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________________ यञ्चयोनिक जीवों की स्थिति अध्ययन प. सम्मुच्छिम-खहयर-पंचेंदिय- तिरिक्खजोणियाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेण अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेण बावत्तरि वाससहस्साई। प. अपज्जत्तय-सम्मुच्छिम-खहयर-पंचें दिय-तिरिक्ख जोणियाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेण वि,उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं। प. पज्जत्तय-सम्मुच्छिम-खहयर-पंचेंदिय-तिरिक्खजोणियाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेण अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेण बावत्तरि वाससहस्साई अंतोमुहत्तूणाई। प. गब्भवक्कंतिय-खहयर-पंचेंदिय-तिरिक्खजोणियाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेण अंतोमुहुत्तं, उकोसेण पलिओवमस्स असंखेज्जइभागो३ । प. अपज्जत्तय-गब्भवक्कंतिय-खहयर-पंचेंदिय-तिरिक्ख जोणियाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेण वि, उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं । प. पज्जत्तय-गब्भवक्कं तिय-खहयर-पंचें दिय-तिरिक्ख जोणियाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेण अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणपलिओवमस्सअसंखेज्जइभागो अंतोमुहत्तूणाई। -पण्ण.प.४,सु.३८७३८९ ४६. खहयर पंचेंदिय तिरिक्खजोणित्थीणं ठिईप. खहयर-तिरिक्खजोणित्थीणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेण अंतोमुत्तं, उक्कोसेण पलिओवमस्स असंखेज्जइभागो। -जीवा पडि.२,सु.२५ ४७. मणुस्साणं ठिई प. मणुस्साणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? . उ. गोयमा !जहण्णेण अंतोमुहत्तं, उक्कोसेण तिण्णि पलिओवमाई। प. अपज्जत्तय-मणुस्साणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? ३०९ प्र. भन्ते ! सम्मूर्छिम खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट बहत्तर हजार वर्ष की। प्र. भन्ते ! अपर्याप्त सम्मूर्छिम खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की। प्र. भन्ते ! पर्याप्त सम्मूर्छिम खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम बहत्तर हजार वर्ष की। प्र. भन्ते ! गर्भज खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट पल्योपम के असंख्यातवें भाग की। प्र. भन्ते ! अपर्याप्त गर्भज खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की। प्र. भन्ते । पर्याप्त गर्भज खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम पल्योपम के असंख्यातवें भाग की। ४६. खेचर पंचेंद्रिय तिर्यञ्चयोनिक स्त्रियों की स्थितिप्र. भन्ते ! खेचर तिर्यञ्चयोनिक स्त्रियों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट पल्योपम के असंख्यातवें भाग की। ४७. मनुष्यों की स्थिति प्र. भन्ते ! मनुष्यों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की, ____ उत्कृष्ट तीन पल्योपम की। प्र. भन्ते ! अपर्याप्त मनुष्यों की स्थिति कितने काल की कही उ. गोयमा !जहण्णेण वि, उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं। प. पज्जत्तय-मणुस्साणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गौतम ! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की। प्र. भन्ते ! पर्याप्त मनुष्यों की स्थिति कितने काल की कही गई है? १. (क) जीवा.पडि.१.सु.३६ (ख) सम.सम.७२ सु.८ २. (क) अणु.कालदारे सु.३८७/४ (ख) जीवा पडि.१.सु.३६ ३. जीवा. पडि.१,सु.४० ४. (क) अणु.कालदारे सु.३८७/४-५ (ख) जीवा. पडि.१.सु.४० (ग) जीवा. पडि.३,उ.१,सु. ९७(१) ५. (क) अणु.कालदारे सु.३८८/१ (ख) उत्त.अ.३६,गा.२०० (ग) जीवा. पडि.३,उ.२,सु.२०६ (घ) विया.स.१,उ.१.सु.६/२१
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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