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________________ स्थिति अध्ययन - ३०१ ) प्र. भन्ते ! अपर्याप्त बादर वनस्पतिकायिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? उ. गौतम ! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की। प्र. भन्ते ! पर्याप्त बादर वनस्पतिकायिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम दस हजार वर्ष की। प. अपज्जत्तय-बायरवणस्सइकाइयाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेण वि, उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं। प. पज्जत्तय-बायरवणस्सइकाइयाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेण अंतोमुहत्तं, उक्कोसेण दस वाससहस्साई अंतोमुहत्तूणाई। -पण्ण.प.४,सु.३६६-३६८ प. पत्तेय-सरीरी बायरवणस्सइकाइयस्स णं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेण अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेण दस वाससहस्साई। २९. णिगोयाणं ठिई प. णिओदस्स णं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेण वि, उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं। प. बायरणिओदस्स णं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेण वि, उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं। प. अपज्जत्तय-बायरणिओदस्स णं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेण वि, उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं, णिगोदस्स बादर णिओदस्स' य पज्जत्तयाणं अंतोमुहत्तं जहण्णेण वि उक्कोसेण वि। -जीवा. पडि.५, सु.२१८ ३०. बेइंदियाणं ठिई प. बेइंदियाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेण अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेण बारस संवच्छराई। प. अपज्जत्तय-बेइंदियाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? प्र. भन्ते ! प्रत्येक शरीरी बादर वनस्पतिकायिक जीव की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट दस हजार वर्ष की। २९. निगोदों की स्थिति प्र. भन्ते ! निगोद की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की। प्र. भन्ते ! बादर निगोद की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की। प्र. भन्ते ! अपर्याप्त बादर निगोद की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की। पर्याप्त निगोद और बादर निगोद की जघन्य उत्कृष्ट स्थिति अन्तर्मुहूर्त की है। ३०. द्वीन्द्रिय जीवों की स्थिति प्र. भन्ते ! द्वीन्द्रिय जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट बारह वर्ष की। प्र. भन्ते ! अपर्याप्त द्वीन्द्रिय जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की। प्र. भन्ते ! पर्याप्त द्वीन्द्रिय जीवों की स्थिति कितने काल की कही उ. गोयमा !जहण्णेण वि, उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं। प. पज्जत्तय-बेइंदियाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम बारह वर्ष की। उ. गोयमा !जहण्णेण अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेण बारस संवच्छराइं अंतोमुहत्तूणाई। ___-पण्ण.प.४, सु.३६९ प. पढमसमय-बेइंदियस्स णं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा ! एगं समयं। प. अपढमसमय-बेइंदियस्स णं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? प्र. भन्ते ! प्रथम समय द्वीन्द्रिय जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! एक समय की। प्र. भन्ते ! अप्रथम समय द्वीन्द्रिय जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? (ग) जीवा. पडि.४,सु.२०७ (घ) जीवा. पडि.८,सु.२२८ (ङ) विया.स.१,उ.१,सु.६/१७/१ १. (क) अणु.कालदारे सु.३८५/५ (ख) विया.स.१ उ.१ सु.६/१६ २. (क) अणु.कालदारे सु.३८६/१ (ख) उत्त.अ.३६,गा.१३२
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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