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________________ ३२० असुरिंद वज्जियाणं भोमिज्जाणं देवाणं अत्थेगइयाणं जहण्णेण दसवाससहस्साइं ठिई पण्णत्ता । - सम. सम. १०, सु. १५ ६५. सेस भवणवासिंदाणं परिसागय देव-देवीणं ठिईअवसेसाणं वेणुदेवादीणं महाघोसपञ्जवसाणार्ण ठाणपदवतव्यया रिक्यया भाणियव्वा, परिसाओ जहा धरण भूयाणंदाणं । दाहिणिल्लाणं जहा धरणस्स, उत्तरिल्लाणं जहा भूयाणंदस्स, परिमाणं पि ठिई वि -जीवा. पडि ३ उ. २ सु. १२० ६६. वाणमंतर देवाणं टिई प. वाणमंतराणं भंते! देवाणं केव्हयं कालं ठिई पण्णत्ता ? उ. गोवमा ! जहणेण दस वाससहस्साई', उक्कोसेण पलिओयम । प. अपजत्तयाणं वाणमंतराणं भते देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णता ? उ. गोयमा ! जहणेण वि, उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं । प. पज्जत्तयाणं वाणमंतराणं भंते! देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? उ. गोवमा ! जहणेण दस बाससहस्साई अंतोमहत्तूणाई. उक्कोसेण पलिओदम अंतोमुहुत्तूणां प. प. ४.२९२ ६७. चाणमंतरदेवीण टिई प. वाणमंतरीणं भंते ! देवीणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ?. उ. गोयमा ! जहण्णेण दस वाससहस्साई, उक्कोसेण अपलिओचमं । प. अपरजतियाणं वाणमंतरीणं भंते! देवीणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? उ. गोवमा ! जहणेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्त । 7 प. पज्जत्तियाणं वाणमंतरीण भंते! देवीणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? उ. गोवमा ! जहणेण दस बाससहस्साई अंतोमुहुतूणाई, उक्कोसेण अद्धपलिओचमं अंतोमहत्तणां । - पण्ण. प. ४, सु. ३९४ १. (क) ठाणं. अ. १०, सु. ७५७ / ८ (ज.) (ख) सम. सम. १०, सु. १८ (ज.) २. (क) अणु. कालदारे सु. ३८९ (ख) उत्त. अ. ३६, गा. २२० (ग) ठाणं. अ. ४, उ. २, सु. २९९ / ३ (वैताद्यपर्वत पर रहने वाले देवों की स्थिति) (घ) ठाणं अ. ४, उ. २, सु. ३०० (जंबूद्वीप के द्वाररक्षक देवों की स्थिति) द्रव्यानुयोग - (१) असुरेन्द्र को छोड़कर कतिपय भवनवासी देवों की जघन्य स्थिति दस हजार वर्ष की कही गई है। ६५. शेष भवनवासी इन्द्रों की परिषदागत देव-देवियों की स्थितिशेष वेणुदेव से महाघोष पर्यन्त का समग्र कथन स्थान पद के अनुसार करना चाहिए। परिषदाओं का वर्णन धरण और भूतानंद के समान है। दक्षिण दिशा के भवनपति इन्द्रों की परिषदा धरण के समान है। उत्तर दिशा के भवनपति इन्द्रों की परिषदा भूतानंव के समान है। परिषदाओं में देव देवियों की संख्या स्थिति आदि पूर्ववत् जानना चाहिए। ६६. वाणव्यन्तर देवों की स्थिति प्र. भंते ! वाणव्यन्तर देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य दस हजार वर्ष की, उत्कृष्ट एक पत्योपम की। प्र. भंते! अपर्याप्त वाणव्यन्तर देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की । प्र. भंते! पर्याप्त वाणव्यन्तर देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम दस हजार वर्ष की, उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम एक पल्योपम की । ६७. वाणव्यन्तर देवियों की स्थिति प्र. भंते! वाणव्यन्तर देवियों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य दस हजार वर्ष की, उत्कृष्ट अर्द्धपल्योपम की। प्र. भंते! अपर्याप्त बाणव्यन्तर देवियों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? " उ. गौतम ! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त की उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की । प्र. भंते! पर्याप्त वाणव्यन्तर देवियों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम दस हजार वर्ष की, उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम अर्ध पत्योपग की। (ङ) ठाणं. अ. ४, उ. २, सु. ३०२ / १ ( पातालकलशों के संरक्षक देवों की स्थिति ) (च) ठाणं, अ. ४, उ. २, सु. ३०२ / २-३ ( वेलंधर अनुवेलंधर नागराजों के आवासपर्वतों के संरक्षक देवों की स्थिति) (छ) विया. स. १, उ. १, सु. ६/२२ ३. (क) अणु. कालदारे सु. ३८९ (ख) जीवा. पडि. २, सु. ४७ (३)
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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