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________________ गरोवमाइटिकाए अस्पत पंचमीए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं बारस सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता। । -सम. सम.१२, सु.१३ पंचमीए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं तेरस सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता। -सम. सम. १३, सु.१० पंचमीए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं चउद्दस सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता। -सम. सम. १४, सु.१० पंचमीए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं पण्णरस सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता। -सम. सम.१५, सु.९ पंचमीए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं सोलस सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता। -सम. सम.१६, सु.९ १६. तमप्पभापुढविनेरइयाणं ठिईप. तमप्पभापुढविनेरइयाणं भन्ते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेण सत्तरस सागरोवमाई, उक्कोसेण बावीसं सागरोवमाईं। प. अपज्जत्तय-तमप्पभापुढविनेरइयाणं भन्ते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहत्त। प. पज्जत्तय-तमप्पभापुढविनेरइयाणं भन्ते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेण सत्तरस सागरोवमाई अंतोमुहुत्तूणाई, उक्कोसेण बावीसं सागरोवमाई अंतोमुहुत्तूणाई। -पण्ण.प.४,सु.३४१ १७. तमप्पभापुढवीए अत्येगइय नेरइयाणं ठिई छट्ठीए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं अट्ठारस सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता। -सम. सम.१८, सु.१० छट्ठीए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं एगूणवीस सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता। -सम. सम.१९, सु.७ छट्ठीए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं वीसं सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता। -सम.सम.२०,सु.९ छठ्ठीए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं एगवीस सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता। -सम. सम.२१, सु.६ १८. अहेसत्तमपुढविनेरइयाणं ठिईप. अहेसत्तमपुढविनेरइयाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? . उ. गोयमा !जहण्णेण बावीसं सागरोवमाई, उक्कोसेण तेत्तीसं सागरोवमाई। द्रव्यानुयोग-(१) पांचवी पृथ्वी के कतिपय नैरयिकों की स्थिति बारह सागरोपम की कही गई है। पांचवी पृथ्वी के कतिपय नैरयिकों की स्थिति तेरह सागरोपम की कही गई है। पांचवी पृथ्वी के कतिपय नैरयिकों की स्थिति चौदह सागरोपम की कही गई है। पांचवी पृथ्वी के कतिपय नैरयिकों की स्थिति पन्द्रह सागरोपम की कही गई है। पांचवी पृथ्वी के कतिपय नैरयिकों की स्थिति सोलह सागरोपम की कही गई है। १६. तमःप्रभा पृथ्वी के नैरयिकों की स्थितिप्र. भन्ते ! तमःप्रभा पृथ्वी के नैरयिकों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम !जघन्य सत्तरह सागरोपम की, उत्कृष्ट बाईस सागरोपम की। प्र. भन्ते ! तमःप्रभा पृथ्वी के अपर्याप्त नैरयिकों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की। प्र. भन्ते ! तम प्रभा पृथ्वी के पर्याप्त नैरयिकों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम सत्तरह सागरोपम की, उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम बाईस सागरोपम की। १७. तमःप्रभा पृथ्वी के कतिपय नैरयिकों की स्थिति छठी पृथ्वी के कतिपय नैरयिकों की स्थिति अठारह सागरोपम की कही गई है। छठी पृथ्वी के कतिपय नैरयिकों की स्थिति उन्नीस सागरोपम की कही गई है। छठी पृथ्वी के कतिपय नैरयिकों की स्थिति बीस सागरोपम की कही गई है। छठी पृथ्वी के कतिपय नैरयिकों की स्थिति इक्कीस सागरोपम की कही गई है। १८. अधःसप्तम पृथ्वी के नैरयिकों की स्थितिप्र. भन्ते ! अधःसप्तम पृथ्वी के नैरयिकों की स्थिति कितने काल की कही गई है। उ. गौतम !जघन्य बाईस सागरोपम की, उत्कृष्ट तेतीस सागरोपम की। १. (क) अणु. कालदारे सु.३८३/४ (ख) उत्त.अ.३६,गा.१६५ (ग) जीवा. पडि.३,सु.९० (घ) सम.सम.१७,सु.१३(ज.) (ङ) सम.सम.२२,सु.८(उ.) २. (क) अणु.कालदारे सु. ३८३/४ (ख) उत्त.अ.३६,गा.१६६ (ग) जीवा.पडि.३,उ.२,सु.९० (घ) सम.सम.२२,सु.९,(ज.) (ङ) सम.सम.३३,सु.६(उ.)
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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