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________________ ३०६ द्रव्यानुयोग-(१) प्र. भन्ते ! अपर्याप्त सम्मूर्छिम चतुष्पद स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की। प्र. भन्ते ! पर्याप्त सम्मूर्छिम चतुष्पद स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम चौरासी हजार वर्ष की। प्र. भन्ते ! गर्भज चतुष्पद स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट तीन पल्योपम की। प्र. भन्ते ! अपर्याप्त गर्भज चतुष्पद स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? उ. गौतम ! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की। प्र. भन्ते ! पर्याप्त गर्भज चतुष्पद स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम तीन पल्योपम की। प. अपज्जत्तय-सम्मुच्छिम-चउप्पय-थलयर-पंचें दिय तिरिक्खजोणियाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेण वि, उक्कोसेण वि अंतोमुत्तं। प. पज्जत्तय-सम्मुच्छिम-चउप्पय-थलयर-पंचेंदिय-तिरिक्ख जोणियाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेण अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेण चउरासीइं वाससहस्साई अंतोमुहत्तूणाई। प. गब्भवक्कंतिय - चउप्पय - थलयर - पंचेंदिय - तिरिक्ख - जोणियाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेण अंतोमुहत्तं, उक्कोसेण तिण्णि पलिओवमाई। प. अपज्जत्तय-गब्भवक्कं तिय-चउप्पय-थलयर-पंचें दिय तिरिक्खजोणियाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेण वि, उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं। प. पज्जत्तय-गब्भवक्कं तिय-चउप्पय-थलयर-पंचेंदिय तिरिक्ख जोणियाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेण अंतोमुहत्तं, उक्कोसेण तिण्णि पलिओवमाई अंतोमुहत्तूणाई। ' -पण्ण. प.४, सु. ३७८-३८० ४०. चउप्पय-थलयर पंचेंदिय तिरिक्खजोणित्थीणं ठिईप. चउप्पय-थलयर-पंचेंदिय-तिरिक्खजोणित्थीणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेण अंतोमुहत्तं, उक्कोसेण तिण्णि पलिओवमाइं। -जीवा. पडि. २, सु.४७ ४१. उरपरिसप्प थलयर पंचेंदिय तिरिक्खजोणियाणं ठिई- प. उरपरिसप्प-थलयर-पंचेंदिय-तिरिक्खजोणियाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? . उ. गोयमा !जहण्णेण अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेण पुवकोडी। प. अपज्जत्तय-उरपरिसप्प-थलयर-पंचेंदिय-तिरिक्ख जोणियाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेण वि, उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं। प. पज्जत्तय-उरपरिसप्प-थलयर-पंचेंदिय-तिरिक्ख जोणियाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेण अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेण पुव्वकोडी अंतोमुहुत्तूणाई। प. सम्मुच्छिम-उरपरिसप्प-थलयर-पंचेंदिय-तिरिक्ख जोणियाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? ४०. चतुष्पद स्थलचर पंचेंद्रिय तिर्यञ्चयोनिक स्त्रियों की स्थितिप्र. भन्ते ! चतुष्मद स्थलचर तिर्यञ्चयोनिक स्त्रियों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट तीन पल्योपम की। ४१. उरःपरिसर्प स्थलचर पंचेंद्रिय तिर्यञ्चयोनिकों की स्थिति- . प्र. भन्ते ! उरःपरिसर्प स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट पूर्वकोटी की। प्र. भन्ते ! अपर्याप्त उरःपरिसर्प स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की। प्र. भन्ते ! पर्याप्त उरःपरिसर्प स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम पूर्वकोटी की। प्र. भन्ते ! सम्मूर्छिम उरःपरिसर्प स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? १. (क) अणु. कालदारे सु. ३८७/३ (ख) जीवा. पडि. १, सु. ३६ २. जीवा. पडि.१.सु. ३९ ३. (क) अणु. कालदारे सु. ३८७/३ (ख) उत्त. अ. ३६, गा. १८४ (ग) जीवा. पडि. १, सु. ३९ ४. अणु. कालदारे सु. ३८७/३
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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