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________________ स्थिति अध्ययन - ३०३ ) उ. गौतम ! जघन्य एक समय कम लघुभवग्रहण की, उत्कृष्ट एक समय कम छह मास की। उ. गोयमा !जहण्णेण खुड्डागं भवग्गहणं समयूणं, उक्कोसेण छम्मासा समयूणाई। -जीवा. पडि. ९, सु. २२९ ३३.पंचिंदियाणं ठिई प. पंचिदियस्स णं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? ३३.पंचेन्द्रिय जीवों की स्थिति प्र. भन्ते ! पंचेन्द्रिय जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट तेतीस सागरोपम की। प्र. भन्ते ! प्रथम समय पंचेन्द्रिय जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! एक समय की। प्र. भन्ते ! अप्रथम समय पंचेन्द्रिय जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य एक समय कम लघुभवग्रहण की, उत्कृष्ट एक समय कम तेतीस सागरोपम की। उ. गोयमा !जहण्णेण अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेण तेत्तीसं सागरोवमाई। जीवा. पडि.४, सु.२०७ प. पढमसमय-पंचिंदियस्स णं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा ! एगं समय। प. अपढसमय-पंचिंदियस्स णं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेण खुड्डागं भवग्गहणं समयूणं, उक्कोसेण तेत्तीसं सागरोवमाई समयूणाई। -जीवा. पडि.९, सु. २२९ ३४. ओहेणपंचेंदियतरिक्खजोणियाणं ठिईप. पंचेंदिय-तिरिक्खजोणियाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेण अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेण तिण्णिं पलिओवमाई३। प. अपज्जत्तय-पंचेंदिय-तिरिक्खजोणियाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेण वि, उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं। प. पज्जत्तय-पंचेंदिय-तिरिक्खजोणियाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेण अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेण तिण्णि पलिओवमाइं अंतोमुहत्तूणाई। प. सम्मुच्छिम-पंचेंदिय-तिरिक्खजोणियाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेण अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेण पुव्वकोडी। प. सम्मुच्छिम-अप्पज्जत्तय-पंचेंदिय-तिरिक्खजोणियाणं भंते! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? । उ. गोयमा !जहण्णेण वि, उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं। प. सम्मुच्छिम-पज्जत्तय-पंचेंदिय-तिरिक्खजोणियाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेण अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेण पुब्बकोडी अंतोमुहुत्तूणाई। ३४.सामान्यतः पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों की स्थितिप्र. भन्ते ! पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट तीन पल्योपम की। प्र. भन्ते ! अपर्याप्त पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की। प्र. भन्ते ! पर्याप्त पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम तीन पल्योपम की। प्र. भन्ते ! सम्मूर्छिम पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट पूर्वकोटि (करोड़ पूर्व) की। प्र. भन्ते ! अपर्याप्त सम्मूर्छिम पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की। प्र. भन्ते ! पर्याप्त सम्मूर्छिम पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम पूर्वकोटी की। स्थात १. संक्षिप्त वाचना का विस्तृत पाठ है। २. संक्षिप्त वाचना का विस्तृत पाठ है। ३. (क) अणु.कालदारे सु.३८७/१ (ख) जीवा.पडि.८,सु.२२८ (ग) विया.स.१ उ.१सु. ६२०
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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