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________________ ( ३२२ । द्रव्यानुयोग-(१) उ. गोयमा !जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहत्त। उ. गौतम ! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की। प. पज्जत्तयाण भंते ! जोइसियाण देवाणं केवइयं कालं ठिई प्र. भन्ते ! पर्याप्त ज्योतिष्क देवों की स्थिति कितने काल की कही पण्णत्ता? गई है? उ. गोयमा !जहण्णेण पलिओवमट्ठभागो अंतोमुहुत्तूणो, उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम एक पल्योपम के आठवें भाग की, उक्कोसेण पलिओवमं वाससयसहस्समब्भहियं अंतो उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम एक लाख वर्ष अधिक एक मुहुत्तूणं। -पण्ण.प.४,सु.३९५ पल्योपम की। ७०. ओहेण जोइसिय देवीणं ठिई ७०. सामान्यतः ज्योतिषी देवियों की स्थितिप. जोइसिणीणं भंते ! देवीणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? प्र. भन्ते ! ज्योतिष्क देवियों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गोयमा !जहण्णेण पलिओवमट्ठभागो, उ. गौतम ! जघन्य पल्योपम के आठवें भाग की, उक्कोसेण अद्धपलिओवमं पण्णासवास उत्कृष्ट पचास हजार वर्ष अधिक अर्धपल्योपम की। सहस्समब्भहियं। प. अपज्जत्तयाणं भंते ! जोइसिणीणं देवीणं केवइयं कालं प्र. भन्ते ! अपर्याप्त ज्योतिष्क देवियों की स्थिति कितने काल की ठिई पण्णत्ता? कही गई है? उ. गोयमा !जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहत्त। उ. गौतम ! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की। प. पज्जत्तियाण भंते ! जोइसियाण देवीणं केवइयं कालं ठिई प्र. भन्ते ! पर्याप्त ज्योतिष्क देवियों की स्थिति कितने काल की पण्णत्ता? कही गई है? उ. गोयमा !जहण्णेण पलिओवमट्ठभागो अंतमुहूत्तूणो, उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम पल्योपम के आठवें भाग की, उक्कोसेण अद्धपलिओवमं पण्णासाए वाससहस्सेहि उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम पचास हजार वर्ष अधिक अब्भहियं अंतोमुहुत्तूणं। -पण्ण.प.४, सु. ३९६ अर्धपल्योपम की। ७१. चंदविमाणवासी देव-देवीणं ठिई ७१. चन्द्रविमानवासी देव-देवियों की स्थितिप. चंदविमाणे णं भंते ! देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? प्र. भन्ते ! चन्द्रविमान में देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गोयमा !जहण्णेण चउभागपलिओवमं, उ. गौतम ! जघन्य पल्योपम के चौथाई भाग की, उक्कोसेण पलिओवमं वाससयसहस्समभहियं। उत्कृष्ट एक लाख वर्ष अधिक एक पल्योपम की। प. चंदविमाणे णं भंते ! अपज्जत्तय देवाणं केवइयं कालं ठिई प्र. भन्ते ! चन्द्रविमान में अपर्याप्त देवों की स्थिति कितने काल पण्णत्ता? की कही गई है? उ. गोयमा !जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं । उ. गौतम ! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की। प. चंदविमाणे णं भंते ! पज्जत्तय देवाणं केवइयं कालं ठिई प्र. भन्ते ! चन्द्रविमान में पर्याप्त देवों की स्थिति कितने काल की पण्णत्ता? कही गई है? उ. गोयमा !जहण्णेण चउभागपलिओवमं ठिई अंतोमुत्तूणं, उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम पल्योपम के चौथाई भाग की। उक्कोसेण पलिओवमवाससयसहस्सममहियं अंतोमुहत्तूणं। उत्कृष्ट अन्तर्मुहुर्त कम एक लाख वर्ष अधिक एक पल्योपम की। प. चंदविमाणे णं भंते ! देवीणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? प्र. भन्ते ! चन्द्रविमान में देवियों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गोयमा !जहण्णेण चउभागपलिओवमं, उ. गौतम ! जघन्य पल्योपम के चतुर्थ भाग की, उक्कोसेणं अद्धपलिओवमं पण्णासाए वाससहस्स- . उत्कृष्ट पचास हजार वर्ष अधिक अर्धपल्योपम की। मब्भहिय। १. (क) अणु. कालदारे सु. ३९०/१ २. (क) अणु. कालदारे सु. ३९०/२ ३. (क) अणु. कालदारे सु. ३९०/२ (ख) जंबू. वक्ष.७,सु. २०५ (ख) जंबू. वक्ष.७,सु. २०५ (ख) जीवा. पडि. २, सु. ४७ (३) (ग) जीवा. पडि. ३, सु. १९७ (ग) जीवा. पडि. २, सु. ४७ (३) (ग) सूरिय. पा. १८, सु. ९८ (घ) सूरिय. पा. १८, सु. ९८ (घ) जीवा. पडि. ३, सु. १९७ (ङ) सरिय. पा. १८, सु. ९८
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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