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संज्ञा अध्ययन : आमुख
• 'सम् उपसर्गपूर्वक 'ज्ञा' धातु से निष्पन्न संज्ञा शब्द व्याकरण में किसी वस्तु, व्यक्ति, स्थानादि के नाम (noun) के लिए प्रयुक्त होता है। तत्त्वार्थसूत्र (१.१३) में संज्ञा शब्द का प्रयोग मतिज्ञान के पर्यायवाचक शब्द के रूप में हुआ है।
आठवीं शती के जैन नैयायिक अकलंक ने संज्ञा शब्द का प्रयोग प्रत्यभिज्ञान प्रमाण के लिए किया है। किन्तु आगम में आहार, भय, मैथुन, परिग्रह आदि की अभिलाषा को व्यक्त करने के लिए संज्ञा शब्द का प्रयोग हुआ है। संसारी जीवों में ये आहारादि संज्ञाएं स्वाभाविक रूप से पाई जाती हैं। आहारादि की अभिलाषा से संसारी जीवों को जाना जाता है, इसलिए भी आहारादि को संज्ञाएं कहते हैं।
सामान्यतः संज्ञा के चार भेद हैं-आहार संज्ञा, भयसंज्ञा, मैथुन संज्ञा और परिग्रह संज्ञा।
प्रज्ञापना एवं व्याख्याप्रज्ञप्ति सूत्रों में संज्ञा के दस भेद भी प्रतिपादित हैं। उनमें आहारादि चार संज्ञाओं के साथ क्रोध, मान, माया, लोभ, ओघ और लोक संज्ञाओं की भी गणना की है।
आचारांग नियुक्ति (गाथा ३८-३९) में संज्ञा के १६ भेद निरूपित हैं। वहाँ पर इन दस संज्ञाओं में मोह, धर्म, सुख, दुःख, जुगुप्सा और शोक को योजित किया गया है।
सकषायी जीवों में ये सभी संज्ञाएं पाई जाती हैं। पूर्ण वीतराग अवस्था प्राप्त होने पर संज्ञाएं नहीं रहती हैं।
आहार आदि चार संज्ञाओं का आगम में विस्तृत निरूपण है। चारों गतियों के २४ दण्डकों में ये चारों संज्ञाएं मिलती हैं, किन्तु नैरयिकों में भयसंज्ञा की बहुलता है, तिर्यञ्च जीवों में आहार संज्ञा का आधिक्य है, मनुष्यों में मैथुन संज्ञा का प्राचुर्य है तो देवों में परिग्रह संज्ञा अधिक है।
अल्पता की दृष्टि से नैरयिकों में मैथुनसंज्ञा वाले, तिर्यञ्चों में परिग्रह संज्ञा वाले, मनुष्यों में भयसंज्ञा वाले तथा देवों में आहारसंज्ञा वाले जीव । सबसे कम हैं।
संज्ञा अगुरुलघु होती है।
संज्ञाओं के उत्पत्ति के विभिन्न कारण हैं। ये वेदनीय अथवा मोहनीय कर्म के उदय से भी उत्पन्न होती हैं तथा इनका श्रवण करने के अनन्तर उत्पन्न मति से भी उत्पन्न होती हैं तथा इनका सतत चिन्तन करते रहने से भी उत्पन्न होती हैं।
आहारसंज्ञा में पेट का खाली रहना, भयसंज्ञा में सत्त्वहीनता, मैथुनसंज्ञा में मांस-शोणित का अत्यधिक उपचय और परिग्रह संज्ञा में परिग्रह का स्वयं के पास रहना भी उत्पत्ति का कारण बनता है। इस प्रकार संज्ञाओं की उत्पत्ति या प्रकटीकरण में कुछ आन्तरिक कारण हैं तथा कुछ बाह्य कारण हैं। कर्मोदय आन्तरिक कारण है तथा उसकी अभिव्यक्ति में पेट खाली रहना आदि बाहा निमित्त या कारण हैं।
संज्ञा की क्रिया का करण संज्ञाकरण तथा संज्ञा की रचना को संज्ञानिवृत्ति कहा जाता है। इनके भी संज्ञा के भेदों की भाँति आहार आदि चार-चार भेद हैं।
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