जीव और एकेन्द्रिय को छोड़कर शेष जीवों में तीन भंग पाये जाते हैं। लोभकषायी नैरयिकों में छह भंग पाये जाते हैं। जीव और एकेन्द्रियों को छोड़कर शेष जीवों में तीन भंग पाए जाते हैं। अकषायी का कथन नोसंज्ञी-नोअसंज्ञी के समान जानना चाहिए। ८. ज्ञान द्वार ज्ञानी का कथन सम्यग्दृष्टि के समान समझना चाहिए। आभिनिबोधिकज्ञानी और श्रुतज्ञानी द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीवों में छह भंग समझने चाहिए। शेष जीव आदि (समुच्चय जीव और नारक आदि) में जिनमें यह ज्ञान हो, उनमें तीन भंग पाए जाते हैं। अवधिज्ञानी पंचेंद्रिय तिर्यञ्चयोनिक आहारक होते हैं, अनाहारक नहीं होते हैं। शेष जीव आदि में, जिनमें अवधिज्ञान पाया जाता है, उनमें तीन भंग होते हैं। मनःपर्यवज्ञानी समुच्चय जीव और मनुष्य एकत्व और बहुत्व की अपेक्षा से आहारक होते हैं, अनाहारक नहीं होते हैं। केवलज्ञानी का कथन नोसंज्ञी-नोअसंज्ञी के कथन के समान जानना चाहिए। अज्ञानी, मतिअज्ञानी और श्रुतअज्ञानी में समुच्चय जीव और एकेन्द्रिय को छोड़कर तीन भंग पाए जाते हैं। विभंगज्ञानी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक और मनुष्य आहारक होते हैं, अनाहारक नहीं होते हैं। अवशिष्ट जीव आदि में तीन भंग पाए जाते हैं। योग द्वारसयोगियों में जीव और एकेन्द्रिय को छोड़कर तीन भंग पाए जाते हैं। मनोयोगी और वचनयोगी के विषय में सम्यगमिथ्यादृष्टि के समान कथन करना चाहिए। विशेष-वचनयोग विकलेन्द्रियों में भी कहना चाहिए। काययोगी जीवों में जीव और एकेन्द्रिय को छोड़कर तीन भंग पाए जाते हैं। अयोगी समुच्चय जीव, मनुष्य और सिद्ध अनाहारक होते हैं। १०. उपयोग द्वार समुच्चय जीवों और एकेन्द्रियों को छोड़कर साकार अनाकार उपयोग वाले जीवों में तीन भंग कहने चाहिए। सिद्ध जीव (सदैव) अनाहारक होते हैं। ११. वेद द्वार समुच्चय जीवों और एकेन्द्रियों को छोड़कर अन्य सब सवेदी जीवों के तीनों भंग होते हैं। अण्णाणी, मइअण्णाणी, सुयअण्णाणी जीवेगिंदियवज्जो तियभंगो। विभंगणाणी पंचेंदिय-तिरिक्खजोणिया मणूसा य आहारगाणो अणाहारगा। अवसेसेसु जीवादीओ तियभंगो। ९. जोगदारं सजोगीसुजीवेगिंदियवज्जो तियभंगो। मणजोगी वइजोगी यजहा सम्ममिच्छदिट्ठी। णवरं-वइजोगो विगलिंदियाण वि। कायजोगीसु जीवेगिंदियवज्जो तियभंगो। अजोगी जीव-मणूस-सिद्धा अणाहारगा। १०. उवओगदारं सागाराणागारोवउत्तेसु जीवेगिंदियवज्जो तियभंगो। सिद्धा अणाहारगा। ११. वेददारं सवेदे जीवेगिंदियवज्जो तियभंगो।
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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