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________________ ( ३७८ । ३७८ उ. गोयमा ! सिय आहारगे, सिय अणाहारगे। एवं नेरइए जाव माणिए। प. भवसिद्धिया णं भंते ! जीवा किं आहारगा,अणाहारगा? उ. गोयमा !जीवेगिंदियवज्जो तियभंगो। अभवसिद्धिए विएवं चेव। प. णोभवसिद्धिए-णोअभवसिद्धिए णं भंते ! जीवे किं ____ आहारगे, अणाहारगे? उ. गोयमा !णो आहारगे, अणाहारगे। ___ एवं सिद्धे वि। प. णो भवसिद्धिया-णोअभवसिद्धिया णं भंते ! जीवा किं आहारगा,अणाहारगा? उ. गोयमा ! णो आहारगा, अणाहारगा। एवं सिद्धा वि। ३. सण्णिदारंप. सण्णी णं भंते ! जीवे किं आहारगे, अणाहारगे? उ. गोयमा ! सिय आहारगे, सिय अणाहारगे। द्रव्यानुयोग-(१) उ. गौतम ! वह कभी आहारक होता है, कभी अनाहारक होता है। इसी प्रकार (एक) नैरयिक से वैमानिक पर्यन्त जानना चाहिए। प्र. भन्ते ! (बहुत) भवसिद्धिक जीव आहारक होते हैं या अनाहारक होते हैं ? उ. गौतम ! समुच्चय जीव और एकेन्द्रिय को छोड़कर (पूर्ववत्) तीन भंग कहने चाहिए। इसी प्रकार अभवसिद्धिक के लिए भी कहना चाहिए। प्र. भन्ते ! नो-भवसिद्धक नो-अभवसिद्धिक जीव आहारक होता है या अनाहारक होता है? उ. गौतम ! वह आहारक नहीं होता है, अनाहारक होता है। इसी प्रकार (एक) सिद्ध के लिए भी कहना चाहिए। प्र. भन्ते ! (बहुत से) नो-भवसिद्धक-नो-अभवसिद्धक जीव आहारक होते हैं या अनाहारक होते हैं ? उ. गौतम ! वे आहारक नहीं होते हैं किन्तु अनाहारक होते हैं। इसी प्रकार सिद्धों के लिए भी जानना चाहिए। ३. संजीद्वारप्र. भन्ते ! संज्ञी जीव आहारक होता है या अनाहारक होता है ? उ. गौतम ! वह कभी आहारक होता है, कभी अनाहारक होता है। इसी प्रकार वैमानिक पर्यन्त कहना चाहिए। विशेष-एकेन्द्रिय और विकलेन्द्रिय जीवों के विषय में प्रश्नोत्तर नहीं करना चाहिए। प्र. भन्ते ! बहुत-से संज्ञी जीव आहारक होते हैं या अनाहारक होते हैं ? उ. गौतम ! जीवादि नैरयिकों से वैमानिकों पर्यंत (प्रत्येक में) तीन भंग होते हैं। प्र. भन्ते ! असंज्ञी जीव आहारक होता है या अनाहारक होता है ? उ. गौतम ! वह कभी आहारक होता है, कभी अनाहारक होता है। इसी प्रकार नैरयिक से वाणव्यन्तर पर्यन्त कहना चाहिए। ज्योतिष्क और वैमानिक के विषय में प्रश्न नहीं करना चाहिए। प्र. भन्ते ! (बहुत) असंज्ञी जीव आहारक होते हैं या अनाहारक होते हैं ? उ. गौतम ! वे अहारक भी होते हैं और अनाहारक भी होते हैं। इनमें केवल एक ही भंग होता है। प्र. दं. १. भन्ते ! (बहुत) असंज्ञी नैरयिक आहारक होते हैं, या अनाहारक होते हैं ? उ. गौतम ! वे-१. सभी आहारक होते हैं, २. सभी अनाहारक होते हैं, ३. अथवा एक आहारक और एक अनाहारक होता है, एवं जाव वेमाणिए। णवर-एगिंदिय-विगलिंदिया ण पुच्छिज्जति। प. सण्णी णं भंते ! जीवा किं आहारगा, अणाहारगा? उ. गोयमा !जीवाईओ तियभंगोणेरइया जाव वेमाणिया। प. असण्णी णं भंते ! जीवे किं आहारगे, अणाहारगे? उ. गोयमा ! सिय आहारगे, सिय अणाहारगे। एवं णेरइए जाव वाणमंतरे। जोइसिय-वेमाणियाण पुच्छिज्जति। ' प. असण्णी णं भंते ! जीवा किं आहारगा, अणाहारगा? उ. गोयमा !आहारगा वि, अणाहारगा वि, एगोभंगो। प. दं. १. असण्णी णं भंते ! णेरइया किं आहारगा, अणाहारगा? उ. गोयमा !१.आहारगावा, २. अणाहारगावा, ३. अहवा आहारगे य, अणाहारगे य,
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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